हिमालय से डराने वाली खबर ! Uttarakhand News | Badrinath | Gangotri Glacier |

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जी हां दोस्तो हिमालय से डराने वाली खबर, हिमालय से आई एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने देशभर की चिंता बढ़ा दी है। जिस हिमालय को आस्था, जीवन और सभ्यता का आधार माना जाता है, वहां अब संकट के संकेत साफ दिखने लगे हैं। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट ने हड़कंप मचा दिया है, क्या है उस रिपोर्ट में कैसे वैज्ञानिकों की रिपोर्ट डरा रही है बाताउंगा आपको। जी हां क्यों मै ये कह रहा हूं कि हिंदू आस्था पर बड़ा संकट मंडरा रहा है। दोस्तो वैज्ञानिकों की उस रिपोर्ट के पन्नों को आपके लिए पलटूगां, जिसने हड़कंप मचाने का काम किया है। दोस्तो गंगोत्री ग्लेशियर तेजी से सिमट रहा है जी हां सही सुना और इसके पीछे ग्लोबल वार्मिंग के साथ मानवीय हस्तक्षेप को बड़ा कारण माना जा रहा है सवाल ये है कि अगर यही हाल रहा, तो आस्था और अस्तित्व दोनों का भविष्य क्या होगा? हिमालय और हमारे गंगोत्री हमारे धाम केदार नाथ, बद्रीनाथ में कोई संकट आने वाले वक्त में चुनौती पेश करेगा।

दोस्तो हिमालय से आई एक वैज्ञानिक रिपोर्ट ने खतरे की घंटी बजा दी। देहरादून के डीबीएस महाविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के अध्ययन में खुलासा हुआ है कि गंगोत्री ग्लेशियर पिछले 60 साल में करीब 36 किलोमीटर तक सिकुड़ चुका है। ग्लोबल वार्मिंग, अवैज्ञानिक निर्माण, खनन और जंगलों की कटाई जैसे मानवीय कारण अब सीधे हिमालय की सेहत पर असर डाल रहे हैं। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यही हाल रहा, तो भविष्य में बड़ी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा और बढ़ सकता है। दोस्तो दून के DSB महाविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग ने गंगोत्री ग्लेशियर के साल दर साल सिकुड़ने पर अध्ययन रिपोर्ट तैयार की है। विशेषज्ञों की  रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 60 वर्ष में गंगोत्री ग्लेशियर 36 किलोमीटर तक सिकुड़ गया है। यानी इसका धनत्व 36 किमी कम हो गया है। दोस्तो वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर के सिमटने के कारण वैश्विक तापमान वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग), अवैज्ञानिक निर्माण, नदी घाटियों में खनन, जंगलों की कटाई, बसावट वाले क्षेत्रों में लगातार विस्तार के साथ साथ ओजोन प्रभाव के प्रमुख कारक को भी शामिल किया गया है DSB महाविद्यालय देहरादून के भूगर्भ विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दीपक भट्ट के अनुसार कि धराली आपदा का एक बड़ा कारण ग्लेशियर का सिकुड़ना और बर्फ विहीन चोटियों का कमजोर पड़ना भी रहा है। दोस्तो विज्ञानिकों का कहना है कि, वर्ष 1960 तक गोमुख ग्लेशियर की अंतिम टेल (पूंछ) धराली तक फैली हुई थी, लेकिन वर्ष 2025 आते-आते ग्लेशियर लगभग 36 किमी पीछे खिसककर गोमुख क्षेत्र के आसपास सिमट गया है।

यही नहीं दोस्तो इसके अलावा एक और बात जो वैज्ञानिक कहते हैं कि 13 से 14 हजार फीट ऊंचाई वाली चोटियों पर तापमान में सबसे तेज वृद्धि दर्ज की जा रही है। इसमें धराली गांव के ठीक ऊपर स्थित हिमाच्छादित चोटी भी शामिल है, जो पिघलते हिमखंडों के खतरे को और बढ़ा रही है। दोस्तो हिमालय शिवालिक क्षेत्र में जंगलों की आग, घाटियों में वाहनों के धुएं से भी वायुमंडल में कार्बन उड़ रहा है और इसका असर जलवायु में पड़ने से बारिश हिमपात में बदलाव हो रहा है। मौसम के तापमान में लगातार गर्मी बढ़ने से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ रही है। पिछले पांच सालों में पांच सेमी ग्लेशियर प्रतिदिन पीछे सरकने के भी आंकड़े दर्ज किए गए हैं। गंगोत्री ग्लेशियर का तेजी से सिमटना केवल एक वैज्ञानिक आंकड़ा नहीं, बल्कि आने वाले समय की गंभीर चेतावनी है। धराली जैसी आपदाएं इस बात का संकेत हैं कि हिमालय अब मानवीय दबाव को सहन नहीं कर पा रहा। विशेषज्ञों का साफ कहना है कि यदि पर्यावरण संरक्षण, नियंत्रित विकास और जलवायु परिवर्तन पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर न सिर्फ पहाड़ों बल्कि पूरे मैदानी इलाकों पर भी पड़ेगा। अब सवाल यही है—क्या हम समय रहते चेतेंगे, या यह चेतावनी भी अनसुनी रह जाएगी?