उत्तराखंड की वादियाँ एक बार फिर सन्न है, जब सैकड़ों श्रद्धालुं कर रहे बद्रीनाथ धाम के दर्शन, तभी हुआ कुछ ऐसा कि सबकी सांसे थम सी गई। आपदा के बाद अब क्या एक और खतरा अपने चारधामों के सिर पर मंडरा रहा है। बताने के लिए आया हूं पूरी खबर, उस डरावनी तस्वीर के साथ जब श्रद्धालुओं के सिर पर आ गई बारी मुसीबत। Avalanche In Badrinath Dham दोसतो अपने उत्तराखंड के वो तमाम पहाड़ी जिले अभी आपदा की मार से पूरी तरह से उभरे भी नहीं हैं कि एक नई मुसीबत अब सर आ खड़ी है। बद्रीनाथ धाम की शांत पहाड़ियों में जो कुछ भी हुआ, वो सिर्फ एक हिमस्खलन नही, शायद एक चेतावनी थी। नर पर्वत की ऊँचाइयों से अचानक फिसलता बर्फ का तूफ़ान, जिसकी गूंज नीचे मौजूद श्रद्धालुओं के दिलों तक जा पहुँची। सैकड़ों लोग वहाँ मौजूद थे, कुछ भयभीत, कुछ स्तब्ध, और कुछ ने इस नज़ारे को कैमरे में क़ैद कर लिया। दगड़ियो ये दृश्य ये तस्वीर सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल रही है सवाल ये होने लगा है कि क्या उत्तराखंड की धरती फिर किसी बड़ी आपदा की ओर बढ़ रही है? या फिर ये प्रकृति की ओर से भेजा गया एक और अलार्म है, जिसे हमें अब नजरअंदाज़ नहीं करना चाहिए? पर्वतों की गोद में बसी ये धरती जहां एक ओर अध्यात्म और आस्था का केंद्र है, वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं की चेतावनी भी बनती जा रही है। ये ताज़ा मामला बद्रीनाथ धाम से सामने आया है, जहां नर पर्वत की ऊँचाइयों से एक विशाल ग्लेशियर टूटकर नीचे फिसलता दिखाई दिय।
हिमस्खलन ने वहां मौजूद सैकड़ों श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों को चौंका दिया। इस पूरी घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि कैसे बर्फ का एक बड़ा हिस्सा पर्वत से टूटकर तेजी से नीचे की ओर गिरता है और धूल-बर्फ की एक मोटी परत हवा में फैल जाती है। दगड़ियो ये सब कुछ हुआ उस वक्त, जब बद्रीनाथ धाम में सैकड़ों श्रद्धालु पूजा-अर्चना में लीन थे। लोग शांति और भक्ति के भाव में थे, तभी अचानक पर्वतों की ओर से गड़गड़ाहट की आवाज़ आई। देखते ही देखते, नर पर्वत से ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटकर नीचे गिरने लगा आसपास मौजूद लोगों ने डर के मारे इधर-उधर भागना शुरू कर दिया हालांकि, राहत की बात यह रही कि कोई जनहानि नहीं हुई। लेकिन इस घटना ने सभी के मन में एक बड़ा सवाल जरूर खड़ा कर दिया — क्या ये किसी बड़ी आपदा की दस्तक है? दोस्तो उत्तराखंड के भूगर्भीय और जलवायु विशेषज्ञ पहले ही कह चुके हैं कि राज्य के ऊपरी क्षेत्रों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और निरंतर हो रहे निर्माण कार्यों ने पहाड़ों की संरचना को अस्थिर कर दिया है। बद्रीनाथ, केदारनाथ और आसपास के क्षेत्रों में पिछले एक दशक में कई बार हिमस्खलन, बादल फटना और भूस्खलन जैसी घटनाएं हुई हैं, जिसने लोगों की ज़िंदगी, आस्था और भविष्य तीनों को झकझोर कर रख दिया है। ऐसी तस्वीरों पर जानकार विशेषज्ञ कहते हैं कि ये हिमस्खलन सिर्फ बर्फ का खिसकना नहीं है, बल्कि यह एक संकेत है कि हमें प्रकृति के साथ संतुलन साधने की ज़रूरत है। वहीं दूसरी ओर श्रद्धालुओं की सुरक्षा पर सवाल, बद्रीनाथ धाम देश की चारधाम यात्रा का प्रमुख पड़ाव है। