उत्तराखंड के उपचुनाव में भी बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। यहां मंगलौर और बद्रीनाथ दोनों सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई है। Bjp Defeat In Uttarakhand गौर करने वाली बात है कि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अयोध्या जैसी सीट पर हार के बाद अब बद्रीनाथ से भी बीजेपी को शिकस्त मिली है। अब राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म है। उपचुनाव के रिजल्ट ने उत्तराखंड में एक अलग राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में लगभग दो-तिहाई से अधिक सीट जीतने वाली भाजपा को बड़ा झटका लगा है। 2014 के बाद बाद से प्रदेश में यह पहला मौका है, जब कांग्रेस पार्टी को किसी भी चुनाव में भाजपा से अधिक सीटें आई हैं। या यूं कहें कि उन्होंने भाजपा को कोई भी सीट जीतने नहीं दी है।
भाजपा की इन उपचुनावों में रणनीति पूरी तरह से फेल हुई है और दोनों ही सीट पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव की हार को केवल सदन में संख्या के बदलाव के रूप में नहीं देखा जा सकता। बल्कि चुनावी परिणाम दूसरे कई राजनीतिक समिकरणों को भी बदलता है। गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी द्वारा लोकसभा चुनाव से पहले राजेंद्र भंडारी को मास्टर स्ट्रोक के रूप में भाजपा में शामिल करवाया गया था। लेकिन यह अब भाजपा के ही गले की हड्डी बनने लगी है। कांग्रेस से भाजपा में लाए गए राजेंद्र भंडारी के लिए वोट मांगने प्रदेश के बूथ लेवल कार्यकर्ता से लेकर पूरी कैबिनेट बद्रीनाथ विधानसभा में घूम रही थी लेकिन जनता के मन की बात कोई नहीं समझ पाया। अब जनता ने भाजपा और कांग्रेस से भाजपा में आए राजेंद्र भंडारी को एक झटके में झटक दिया है।
उपचुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है कि जनता जबरदस्ती के थोपे चुनाव और दल बदलू नेता को किसी भी सूरत में बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। एक तरफ जहां जनता की नाराजगी साफ-साफ इस उपचुनाव के परिणाम में देखने को मिल रही है, वहीं अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी देखने को मिल सकती है क्योंकि जब से राजेंद्र सिंह भंडारी भाजपा में शामिल हुए हैं तब से भाजपा के कार्यकर्ता खुद को असमंजस की स्थिति में देख रहे हैं। यही एक कारण भी रहा कि भाजपा को यहां प्रचार में प्रदेश के अधिकतर कैबिनेट मंत्री, गढ़वाल सांसद, कुमाऊ सांसद, राज्य मंत्रियों सहित खुद मुख्यमंत्री धामी के भी शामिल होने के बाद भी सफलता नहीं मिल पाई। जनता ने साफ कर दिया कि अब जबरन थोपे गए प्रत्याशियों के जमाने लद गए। बद्रीनाथ में भाजपा जनता का मिजाज भांपने में विफल रही।