हलवा देवता के पश्वा ने निगली 7 किलो बाड़ी | Uttarakhand News | Uttarkashi News | Viral News

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जी हां दोस्तो उत्तराखंड में अनोखा मेला, जहां देवता की भूख ने खींचा सबका ध्यान, जिसे देख कर श्रद्धालु रह गए दंग। कैसे हलवा देवकता के पश्वा ने निगली 7 किलो बाड़ी। Uttarkashi Chaurangi Nath Mela दोस्तो उत्तराखंड का एक ऐसा मेला और मेले में ऐसा नजारा देखने को मिला, जिसे देखकर श्रद्धालु दंग रह गए। हलवा देवता के पश्वा ने 7 किलो मंडुए की बाड़ी निगल ली और मेला परिसर में तहलका मचा दिया। सवाल ये है कि इतनी बड़ी मात्रा को चट कर देने वाली ये घटना क्यों हुई और पश्वा की ये अद्भुत भूख स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के लिए क्या संदेश लिए आई? दोस्तो उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता यहां कई प्राचीन मंदिर और कण-कण में देवी-देवताओं का वास है। यही वजह है कि प्रदेश में कई पौराणिक मेले और उत्सव आयोजित किए जाते हैं। इन्हीं में से एक है उत्तरकाशी जिला, यहां की चारों घाटियों में पौराणिक संस्कृति आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी प्राचीन काल में रही होगी। हर साल प्रदेश में कई मेले लगते हैं, लेकिन उत्तरकाशी में गुरु चौरंगीनाथ मेला तीन साल में एक बार ही आयोजित होता है। दोस्तो यहां अलौकिक शक्ति और आस्था का नजारा अगर कहीं देखने को मिलता है तो वो धरा है उत्तराखंड। जहां आज भी ऐसे अनूठे नजारे देखने को मिलते हैं, जिस पर तकनीकी युग में यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है, लेकिन जब आप अपनी आंखों से इन नजारों को देखते हैं तो एहसास होता कि सच में देवी-देवता भी होते हैं। ऐसा ही एक नजारा उत्तरकाशी के गाजणा क्षेत्र में देखने को मिला, जहां पश्वा ने सात किलो बाड़ी खाया. जिसे देख ग्रामीण अचंभित हो गए। दोस्तो देवभूमि उत्तराखंड में 12 महीने होने वाले देव मेले कौतूहल बने रहते हैं। जहां मेले में देव शक्तियों के साथ ही अलग-अलग नजारे भी देखने को मिलते हैं। उत्तरकाशी जिले के गाजणा क्षेत्र में भी हर तीसरे साल में गुरु चौरंगी नाथ मेला का आयोजन किया जाता है। यहां हलवा देवता के पश्वा अवरित होकर सात किलो बाड़ी खाता है, जो मेले का प्रमुख आकर्षण केंद्र होता है। दोस्तो इस बार भी गाजणा क्षेत्र के चौंदियाट गांव, दिखोली, सौड़, लौदाड़ा और भेटियारा गांवों का संयुक्त गुरु चौरंगी देवता पौराणिक मेले का आयोजन हुआ। जिसमें गाजणा क्षेत्र के हलवा देवता के पश्वा (जिन पर देवता अवतरित होते हैं) ने सात किलो मंडुए का बाड़ी (एक तरह का हलवा) खाया। जिसे देख भक्त हैरान रह गए और हलवा देवता का जय-जयकार करने लगे। दोस्तो यहां मै आपको बता दूं कि बाड़ी की रेसिपी हलवे जैसी ही होती है, लेकिन बाड़ी में सूजी की जगह गेहूं या अन्य अनाज का आटा मिलाया जाता है. जिसका भोग देवता को लगाया जाता है। इस दौरान ग्रामीण देवी-डोलियों से क्षेत्र की सुख एवं समृद्धि की कामना करते हैं। वहीं, दोस्तो मेले में क्षेत्र के प्रमुख आराध्य देव भगवान तामेश्वर, गुरु चौरंगी नाथ की डोली, हलवा देवता की डोली, हुणियां नागराजा की डोली, हरि महाराज की डोली, खंडद्वारी देवी की डोली के साथ हजारों की संख्या में ग्रामीण उमड़े। ग्रामीणों ने इन देव डोलियों के साथ पारंपरिक नृत्य किया। वहीं इस दौरान दोस्तो देव डोलियों से क्षेत्र और गांव की खुशहाली के लिए मन्नतें मांगी, जिस पर देव डोलियों ने प्रसन्न होकर ग्रामीणों को अपना आशीर्वाद दिया। दोस्तो भेटियारा गांव में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान लोक गायक प्रीतम भरतवाण ने जागर की प्रस्तुतियां दी, जिस पर ग्रामीण देर रात तक झूमते रहे। दोस्तो इस मेले के बारे में बात करू तो हर तीसरे साल मनाए जाने वाले गुरु चौरंगी देवता के मेले का शुभारंभ चौदियाट गांव से शुरू होकर दूसरे दिन दिखोली, तीसरे दिन सौड़, चौथे दिन लोदाड़ा और पांचवें दिन मेले का समापन भेटियारा गांव में होता है। पांचवें दिन पारंपारिक वाद्य यंत्रों, ढोल नगाड़ों के साथ लोक नृत्य किया जाता है। वहीं, मेले में हजारों की संख्या में ग्रामीणों की भीड़ उमड़ती है। मेले का मुख्य आकर्षण हलवा देवता के पश्वा की ओर से सात किलो मंडुए का बाड़ी खाना रहा. मेले के समापन मौके पर गंगोत्री विधायक सुरेश चौहान ने भी शिरकत की। उन्होंने कहा कि ‘मेले पहाड़ की पहचान हैं, इन्हें संजोए रखने की जरूरत है। दोस्तों, उत्तरकाशी के गाजणा क्षेत्र में आयोजित गुरु चौरंगी नाथ मेला ने एक बार फिर साबित कर दिया कि देवभूमि उत्तराखंड में आस्था और संस्कृति आज भी जीवित हैं। हलवा देवता के पश्वा द्वारा सात किलो मंडुए की बाड़ी का अद्भुत नजारा और ग्रामीणों की श्रद्धा इस मेले को खास बनाती है। पारंपरिक नृत्य, वाद्य यंत्रों की धुन और लोक गीतों की गूंज के बीच यह मेला न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाता है। गुरु चौरंगी नाथ मेला हमें याद दिलाता है कि चाहे आधुनिक युग कितना भी आगे बढ़ जाए, यहां की आस्था, परंपरा और देवताओं के प्रति श्रद्धा हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेगी।