गजब की मान्यता हर व्यक्ति पाता है न्याय| Golu Devta Mandir | Uttarakhand News | Champawat | Kumaon

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जी हां दोस्तो गजब की मान्यता, हर व्यक्ति पाता है न्याय, जहां कोर्ट से भी हार कर टूट जाता है इंसान तो एक दर ऐसा जहां मिलता है इंसाफ। ये सब कैसे होता है, कहां बोता है सब बताउंगा आपनी इस रिपोर्ट के जरिए। Golu Devta Mandir दोस्तो आज मै आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताउंगा, जहाँ लोगों का मानना है कि उन्हें वह न्याय मिलता है, जो कभी-कभी कोर्ट से भी नहीं मिल पाता। ये जगह सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि न्याय की प्रतीक बन गई है। लोगों की मान्यता है कि यहां हर व्यक्ति अपने अधिकार और न्याय के लिए सीधे भगवान से समाधान पा सकता है। इस गजब की मान्यता और मंदिर की अनोखी कहानी। दोस्तो उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थित चितई गोलू देवता मंदिर न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध है, जहां अर्जी लगाने पर माना जाता है कि हर व्यक्ति को सच्चा न्याय मिलता है। इनके कोर्ट में कोई तारीख नहीं लगती, बस विश्वास होता है। यह कर्म के अनुसार न्याय देते हैं। यहां दर्शनों के लिए विदेशां से तक भक्त आते हैं। वैसे दगड़ियो उत्तराखंड को देवभूमि कहा गया है, क्योंकि यहां की धरती पर माना जाता है कि दिव्य शक्तियां स्वयं वास करती हैं. पहाड़ का हर कण, हर घाटी, हर जंगल किसी न किसी लोकश्रुति, मान्यता और रहस्य से जुड़ा हुआ है। इन्हीं मान्यताओं के बीच उत्तराखंड में गोलू देवता की शक्ति और विश्वास सबसे अलग स्थान रखता है. पूरे राज्य में गोलू देवता के कई मंदिर मौजूद हैं, लेकिन अल्मोड़ा जिले में स्थित चितई गोलू देवता मंदिर सबसे प्रसिद्ध माना जाता है।

दोस्तो यहां स्थानीय लोग गोलू देवता को केवल आराध्य नहीं, बल्कि न्याय के देवता के रूप में पूजते हैं. ये वही आस्था है, जिसने इस मंदिर को देश-दुनिया में अलग पहचान दी है। दगड़ियो जो लोग यहां गए होंगे वो जानते होंगे इस मंदिर की महिमा और जो लोग अभी तक नहीं गए वो अब जरूर जाएं। दोस्तो मंदिर परिसर में आपको हजारों–लाखों की संख्या में लटके हुए कागज, चिट्ठियां और स्टांप पेपर देखने को मिल जाते हैं। ये चिट्ठियां किसी सामान्य मनौती की नही बल्कि न्याय की याचिका की होती हैं और दोस्तो मान्यता ये भी है कि गोलू देवता भगवान शिव के ही अवतार माने जाते हैं। यही कारण है कि यहां के पुजारी और स्थानीय लोग इसे सीधे-सीधे शिव की शक्ति और शिव की लीला से जोड़कर देखते हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि यहां किसी कोर्ट-कचहरी की लंबी तारीखों की जरूरत नहीं मानी जाती दिल से और सच्ची नीयत से यहां प्रार्थना की जाए। देवता उतनी ही जल्दी उसकी सुनवाई करते हैं, ये विश्वास ही लोगों को आशा देता है और यही विश्वास उन्हें बार-बार यहां वापस लाता है। गांवों में, शहरों में, पहाड़ों में पीढ़ियों से लोग ये बात एक दूसरे को बताते आए हैं कि “चितई गोलू देवता के सामने सच्चाई छुप नहीं सकती। यही विश्वास यही लोक आस्था और यही न्याय की उम्मीद इस मंदिर को बाकी सभी मंदिरों से अलग बनाती है, जिस तरह जागेश्वर धाम प्रसिद्ध देवदार के पेड़ों के बीच स्थित प्राचीन शिव मंदिरों के लिए जाना जाता है, उसी तरह अल्मोड़ा का चितई गोलू देवता मंदिर भी उतना ही पवित्र है।

जागेश्वर धाम से कुछ ही दूरी पर स्थित यह अनोखा मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए नहीं, बल्कि अपने दिव्य दरबारी वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। दोस्तो गोलू देवता उत्तराखंड, खासकर कुमाऊँ क्षेत्र में, एक लोकप्रिय स्थानीय देवता हैं। इन्हें भगवान शिव का एक रूप माना जाता है और उनकी न्यायप्रियता के लिए भी जाना जाता है। कुमाऊँ क्षेत्र में गोलू देवता को समर्पित कई मंदिर हैं। हालाँकि, दो मंदिर अपनी दिव्य उपस्थिति के लिए काफ़ी लोकप्रिय हैं। इनमें से एक है घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर , और दूसरा मंदिर जिसके बारे में आपको बता रहा हूं- चीतल गोलू देवता मंदिर, दोस्तो उन्हें “न्याय का देवता” माना जाता है, स्थानीय लोग और दूर-दूर से आने वाले भक्त उनकी गहरी पूजा करते हैं, जो अपने जीवन में सत्य, निष्पक्षता और समाधान की तलाश में यहां आते हैं, किंवदंती है कि गोलू देवता चंद वंश के एक वीर सेनापति और राजा थे। न्याय और समानता के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने उन्हें मृत्यु के बाद दिव्य दर्जा दिलाया, और आज उनका मंदिर उन्हीं मूल्यों का प्रमाण है। गोलू देवता को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। कुछ किंवदंतियाँ उन्हें भगवान शिव के पुत्र क्षेत्रपाल का अवतार मानती हैं। वे चंद वंश के एक न्यायप्रिय और वीर शासक थे। वास्तव में, न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के कारण उन्हें देवता माना जाता था। ऐसा माना जाता है कि गोलू देवता तब भी न्याय करते हैं जब मानव व्यवस्था विफल हो जाती है। लोगों का मानना है कि अगर वे सच्चे मन से उन्हें पत्र लिखें, तो वे सही परिणाम सुनिश्चित करते हैं, यहाँ तक कि अदालती मामलों या पारिवारिक विवादों में भी। ऐसा कहा जाता है कि कई लोग घंटियों या कृतज्ञता पत्रों के साथ धन्यवाद देने के लिए मंदिर में वापस आए, जिसके परिणामस्वरूप आज मंदिर परिसर में हजारों घंटियां सजी हुई हैं।