मेडिकल छात्रों की पार्टी पर छापा ! | Uttarakhand News | Doon Medical College | Viral Video

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मेडिकल छात्रों की पार्टी पर छापा पड़ा तो पुलिस ने सामने खुलने लग गए पीजी हॉस्टल में शराब पार्टी के राज, ये खबर देहरादून के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के पीजी हॉस्टल में उस वक्त हड़कंप की है, जब मेडिकल स्टूडेंट्स की देर रात चल रही शराब पार्टी पर पुलिस ने छापा मारा। Dehradun Medical Student Party जहां एक तरफ इन छात्रों को भविष्य का ‘लाइफ सेवर’ कहा जाता है, वहीं दूसरी ओर ये नशे में थिरकते हुए कैमरे में कैद हुए। क्या देश की सबसे जिम्मेदार प्रोफेशन में आने वाले युवाओं का यही चेहरा है? बताने के लिए आया हूं दोस्तो आख़िर दून अस्पताल के हॉस्टल में उस रात क्या हुआ। दोस्तो देहरादून के सर्किल क्लब में एक फायर शो ने तब हड़कंप मचा दिया, जब शो के दौरान अचानक आग भड़क उठी। इस हादसे में दो बारटेंडर झुलस गए, हालांकि राहत की बात ये रही कि दोनों खतरे से बाहर हैं। घटना के बाद पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए क्लब प्रबंधन पर 10 हज़ार रुपये का चालान ठोका है, साथ ही कड़ी चेतावनी दी गई है कि भविष्य में यदि बिना अनुमति इस तरह का स्टंट दोबारा किया गया, तो क्लब का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा, सवाल ये है कि – क्या मनोरंजन के नाम पर सुरक्षा से इतना बड़ा समझौता जायज़ है? और क्या आयोजकों ने आग से निपटने के इंतज़ाम पहले से किए थे या नहीं? खैर मसला पार्टी का है तो अब आपको दून अस्पताल पीजी हॉस्टल की तस्वीर भी दिखाता हूं।

दोस्तो देहरादून स्थित प्रतिष्ठित दून मेडिकल कॉलेज का नाम एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह चिकित्सा क्षेत्र में किसी उल्लेखनीय उपलब्धि की नहीं, बल्कि कॉलेज के पीजी (पोस्ट ग्रेजुएट) डॉक्टरों की एक शर्मनाक हरकत की है। रात हॉस्टल में डीजे पार्टी, शराब के नशे में धुत डॉक्टर, पुलिसकर्मी को बंधक बनाने का प्रयास और फिर हंगामे पर पर्दा डालने की कोशिश—इन सभी घटनाओं ने मेडिकल प्रोफेशन की गरिमा और जिम्मेदारी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। घटना 12 अक्टूबर की रात करीब 2:30 बजे, दून मेडिकल कॉलेज हॉस्टल में ज़ोरदार डीजे पार्टी चल रही थी। जब पुलिस को शिकायत मिली और वे मौके पर पहुंचे, तो वहां का नज़ारा चौंकाने वाला था..कई पीजी डॉक्टर नशे की हालत में पाए गए, और उन्होंने न केवल सहयोग करने से इनकार किया, बल्कि एक पुलिसकर्मी को कथित तौर पर बंधक बनाने का प्रयास भी किया। जब पुलिस ने वीडियो बनाना चाहा या स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, तो कुछ डॉक्टरों ने कॉलर पकड़ने और मोबाइल छीनने जैसी हरकतें कीं। दोस्तो इस पूरे मामले को लेकर अस्पताल प्रशासन ने जांच के लिए 5 डॉक्टरों की एक टीम बनाई है जो इस घटना की तह तक जाएगी। दूसरी ओर, दोषी माने जा रहे डॉक्टरों ने अब काली पट्टी बांध कर प्रदर्शन करने का ऐलान किया है, यह कहते हुए कि उनके साथ अन्याय हुआ है। दोस्तो क्या एक डॉक्टर, जो समाज में सबसे ज़िम्मेदार पेशे में होता है, इस तरह की हरकत कर सकता है? अगर कानून व्यवस्था को चुनौती देने वाले यही डॉक्टर हैं, तो आम जनता किस पर भरोसा करे?क्या मेडिकल संस्थानों में अनुशासन और प्रोफेशनलिज्म केवल पाठ्यक्रम तक ही सीमित रह गया है? और दोस्तो क्या दोषियों के खिलाफ सख्त प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई होगी, या यह मामला भी ‘इनहाउस’ सुलझा लिया जाएगा? जब पुलिस कार्रवाई करती है तो विरोध के तौर पर काली पट्टी बांधना क्या एक गंभीर गलती को ढकने का तरीका है?

दोस्तो मेडिकल छात्र और डॉक्टर समाज का वो वर्ग हैं जिनसे आम जनता को न केवल इलाज की उम्मीद होती है, बल्कि मर्यादा, अनुशासन और संवेदनशीलता की भी अपेक्षा होती है। यदि यही वर्ग कानून का मजाक उड़ाए, तो यह एक गहरी सामाजिक विफलता को दर्शाता है। नशे में धुत होकर पार्टी करना एक निजी मामला हो सकता है, लेकिन जब ये सार्वजनिक संपत्ति, पुलिस और प्रशासन को प्रभावित करने लगे, तो ये सार्वजनिक चिंता का विषय बन जाता है। इस पूरी घटना ने ये साफ है कि मेडिकल संस्थानों में सिर्फ पढ़ाई और रिसर्च पर नहीं, बल्कि नैतिक शिक्षा, अनुशासन और कानून के प्रति सम्मान भी सिखाया जाना चाहिए। ये केवल दून मेडिकल कॉलेज की प्रतिष्ठा का सवाल नहीं है, बल्कि पूरे चिकित्सा समुदाय की छवि का मामला है। अगर इस मामले में सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो ऐसे मामले आने वाले समय में और बढ़ सकते हैं। दोषियों की पहचान कर उन्हें मेडिकल काउंसिल के सामने पेश किया जाना चाहिए। मेडिकल संस्थानों में “प्रोफेशनल बिहेवियर” पर विशेष सत्र आयोजित किए जाने चाहिए। छात्रावासों में अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए, तो दोस्तो ये था दून मेडिकल कॉलेज से जुड़ा एक ऐसा मामला, जिसने न सिर्फ मेडिकल प्रोफेशन की साख को झटका दिया है, बल्कि ये सोचने पर मजबूर किया है कि क्या हम अपने सबसे जिम्मेदार माने जाने वाले वर्ग से सही उम्मीदें कर रहे हैं जांच जारी है, प्रदर्शन की चेतावनी भी सामने है, लेकिन असली सवाल यही है — क्या कानून सबके लिए बराबर है? और क्या जिम्मेदारी का बोझ सिर्फ शब्दों तक सीमित रह गया है? आप कमेट कर बता सकते हैं खबर को शेयर करें।