सेना में इतिहास रचने वाली उत्तराखंड की एक ऐसी महिला, पति की शहादत ने जिसकी बदल दी जिंदगी। दोस्तो कभी पति के कंधे से कंधा मिलाकर घर चलाया, फिर एक दिन तिरंगे में लिपटी बॉडी आई और सब कुछ बदल गया। Major Priya Semwal लेकिन दुख में टूटी नहीं, बल्कि फौलाद बन गई। आज में आपको उत्तराखंड की फौलादी महिला से मिलाने जा रहा हूं। दोस्तो ये कहानी है उत्तराखंड की एक वीरांगना की, जिसने पति की शहादत के बाद आंसू नहीं, हौसला चुना — और वही वर्दी पहनकर देश की सेवा में उतर पड़ी। जिस जगह से एक सैनिक की शहादत की खबर आई थी, वहीं अब उसकी पत्नी ने तैनाती पाई है। और आज वो इतिहास रच चुकी हैं, कौन हैं ये बहादुर बेटी? कैसे बदली उन्होंने अपनी किस्मत और कैसे बन गईं वो देश की प्रेरणा? दोस्तो बात उत्तराखंड की उस महिला की जो अब खुद ‘वर्दी’ हैं, नाम है प्रिया सेमवाल। प्रिया सेमवाल ने पति की शहादत का गम सहते हुए हार नहीं मानी, बल्कि उसी दर्द को ताकत बनाकर भारतीय सेना में न सिर्फ शामिल हुईं। वह पहली ऐसी महिला बन गईं जिन्हें सेना में स्थायी कमीशन मिला, जिसके बाद वह काफी चर्चा में रहीं।
प्रिया की कहानी उन तमाम लोगों के लिए मिसाल बन गई है जो तमाम बाधाओं के बाद भी मुकाम हासिल करते हैं। मै आगे आपको प्रिया सेमवाल की जिंदगी की चौनितियों और पति की शाहद के बाद कैसे बदली प्रिया सेमवाल की जिंदगी बताने जा रहा हूं। दोस्तो प्रिया सेमवाल उत्तराखंड के धोरण खास की रहने वाली हैं, वह पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहीं। उन्होंने BTech के बाद गणित में MSc और BEd भी किया, 2006 में उनकी शादी नायक अमित शर्मा से हुई और उनकी एक प्यारी बेटी ख्वाहिश है, लेकिन 2012 में अरुणाचल प्रदेश में आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन के दौरान उनके पति शहीद हो गए। दोस्तो ये वक्त किसी को भी तोड़ सकता था लेकिन प्रिया ने हिम्मत दिखाई और खुद को संभाला, उन्होंने फैसला किया कि वो अपने पति की वर्दी को सम्मान देंगी और खुद सेना में शामिल होंगी। दोस्तो 2014 का वो साल जब चेन्नई की ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी (OTA) से पास होकर वो भारतीय सेना की इलेक्ट्रिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग (EME) कोर में लेफ्टिनेंट बनीं, तो प्रिया सेमवाल ने बता दिया कि आंसू पोछकर कैसे प्रेरणा की कहानी लिखी जाती है।
दोस्तो, खास बात ये कि वो पहली ऐसी महिला बनीं जो एक शहीद नॉन-कमीशंड ऑफिसर की पत्नी होते हुए सेना में अफसर बनीं। दोस्तो प्रिया सेवाल की जिंदगी का ये एक मोड़ था, प्रिया का साहस सिर्फ जमीन तक सीमित नहीं रहा। 2022 में प्रिया सेमवाल भारतीय सेना की पहली ऑल-वूमेन सेलबोट एक्स-पेडिशन का हिस्सा बनीं… इस टीम ने नौसेना की नाव INSv बुलबुल पर गोवा, कारवार, मुंबई और कोच्चि तक करीब 1667 किलोमीटर की समुद्री यात्रा पूरी की। प्रिया ने इस दौरान न सिर्फ नाव चलाई, बल्कि टीम का नेतृत्व और सेफ्टी मैनेजमेंट भी संभाला। अब देखिए अपने उत्तराखंड की इस बेटी ने क्या क्या नहीं किया दगड़ियो प्रिया ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत का नाम रोशन किया। वह लेबनान-इजराइल बॉर्डर की तनावपूर्ण स्थिति में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का हिस्सा रहीं। वहां उन्होंने शांति स्थापना में अहम रोल निभाया और दिखाया कि भारतीय महिला अफसर किसी से कम नहीं, अब बात करता हूं स्थायी कमीशन की पहली महिला की, दोस्तो पहले भारतीय सेना में महिला अफसरों को सिर्फ शॉर्ट सर्विस कमीशन मिलता था, लेकिन प्रिया सेमवाल ने इतिहास रचते हुए स्थायी कमीशन हासिल किया साथ ही वो उत्तराखंड की पहली महिला अफसर भी बनीं। उनकी इस उपलब्धि ने हर किसी को गर्व महसूस करवाया, अब बात आती है कि कैसे एक शहीद की पत्नि को इतना साहस मिला होगा। कहां से प्रेरणा मिली होगी। जब इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते हैं तो जवाब कुछ यूं मिलता है कि वर्दी, जो वो वर्दी जो कभी प्रिया सेमवाल के पति ने पहनी थी।
दोस्तो मेजर प्रिया एक मां,पत्नी और सैनिक के रूप में हर रोल को निभा रही हैं। उन्होंने दिखाया कि चाहे कितनी भी मुश्किल आए, हिम्मत और मेहनत से सब कुछ मुमकिन है। उनकी कहानी हर उस बेटी के लिए मिसाल है जो बड़े सपने देखती है और उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखती है इसीलिए उन्हें उत्तराखंड का प्रतिष्ठित तीलू रौतेली सम्मान भी मिला है। दगड़ियो अपने उत्तराखंड को यूं ही वीरों की भूमि नहीं कहा जाता, यहां की मिट्टी में जन्म लेने वाला हर बच्चा देशभक्ति के जज़्बे में पला-बढ़ा होता है, और एक ऐसी ही वीरांगना की कहानी — जिसने पति की शहादत के बाद सिर्फ़ सिंदूर नहीं, वर्दी भी संभाल ली और इतिहास रच डाला। उसने साबित कर दिया कि उत्तराखंड की बेटियां सिर्फ आँसू नहीं बहातीं, बल्कि जब ज़रूरत हो तो बंदूक भी थाम लेती हैं — देश की रक्षा के लिए, सम्मान के लिए वो इतिहास के पन्नों पर नाम जोड़ती हैं। दोस्तो ये सिर्फ एक खबर नहीं, ये एक संदेश है, हर उस इंसान के लिए जो हालात से हार मान लेता है। सलाम है उस बेटी को, जिसने न सिर्फ उत्तराखंड का, बल्कि पूरे देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।