काशीपुर की शांति को कौन तोड़ना चाहता है?जुलूस बिना इजाजत, बवाल अचानक, सवाल अनगिनत, जवाब अब सख्ती से चाहिए। शांत फिजा में अचानक उठा बवाल का तूफ़ान, बिना इजाज़त निकला जुलूस ‘I Love मोहम्मद’ के बैनर और फिर शुरू हुआ पथराव, Miscreants Pelted Stones तोड़फोड़ और हंगामा न कोई अनुमति, न प्रशासन को खबर, लेकिन सैकड़ों की भीड़ अचानक सड़कों पर उतरी, धार्मिक नारे लगे जुलूस निकला और शहर का माहौल गरमा गया!सवाल ये नहीं कि कौन था उस भीड़ में सवाल ये है कि कौन था पीछे से खेलने वाला सब बताउंगा आपको एक एक कर। दोस्तो सीधे सवालों से शुरूआत कर रहा हूं आखिर किसने दी इजाज़त?क्यों निकाला गया ये जुलूस?क्या काशीपुर को जानबूझकर दंगे की आग में झोंकने की कोशिश की गई?लेकिन जो लोग सोचते हैं कि उत्तराखंड की सरज़मीं डर भर जाएगा वो गलत हैं। पुलिस अलर्ट है, जांच शुरू हो चुकी है, और अब न सिर्फ सड़कों पर दिखने वालों की पहचान होगी, बल्कि परदे के पीछे बैठे मास्टरमाइंड भी बेनकाब होंगे। दगड़ियो काशीपुर—एक शहर जो उत्तराखंड की पहचान है, जो अपनी सांस्कृतिक विविधता और शांतिप्रियता के लिए जाना जाता है, लेकिन एक ऐसी घटना ने इस शांत शहर की रगों में डर, असहजता और बेचैनी दौड़ा दी, जिसे लेकर अब हर गली, हर नुक्कड़ और हर मोबाइल स्क्रीन पर सिर्फ एक ही सवाल है—आखिर किसने माहौल बिगाड़ने की कोशिश की? और क्यों अचानक जुलूस, बिना इजाजत—कैसे मुमकिन हुआ? बल और क्यों दोस्तो रविवार देर रात काशीपुर के अलीखान इलाके से अचानक एक जुलूस निकलता है।
हाथों में ‘I Love मोहम्मद’ लिखे बैनर, मुंह पर नारेबाज़ी और चेहरे पर भाव—जैसे किसी को कुछ दिखाना हो, जताना हो या शायद उकसाना हो। ये जुलूस न तो किसी धार्मिक परंपरा का हिस्सा था, न ही किसी सामाजिक अभियान का हिस्सा, इससे भी बड़ी बात—इस जुलूस के लिए प्रशासन से कोई अनुमति नहीं ली गई थी। ये एक सीधा कानून का उल्लंघन था, लेकिन उससे भी खतरनाक बात ये थी कि यह भीड़ कुछ ही मिनटों में उपद्रव में बदल गई पथराव हुआ, सरकारी और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया, पुलिस पर हमला किया गया। अब सवाल उठता है कि बिना इजाजत इतना बड़ा आयोजन कैसे हो गया? क्या खुफिया तंत्र सो रहा था? दगड़ियो आज जब हर छोटी-बड़ी घटना पर सोशल मीडिया से लेकर लोकल नेटवर्क तक हर खबर पलभर में पहुंच जाती है, तो यह जुलूस पुलिस या प्रशासन की नजर से कैसे छिपा रह गया? सवाल तो ये भी है कि क्या यह घटना अचानक हुई या इसकी प्लानिंग पहले से थी?क्या स्थानीय प्रशासन को पहले से इनपुट मिले थे और उन्होंने नजरअंदाज़ कर दिया? या फिर, क्या कोई भीतर का हाथ था जो इस आयोजन को सफल बनाना चाहता था? मै इस भीड़ पर सवाल तो कर रही रहा हूं साथ ही खुफिया तंत्र को भी कठघरे में खड़ा कर रहा हूं। क्यों अपने उत्तराखंड में ऐसा हो रहा है।