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। ऐसे में बार-बार हो रही प्राकृतिक घटनाएं कहीं न कहीं यात्रियों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा रही हैं। सरकार और प्रशासन की तरफ से भले ही निगरानी रखी जा रही हो, लेकिन सवाल है कि क्या सतर्कता ही पर्याप्त है? क्या वहाँ ऐसी कोई पूर्व सूचना प्रणाली है, जो हिमस्खलन जैसे खतरों की पहले से चेतावनी दे सके? अगर उस वक्त एवलांच की दिशा आबादी वाले हिस्से की ओर होती, तो शायद हम एक बड़ी त्रासदी देख रहे होते।
दोस्तो एक और बड़ा सवाल जो में अक्कर करता हूं, ये सब क्या प्राकृतिक तौर पर हो रहा है या फिर हम सब इसके लिए जिम्मेदार हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में हो रही इन घटनाओं को लेकर अब बड़ा विमर्श खड़ा हो गया है। कुछ लोग इसे प्राकृतिक प्रक्रिया बता रहे हैं, तो कई विशेषज्ञ इसे मानवजनित आपदा मानते हैं। बद्रीनाथ और आसपास के इलाकों में हो रहे सड़कों का चौड़ीकरण, सुरंग निर्माण, और हाईड्रो प्रोजेक्ट्स जैसी गतिविधियों से पहाड़ों की सहनशीलता कम होती जा रही है। ऐसे में जब गर्मियों में तापमान बढ़ता है, तो ग्लेशियर पिघलते हैं और हिमस्खलन की आशंका बढ़ जाती है। ऐसा ही कुछ इस घटना को भी इसी क्रम की एक कड़ी माना जा सकता है। दोस्तो इस एवलांच की घटना भले ही जानमाल का नुकसान न लेकर आई हो, लेकिन यह सिस्टम और समाज दोनों के लिए चेतावनी है। चारधाम यात्रा के रूट पर आधुनिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems) लगाई जाए। ग्लेशियर क्षेत्रों में विज्ञान आधारित निगरानी और रिसर्च को बढ़ावा दिया जाए, क्या ये सब नहीं होना चाहिए। जब हम हमारा उत्तराखंड ऐसी घटना से बार-बार टूट रहा हो और जानकार कहते हैं कि बेतरतीब निर्माण कार्यों पर नियंत्रण लगे और सबसे जरूरी, आम लोगों में प्राकृतिक आपदाओं को लेकर जागरूकता फैलाई जाए। दोस्तो कहने के लिए तो ये बाते कह दी जाती हैं जब कहते हैं तो मै भी कह देता हूं, लेकिन उन सरकार और सिस्टम के लोगों के पास करने का अधिकार भी है जिम्मेदारी भी है। दोस्तो नर पर्वत पर टूटा ग्लेशियर किसी एक घटना का हिस्सा नहीं, बल्कि एक श्रृंखला है — जो बार-बार उत्तराखंड को ये याद दिला रही है कि पर्वत जितने सुंदर हैं, उतने ही संवेदनशील भी। ये धरती सिर्फ आस्था की नहीं, जिम्मेदारी की भी मांग करती है। प्रकृति की चेतावनी को अगर हम आज भी नजरअंदाज करेंगे, तो कल हमें इसके और भी बड़े खामियाज़े भुगतने पड़ सकते हैं। दोस्तो आज की घटना ने हमें वक़्त रहते आगाह किया है—अब देखना यह है कि क्या हम जागते हैं या फिर अगली आवाज़ का इंतज़ार करते हैं। वही आवाज जो हमने बीते कुछ महिनों में खूब सुनी बल, धराली में भागो रे भागो से शुरू हुआ चिकार का सिलसिला थमता दिख नहीं रहा है दोस्तो इसलिए चिंता बढ़ जाती है।