A viral audio exposed the truth in Uttarakhand | Uttarakhand News | Panchayat Election |

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उत्तराखंड में गोलियों की गूंज पर सूनाई दी और सियासत की तरफ से जो सफाई आई उसने कंन्यूजन में ही डाला। दोस्तो आज में आपके साथ होते विश्वसघात का काला चिठ्ठा खोलने आया हूं कि राजनीति में जो होता है वो कभी दिखाया नहीं जाता है। BJP President Mahendra Bhatt’s video goes viral एक ऑडियो ने कैसे प्रदेश में हड़कंम मचा दिया। दोस्तो हाल में उत्तराखंड में क्या नहीं हुआ… वो सब मैने आपने खूब देखा और समझा भी और मैने इस बीते दो पाच दिन घटनाक्रम पर चिंता भी जाहिर की है। अपनी खबरों की जरिए लेकिन दोस्तो उत्तराखंड में जिला पंचायत चुनाव के बाद सिर्फ नतीजे नहीं, गोलियों की आवाज़ भी गूंजी! और अब एक ऑडियो वायरल है — जिसमें कथित तौर पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ये कहते सुनाई दे रहे हैं। “चुनाव में तो गोलियां चलती ही रहती हैं!” पहले उस ऑडियो को सुना रहा हूं। जिसने कई सवालो को जन् दिया है। दो्त क्या? सच में क्या लोकतंत्र अब इतने नीचे आ चुका है कि गोलीबारी को “नॉर्मल” बताया जाए? या फिर ये सब एक राजनीतिक साज़िश है? आखिर सच क्या है? आपको कैसे पत चलेगा बल। ये नेता बताएंगे जो अपना सिर्फ इसलिए खो देदेते हैं कि जीत चाहिए कुर्सी चाहिए। आपको याद होगा एक नेता बीजेपी के जो पूर्व मंत्री हो चुके हैं वो क्यों हुए आपने देखा होगा प्रेमचंद्र अग्रवाल ने अपना मंत्री पद यूं ही नहीं गवाया। उन्होंने पहाड़ को गाली दी थी।

पहाड़ी को गाली थी और आज एक ऑडियो जो गूंज रहा है उसका क्या होगा हालांकि कहा गया कि ये ऑडडियो क्लिप बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट की है। उसके बाद वो सामने भी आये। मरता तो क्या नहीं करता वाली स्थिति थी दगड़ियो। कहा ये कहा ये गया कि ये वो महेंद्र भट्ट हैं जो धराली आपदा  में धराली नहीं पहुंचे वहां प्रभावितों का हाल नहीं जाना। उस वक्त ये पंचायत चुनाव के अध्यक्ष और प्रमुख की सेटिंग गेटिंग कर रहे थे। ये कांग्रेस ने कहा दोस्तो महेंद्र भट्र साहब तब एक बयान देने तक नहीं आए जब कांग्रेस वाले कह रहे थे सदस्चयों का अपहरण हो रहा है। जब बेतालघाट में गोली चली तब भी भट्ट साहब का वैसा रिएक्शन नहीं दिखा। क्यों भाई आज एक ऑडियो आता है तो आप तुरंत सफाई देने आते हैं। अब इस ऑडियो की स्च्ई क्या है। ये आप जाने मै इस ऑडियो की पुष्टी नहीं करता। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के दौरान बेतालघाट में फायरिंग हुई।एक व्यक्ति ने खुलेआम अंधाधुंध गोलियां चलाईं, जिससे पूरा इलाका दहशत में आ गया। इसी के बीच महेंद्र भट्ट का एक ऑडियो वायरल हुआ — जिसमें वो कहते सुनाई दे रहे हैं: “अरे चुनाव में तो गोलियां चलती ही रहती हैं.” ये लाइन सुनकर रूह कांप गी दोस्तो , लेकिन ये आवाज़ वाकई उनकी है या नहीं ये बता नहीं क्योंकि वो कहते हैं कि ये आवाज उनकी नहीं है। महेंद्र भट्र दगड़ियो ऑडियो वायरल होते ही विपक्ष ने चौतरफा हमला बोल दिय।

कांग्रेस बोली — “भाजपा के नेता लोकतंत्र को अपराध बना चुके हैं। सोशल मीडिया पर भट्ट को ‘गोलियों वाला नेता’ कहकर ट्रेंड किया जाने लगा इस बीच, महेंद्र भट्ट सामने आए। उन्होंने कहा“ये मेरी आवाज नहीं है, ये AI से छेड़छाड़ है। मेरी किसी से ऐसी कोई बात नहीं हुई। उन्होंने वीडियो जारी कर कहा कि जांच करवाई जाएगी। दगड़ियो मै तो सवाल करूंगा। अब सवाल ये है क्या वाकई ये AI से टेंपर किया गया ऑडियो है अगर हां, तो फिर इतनी रियलिस्टिक इंटोनेशन कैसे मुमकिन हुई? अगर नहीं, और आवाज़ असली है, तो क्या ये चुनावी हिंसा को जायज़ ठहराना है क्या सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता ये संदेश दे रहे हैं कि बंदूकें भी अब लोकतंत्र का हिस्सा हैं और अगर छेड़छाड़ हुई है — तो FIR, फोरेंसिक रिपोर्ट और टेक्निकल जांच कहां हैं? कुछ तो होगी ना या फिर सिर्फ मुझे और आपको ये सियासत मुर्ख बना रह है।

दोस्तो आज के दौर में AI वॉइस क्लोनिंग मुमकिन है। Deepfake, टेंपर्ड ऑडियो — सब संभव है। लेकिन सवाल यह है कि जब कोई नेता कथित टेंपर्ड ऑडियो का दावा करता है तो क्या उसे तकनीकी जांच से पहले खारिज करना सही है? क्या ये “AI का नाम लो और बयान से बच जाओ” वाला नया फार्मूला बन गया है क्या अब हर विवादित बयान को deepfake कह कर नेता बच निकलेंगे? दगड़ियो ये डरावना ट्रेंड है — जहां टेक्नोलॉजी को ढाल बना लिया गया है, लेकिन जवाबदेही कोई नहीं ले रहा। दगड़ियों चुनाव लोकतंत्र का पर्व होता है, लेकिन जब बंदूकें चलें, जब नेताओं की ज़ुबान से निकलें शब्द जो हिंसा को “सामान्य” बताएं —तो जनता क्या सोचे? क्या वोट से नहीं, अब गोलियों से कुर्सी तय होगी? क्या नेता हिंसा को ग्लोरिफाई कर रहे हैं क्या प्रदेश की राजनीति अब ‘गन कल्चर’ के इर्द-गिर्द घूम रही है उत्तराखंड जैसे शांत राज्य में इस तरह के बयान और घटनाएं बेहद चिंताजनक हैं। दोसतो अगर ये ऑडियो असली है, तो ये बेहद शर्मनाक है। अगर नकली है — तो ये और भी खतरनाक है क्योंकि इसका मतलब है कि अब हमारी आवाज़ें भी हथियार बन चुकी हैं। नेताओं से सवाल बनता है —आपके नाम पर गोली चले और आप कहें — चलता है!” तो फिर लोकतंत्र में क्या बचेगा उत्तराखंड की सियासत को ‘AI की जांच’ नहीं, असल ईमानदारी की जरूरत है। वरना अगले चुनाव में मतदाता नहीं, मशीनें वोट डालेंगी — और बंदूकें जीत तय करेंगी।