अगर खुफिया तंत्र इतना कमजोर है कि बिना अनुमति कोई भीड़ सड़कों पर निकल सकती है, तो यह आम नागरिक की सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है दोस्तो एक और सवाल यहां ये है कि धार्मिक भावनाएं या राजनीतिक चाल? इसका जवाब भी खोजना चाहिए। ‘I Love मोहम्मद’—यह वाक्य अपने आप में किसी को ठेस पहुंचाने वाला नहीं है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल बैनर, नारेबाज़ी और उकसावे के साथ सड़कों पर किया जाए, वो भी बिना इजाजत, तो सवाल उठता है कि आस्था का उपयोग भावनाएं जोड़ने के लिए हो रहा है या तोड़ने के लिए? धार्मिक प्रतीकों और नामों को लेकर ऐसे आयोजनों का इतिहास रहा है—जहां कुछ लोग लोगों की श्रद्धा का इस्तेमाल कर उन्हें भीड़ में बदल देते हैं और जब भीड़ बनती है, तो सबसे पहले शांति मरती है। यहां तो नजारा की कुछ अलग दिखाई दिआ। जैसे ही यह खबर प्रशासन तक पहुंची,पुलिश भी तुरंत हरकत में आई है। मौके पर भारी पुलिस बल तैनात किया गया, भीड़ को तितर-बितर किया गया, और कुछ ही घंटों में स्थिति नियंत्रण में आ गई। जी हां अब होना चाहिए बड़ा एक्शन, दोस्तो इतिहास गवाह है—जो घटनाएं छोटी चिंगारियों से शुरू होती हैं, वही बाद में बड़े दंगों में बदल जाती हैं। यहां तो पुलिस भी मान रही है कि माहौल को विगाड़ने की कोशिश की गई थी।
पुलिस का तत्पर एक्शन जैसे ही सूचना मिली, जिले के पुलिस मुखिया के निर्देशों पर एसपी सिटी अभय सिंह तत्काल मौके पर पहुंचे और अपनी सूझबूझ से हालात पर काबू पा लिया। भारी पुलिस बल ने मोर्चा संभाला और कुछ ही घंटों में सिचुएशन कंट्रोल कर ली गई। पुलिस की इस तेज़ी का नतीजा यह रहा कि न तो शहर में कोई बड़ी जनहानि हुई, न ही उद्योग-व्यापार पर असर पड़ा। पुलिस ने साफ कर दिया— यह उत्तराखंड है, यहां कानून का राज है, किसी को भी गुंडाराज करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी, साथ ही पुलिस अब लोगों के सहयोग की बात कर रही है और साथ के साथ अपीलके साथ ही चेतावनी भी दे रही है। दोस्तो इस पूरे मामले को पुलिस गंभीरता से ले रही है और कई लोग हैं जो अभी पुलिस के रडर पर हैं और उनका यहां दबिस देना का काम चल रहा है और जल्द ही इस पूरे मामले में मास्माइंड का खुलासा भी हो सकता है, लेकिन काशीपुर की यह घटना भी एक चिंगारी है और अगर अब इसे गंभीरता से नहीं लिया गया, तो अगली बार यह चिंगारी बेकाबू आग बन सकती है। सरकार और पुलिस प्रशासन को अब सिर्फ उपद्रवियों को पकड़ने से आगे सोचना होगा। इतना भर नहीं है शायद इस पूरे आयोजन के पीछे कौन था?किसने भीड़ इकट्ठा की?किसने भड़काया?सोशल मीडिया पर किसने प्रचार किया?किसकी मिलीभगत से यह जुलूस निकला?इन सवालों के जवाबों तक पहुंचना ज़रूरी है, वरना ये घटनाएं बार-बार होंगी।