उत्तराखंड में हवाई सेवाओं के नेटवर्क को बढ़ाने की तैयारी है। इसे सरकार की दूरदर्शी सोच के तौर पर देखा जा सकता है। दरअसल विषम भूगोल वाले इस राज्य में आवाजाही के साधन सीमित हैं। देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, ऋषिकेश जैसे शहरों को छोड़ दिया जाए तो शेष हिस्से में सड़कें ही लाइफलाइन हैं। हवाई कनेक्टिविटी बेहद सीमित है। ऐसा नहीं कि हवाई सेवाओं की यहां संभावनाएं न हों। बीते 21 वर्षों में राज्य का परिदृश्य काफी कुछ बदला है। यहां काफी संख्या में उद्योग स्थापित हुए हैं तो छोटे-बड़े शहरों से देश के महानगरों के लिए आवाजाही बढ़ी है।
विडंबना ये है कि राज्य के जो पर्वतीय जिले हैं, उनमें मानसून सीजन अथवा आपदा के दौरान लाइफलाइन ध्वस्त हो जाती है। तब सुदूरवर्ती गांवों में रोजमर्रा की वस्तुओं की उपलब्धता और मरीजों को अस्पताल तक पहुंचना चुनौती रहता है। सूरतेहाल, हेली सेवाओं की रीजनल कनेक्टिविटी पर सरकार ने फोकस किया है तो इसे सकारात्मक रूप में लिया जाना चाहिए। वैसे भी आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में समय की बड़ी अहमियत है। आवागमन जितना सुगम और कम अवधि का होगा, उतनी ही अधिक सहूलियत मिलेगी। इन संसाधनों के बूते पर्यटकों को और अधिक आकर्षित किया जा सकता है। वैसे भी नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण उत्तराखंड की वादियां सैलानियों की पसंद हैं। साथ ही चारधाम समेत अन्य धार्मिक स्थलों के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। ये बात अलग है कि पर्यटन के लिहाज से जो बुनियादी तैयारियां होनी चाहिए, उसमें हम अभी पिछड़े हुए हैं और इस दिशा में काफी कुछ काम करने की आवश्यकता है। ऐसे में हेली सेवाओं के विस्तार से निश्चित तौर पर पर्यटन को पंख लगेंगे और राज्य के आर्थिक हालात भी सुधरेंगे। साथ ही इससे आवाजाही का विकल्प भी मौजूद रहेगा। यानी हवाई कनेक्टिविटी का विस्तार समय की मांग है।
सरकार की ओर से इस सिलसिले में प्रयास किए जा रहे हैं। उसकी पहल का ही नतीजा है कि केंद्र सरकार ने उड़ान योजना के तहत प्रदेश में सात हेली सेवाओं को मंजूरी दी है। इसके साथ ही भविष्य में एक दर्जन से ज्यादा हेलीपोर्ट बनाने की तैयारी है। राज्य में हेलीपैड तो हैं, मगर हेलीपोर्ट नहीं हैं। हेलीपोर्ट एक प्रकार से मिनी एयरपोर्ट का काम करते हैं। इस तरह की सुविधाओं का विकास होने से पर्यटकों, श्रद्धालुओं, उद्यमियों को लाभ मिलेगा। यह पहल राज्य के विकास में मददगार साबित होगी। सरकार को चाहिए कि वह पूरी गंभीरता के साथ इसे आगे बढ़ाए, ताकि आगे कदम बढ़ाकर कदम पीछे खींचने की नौबत न आए।