उत्तराखंड में हरक सिंह रावत के बाद, कैसे खुल गई अफसरशाही की पोल अब जब खुद कमिश्नर हाजिर हुए तो स्वास्थ्य विदेशक समेत कई मिल गए गैरहाजिर फिर क्या हुआ बल बताउंगा आपको पूरी खबर। Statement of Congress leader Harak Singh Rawat दोस्तो पौड़ी में हरक सिंह रावत ने एक बयान दिया था, उस आक्रामक बयान या चेतावनी का असर कह लीजिए या फिर कुछ और पौड़ी कमिश्नर सहाब पहुंचे ही नहीं बल्की वहां पहुंचते ही एक्शन में नजर आये। वैसे ये जिले से जुड़ी समस्या नहीं है, पूरे पहाड़ी क्षेत्रों से कैसे अधिकारियों की बैरूखी रही ये किसी से छिपी नहीं है। दगड़ियो जब जनता पुकारे और अधिकारी फोन तक न उठाएं – अब गढ़वाल कमिश्नर ने दिखाई सख्ती पूरी खबर कुछ इस तरह से हैं। दगड़ियो उत्तराखंड के पहाड़ों में जनता पहले से ही बुनियादी सुविधाओं की कमी, दुर्गम भूगोल और अनदेखी की मार झेल रही है। ऐसे में जब अफसरशाही खुद जनता की पहुंच से बाहर हो जाए, तो हालात और गंभीर हो जाते हैं। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। गढ़वाल कमिश्नर विनय शंकर पांडेय ने पौड़ी में कदम रखते ही जो तेवर दिखाए, उसने लापरवाह अफसरों को चेतावनी दे दी है — अब काम नहीं तो कुर्सी नहीं। अब ये तेवर अचानक से कहां से आ गये बल आज तक तो कभी ऐसा दिखा ही नहीं अब इसे कमिश्नर साहब की सख्त कहें या फिर जहां वो बैठे रहते थे वहां की सख्ती देहरादून की यहीं तो बैठते हैं ज्यादातर पहाड़ के अधिकारी।
इस पर मै आगे बात करूं बताउं आपको अधिकारियों की पहाड़ पर नहीं रुकने की वजह उससे पहले आप इस घटना क्रम की जड़ को समझि इस बयान से दरअसल दगड़ियो हरक सिंह रावत ने चेतावनी दी की अगर 15 दिन में गढ़वाल कमिश्नर पैड़ी में बैठे तो वो आंदोलन करेगें, उसके बाद सवालों का सिलसिला जो शुरूहुआ वो थमा नहीं अब जब गढवाल कमिश्नर पहुंचे पौड़ी तो शिकायतें खूब रही होंगी तो उनका सख्त होना भी लाजमी था या उनका बिफरना भी जायज लगता है। दगड़ियो शिकायतें लगातार सामने आ रही थीं कि जिले के तमाम अफसर जनता की कॉल तक रिसीव नहीं करते। समस्याओं का समाधान करना तो दूर, बात तक नहीं सुनते। इस रवैये से नाराज कमिश्नर ने साफ शब्दों में कहा जनता जब फोन करती है तो उम्मीद लेकर करती है, और उस कॉल को न उठाना केवल लापरवाही नहीं, जनता के विश्वास से धोखा है। उन्होंने अधिकारियों को सीधी चेतावनी दी कि भविष्य में इस तरह की गैर-जिम्मेदारी दिखाई दी तो कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। दगड़ियो गढ़वाल कमिश्नर का सख्त रुख केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने विभिन्न विभागों का औचक निरीक्षण किया और सच्चाई सामने आई। स्वास्थ्य निदेशक कार्यालय में न तो निदेशक मौजूद थे, न ही तीन अन्य कर्मचारी, कमिश्नर की आंखों के सामने जब यह गैर-हाजिरी उजागर हुई तो उन्होंने तत्काल सीडीओ को निर्देशित किया कि सचिव स्वास्थ्य और डीजी हेल्थ को पत्र भेजा जाए और गैरहाजिर अधिकारियों पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए साथ ही कह दिया गया कि स्वास्थ्य सेवाएं सीधे जनता के जीवन से जुड़ी होती हैं। इसमें लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी, वैसे दगड़ियो पहाड़ में अफसरशाही की पुरानी बीमारी – “अनदेखी और गैरमौजूदगी।
सवाल ये उठता है कि क्या ये समस्या नई है? बिल्कुल नहीं, पहाड़ों में अफसरशाही का एक “पैटर्न” बन चुका है पोस्टिंग तो होती है लेकिन अधिकारी अक्सर नदारद रहते हैं। जनता कार्यालयों का चक्कर लगाती है, लेकिन वहां सिर्फ कुर्सियाँ होती हैं, अफसर नहीं। अब इस पौड़ी में अफसर का पहुंचना तो हरक सिह रावत की देन कहा जाएगा कुछ हफ्ते पहले पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने भी इस मुद्दे को ज़ोरदार ढंग से उठाया था। उन्होंने पौड़ी में कहा था कि जिले में अधिकारी अपने तैनाती स्थल पर नहीं बैठते जनता दर-दर भटक रही है और समाधान के नाम पर सिर्फ आश्वासन मिलते हैं। वैसे दगड़ियो हरक सिंह का गुस्सा भी जायज था — उन्होंने साफ कहा था कि अगर अधिकारी जनता से मिलेंगे ही नहीं तो फिर प्रशासनिक व्यवस्था का मतलब क्या रह जाता है? दगड़ियो अपने पहाड़ में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी — हर सुविधा के लिए संघर्ष करना पड़ता है लेकिन जब अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी से भागें तो जनता कहां जाए? गांवों से लोग घंटों पैदल चलकर जिला मुख्यालय पहुंचते हैं, और वहां उन्हें पता चलता है कि “साहब आज नहीं आए, अब गढ़वाल कमिश्नर ने जो सख्त संदेश दिया है, उससे उम्मीद जगी है कि शायद अब जिम्मेदारों पर लगाम लगेगी उनके दौरे से विभागों में हड़कंप है, और अनुशासन और जवाबदेही की बात फिर से केंद्र में आने तो लगी है लेकिन ये यहां कब तक होगा और दूसरे जिलों का क्या होगा जहां पर अफरशीही मौज काटती है और जनता परेशानियां झेलने को मजबूर रहती है। अब दगड़ियो एक और सवाल है कि गढ़वाल कमिश्नर की सख्ती से जनता को थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन असली बदलाव तब होगा जब ये सख्ती नियम बन जाए औचक निरीक्षण आदत बने, और अधिकारियों को यह अहसास हो कि वो जनता के सेवक हैं, मालिक नहीं, अब वक्त आ गया है कि पहाड़ों में दूरदराज के इलाकों की आवाज़ सुनी जाए, और अफसरशाही को जिम्मेदार नागरिक सेवक बनाया जाए। वैसे दगड़ियो ये भी सच है कि यह पहली बार नहीं है जब अधिकारियों की गैरमौजूदगी पर सवाल उठे हों। पहाड़ों की सच्चाई ये है कि अधिकांश अधिकारी अपने तैनाती स्थल पर समय पर नहीं बैठते। जनता कार्यालयों का चक्कर काटती हैअधिकारी फील्ड में तो क्या, ऑफिस में भी नजर नहीं आते। ग्रामीण इलाकों में समस्या गंभीर, कोई सुनवाई नहीं हाल ही में पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने भी इसी मुद्दे को लेकर सरकार और प्रशासन को घेरा था।
ऐसा और जिलों में भी होना चाहिए दगड़ियो आपको भी बताना चाहिए कि आपके क्षेत्र के अधिकारी क्या करते हैं कब आते कब नहीं आप चाहें तो कमेट कर मुझे भी बता सकते हैं क्योंकि हरक सिंह रावत ने कहा था पौड़ी जिले में अधिकारी अपने पदस्थ स्थानों पर मौजूद नहीं रहते, जनता परेशान है, सुनवाई नहीं होती। हरक सिंह की बात अब गढ़वाल कमिश्नर की कार्रवाई से सच मालूम पड़ती है। फिलहाल तो गढ़वाल कमिश्नर की कार्रवाई से जनता को राहत तो मिलती दिखाई दे रह है, लेकिन यह भी सवाल है। क्या यह एक बार की कार्रवाई है, या आने वाले समय में सिस्टम को ठीक करने की स्थायी पहल? वैसे लोग क्या चाहते बल नियमित उपस्थिति जनता की कॉल्स का जवाब समस्याओं का समाधान समय पर पहाड़ों में तैनात हर अधिकारी जनता के प्रति जवाबदेह होता है लेकिन अपनी कुर्सी पर बैठे तो ऐसी लापरवाही और गैरहाजिरी पर Zero Tolerance Policy लागू हो। अफसरों को याद रहे कि उनकी नौकरी का मकसद जनता की सेवा है, न कि सुविधा