Assembly Backdoor Recruitment Case: उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद जिस तरह से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एसटीएफ को जांच के मोर्चे पर उतारकर नकल माफिया और भर्तियों के घपलेबाज घड़ियालों के खिलाफ अभियान छेड़ा उसी के साए में विधानसभा में बैकडोर भर्तियों पर बवंडर मच गया। स्पीकर ऋतु खंडूरी ने भी करप्शन के खिलाफ छिड़ी जंग में खुद को सबसे बड़ा चैंपियन साबित करने के लिए एक बड़ा निर्णय ले लिया। स्पीकर ने राज्य गठन के बाद से लेकर बीती विधानसभा के कार्यकाल तक हुई सभी नियुक्तियों को लेकर एक्सपर्ट कमेटी बिठा दी।
रिटायर्ड आईएएस डीके कोटिया की अध्यक्षता में स्पीकर द्वारा गठित कमेटी ने नियुक्तियों का बीते दो दशक के दस्तावेज खंगाले और पाया कि पूर्व विधानसभा अध्यक्षों ने बैकडोर से अवैध भर्तियां कर डाली। रिपोर्ट मिलने के अगले ही दिन स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण ने आनन फानन प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर विधानसभा में 228 तदर्थ और 22 उपनल के जरिए हुई भर्तियों को बर्खास्त करने का ऐलान कर दिया। यानी एक झटके में 250 कर्मचारियों, जिनमें 150 की भर्ती 2016 में हरदा सरकार में स्पीकर रहते गोविंद सिंह कुंजवाल करके गए थे और 100 की भर्ती वर्तमान में संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने पिछली बीजेपी सरकार में स्पीकर रहते चुनाव में जाते-जाते कर डाली थी।
हो सकता है स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण की मंशा प्रदेश में दीमक की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार पर प्रहार कर एक मिसाल पेश करने की रही हो। लेकिन अब यह जल्दबाजी में फैसला लेने के कारण हुई त्रुटि रही या फिर उनके सलाहकारों ने ही पटकथा ऐसी लिख डाली कि हाईकोर्ट में बहस और सुनवाई का पहला झटका भी उनका नियुक्तियां निरस्त करने वाला ‘ऐतिहासिक’ फैसला झेल नहीं पाया। अब जब नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले से दोबारा नौकरी पर बहाल हो गए 250 कर्मचारियों के चेहरे खिल उठे हैं तो विपक्षी निशाने पर स्पीकर और सरकार को ले रहे हैं कि यह सब इमेज बिल्डिंग को लेकर सिर्फ स्टंटबाजी थी।
जाहिर है अपने फैसले को सही साबित करने की चुनौती सिर्फ और सिर्फ स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के सामने आन खड़ी हुई है क्योंकि एक्सपर्ट कमेटी गठित करने से लेकर उसकी रिपोर्ट पर एक्शन लेने तक मामला विधानसभा अध्यक्ष और विधानसभा सचिवालय के अधिकार क्षेत्र तक ही सीमित रहा। सवाल है कि आखिर इतना बड़ा फैसला लेते हुए स्पीकर ऋतु खंडूरी को इतनी हड़बड़ी दिखाने की क्या दरकार थी? क्या तीन रिटायर्ड नौकरशाहों की सिफारिश मिलने के बाद इस मामले के तमाम कानूनी पहलुओं की पड़ताल की गई थी? क्या कई प्रदेशों से हायर ‘काबिल सलाहकारों’ में से किसी ने भी इस अहम मामले में स्पीकर को विधिक पक्ष जानने जैसी सलाह देना मुनासिब नहीं समझा?
जाहिर है स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के अमन अब खुद के फैसले को सही साबित करने की बड़ी चुनौती है क्योंकि हाईकोर्ट का स्टे आदेश तदर्थ कर्मचारियों के लिए दोहरी खुशी वाला साबित हो सकता है। एक तो नौकरी से बर्खास्तगी के बाद दोबारा बहाली हो गई है, दूसरा अब जब विधानसभा सचिवालय नियमित भर्ती की प्रक्रिया शुरू करेगा तब इन तदर्थ कर्मचारियों को इग्नोर करना आसान नहीं होगा। यानी इन कर्मचारियों के लिए ऋतु खंडूरी का फैसला ‘वरदान’ साबित न हो जाए! सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जो गलती बैकडोर भर्ती करते हुए गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल ने की थी, उन कर्मचारियों को हटाते हुए स्पीकर ऋतु खंडूरी ने भी गलत रास्ता नहीं अख्तियार कर लिया? जाहिर है इस द्वंद्व से स्पीकर ऋतु खंडूरी को आने वाले लंबे वक्त तक अकेले ही जूझना होगा।