जी हां दोस्तो क्या शिक्षकों की सालों पुरानी लड़ाई को आखिरकार मिल गया है इंसाफ। उत्तराखंड के हज़ारों एलटी और प्रवक्ता शिक्षकों के प्रमोशन पर चला आ रहा सस्पेंस क्या अब खत्म हो जाएगा। Promotion of LT and lecturer teachers क्यों उत्तराखंड के ऐतिहासिक फैसले से इतना तो जरूर है जो सस्पेंस अब तक इस पूरे मामले पर था वो खत्म हो जाएगा। क्या कहा हाईकोर्ट ने इस मामले में कैसे तय होगी पदोन्नति बताने के लिए आया हूं दोस्तो खबर बेहद अहम है। दोस्तो आपने देखा होगा हाल के कुछ महिनों में जहां इस मुद्दे पर महीनों से अध्यापक संगठन सड़कों पर थे, ज्ञापन दे रहे थे, अब अदालत ने साफ कर दिया है कि योग्यता और वरिष्ठता — यही बनेगी पदोन्नति की नई लकीर, अब बड़ा सवाल ये भी हो सकता है कि —कोर्ट के इस फैसले के बाद क्या सरकार तात्कालिक प्रमोशन प्रक्रिया शुरू करेगी, या फिर कोई नया पेंच फंसेगा? लेकिन मै बताउंगा आपको पूरी जानकारी की हाईकोर्ट के इस आदेश का असर कितना गहरा है, और किन शिक्षकों की किस्मत अब चमकने वाली है। दोस्तो उत्तराखंड के एलटी शिक्षकों और प्रवक्ताओं की पदोन्नति के मामले पर दायर कई याचिकाओं पर नैनीताल हाईकोर्ट में एक साथ सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा है कि वरिष्ठता के आधार पर उनकी पदोन्नति करें. साथ ही पदोन्नति के सभी लाभ दिया जाए। वहीं, अपने पक्ष में फैसला आने के बाद शिक्षकों में खुशी की लहर है। वहीं दोस्तो आपको बता दूं कि अधर में लटका था एलटी शिक्षकों और प्रवक्ताओं की पदोन्नति का मामला। प्रदेश में एलटी शिक्षकों और प्रवक्ताओं की पदोन्नति के मामले पिछले कई सालों से अटके पड़े हैं। इसको लेकर शिक्षक लंबे समय से सरकार से मांग करते आ रहे हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि प्रधानाचार्य पद की सीधी भर्ती को निरस्त किया जाए।
इतना ही नहीं इस पद को पदोन्नति से भरा जाए, न कि सीधी भर्ती से, क्योंकि वे सालों से कार्य करते आ रहे है। सरकार ने उनको इसका लाभ नहीं दिया, जिस पर अभी तक कोई विचार नहीं किया गया। जबकि, कई शिक्षक सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। उनको ग्रेच्युटी व पेंशन का लाभ मिल चुका है। उनकी भी पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट की ओर से पारित आदेश भुवन चंद्र कांडपाल के केस के आधार पर की जाए. क्योंकि, सरकार ने उन्हें पदोन्नति दी है। इस मामले में त्रिविक्रम सिंह, लक्ष्मण सिंह खाती समेत अन्य ने याचिकाएं दायर की है। दोस्तो वहीं, हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें फैसला शिक्षकों के हक में आया है। हाईकोर्ट ने सरकार को वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति करने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही पदोन्नति के सभी लाभ भी देने को कहा है। ऐसे में लंबे समय से पदोन्नति का इंतजार कर रहे शिक्षकों के लिए बड़ी खुशखबरी है। दोस्तो यहां ये भी बता दूं कि हाल में ही उत्तराखंड उच्च शिक्षा के अंतर्गत विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में कार्यरत प्रोफेसर्स को प्राचार्य पद पर पदोन्नति दी जा चुकी है। जिन अधिकारियों को स्थायी प्राचार्य पद पर पदोन्नति दी गई है। इस पूरे मामले पर गौर इसलिए भी जरूरी हो जाता है दगड़ियो कि उत्तराखंड में प्राथमिक शिक्षकों के 1649 पदों पर जल्द होगी भर्ती। वहीं, उत्तराखंड में प्राथमिक शिक्षा विभाग के तहत सहायक अध्यापकों (गेस्ट टीचर) के खाली पड़े 2,100 पदों के सापेक्ष भर्ती प्रक्रिया जल्द शुरू होने जा रही है। दोस्तो यहां ये भी जान लीजिए कि वर्तमान में प्राथमिक शिक्षकों के करीब 2,100 पद खाली हैं, जिनमें से करीब 451 पदों पर भर्ती प्रक्रिया पहले से ही नैनीताल हाईकोर्ट में लंबित है। इन पदों को छोड़कर बाकी 1,649 खाली पदों के सापेक्ष भर्ती प्रक्रिया शुरू की जा रही है।
दोस्तो यहां ये भी आपको बता दूं कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश के एलटी शिक्षकों और प्रवक्ताओं की पदोन्नति के मामले पर दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई इससे पहले की थी तब मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ती सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा था कि वरिष्ठता के आधार पर इनकी एक प्रमोशन लिस्ट बनाकर याचिकाकर्ताओं को 22 सितंबर तक उपलब्ध कराएं तो वहीं सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट से लगाई थी गुहार कि शिक्षकों के आंदोलन के बाद सरकार ने इस मामले को शीघ्र सुनवाई की गुहार कोर्ट से लगाई थी, दोस्तो इससे पहले की बात की जाय तो साल 2012 से शिक्षकों का मामला उच्च न्यायालय में लंबित है, जिसके चलते शिक्षकों की पदोन्नति और स्थानांतरण नहीं हो पाई। प्रदेश के हजारों नाराज शिक्षक आंदोलन पर चले गये। आंदोलन के चलते स्कूल बंदी के कगार पर भी पहुंच गए छात्रों की पढ़ाई प्रभावित भी खूब हुई, तो दोस्तो हाईकोर्ट के इस फैसले ने उत्तराखंड के हज़ारों शिक्षकों को नई उम्मीद दी है। जिन प्रमोशन फाइलों पर महीनों से धूल जमी थी, अब उन पर ‘वरिष्ठता की मुहर’ लगनी तय है लेकिन सवाल ये भी है — क्या सरकार तुरंत आदेश लागू करेगी, या फिर फैसला फिर किसी नई कानूनी जंग की तरफ बढ़ेगा? लेकिन दोस्तो यहां एक बात तय शिक्षक अब सिर्फ़ पढ़ाने वाले नहीं, अपने हक़ के लिए लड़ने वाले भी हैं ये प्रदेश देख चुका है यहां की सरकारों और शिक्षा महकमे ने भी खूब देखा है।