देहरादून: देश में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार नए प्रयास करने की बात कहती रही है। इस कड़ी में उत्तराखंड सरकार ने ऐसा फैसला लिया है जिसे अब तक केवल मध्य प्रदेश सरकार ही ले पाई थी। मामला मेडिकल एजुकेशन हिंदी में किए जाने से जुड़ा है। खास बात यह है कि राज्य सरकार अगले सेशन से डॉक्टरी की पढ़ाई हिंदी में शुरू करने का भी ऐलान कर चुकी है। हालांकि यह कैसे संभव होगा, इस पर अभी कुछ संदेह जरूर जताया जा रहा है।
वैसे आपको बता दें कि चिकित्सा शिक्षा विभाग की तरफ से मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में करने के लिए सिलेबस को लेकर 4 सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया गया है। ये कमेटी श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य सीएमएस रावत की अध्यक्षता में काम करेगी। हालांकि उत्तराखंड में भी हिंदी माध्यम से मेडिकल की पढ़ाई शुरू किए जाने की बात सामने आते ही इसको लेकर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। इस मामले पर कांग्रेस संदेह जताते हुए सरकार के प्रयासों को केवल बातूनी करार दे रही है।
हिंदी माध्यम से एमबीबीएस करवाने को लेकर ऐसे कई सवाल उठाए गए हैं, जिनका जवाब सरकार को जनता के सामने रखना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया भर में नई तकनीक के लिए जाने वाले चिकित्सकों के लिए हिंदी माध्यम से पढ़ाई कितनी प्रासंगिक है, ये एक ज्वलंत सवाल बना हुआ है। ऐसे कुछ सवाल जो जेहन में आते हैं। “मेडिकल एजुकेशन में प्रयोग होने वाले तकनीकी शब्दों का हिंदी अनुवाद कर पढ़ाना कितना संभव। कई ऐसे अंग्रेजी शब्द हैं जिन्हें हिंदी में उच्चारण करना होगा काफी मुश्किल। देश में ही ऐसे कई राज्य हैं जहां हिंदी का नहीं है प्रचलन, ऐसी स्थिति में दुनिया के देशों में ऐसे चिकित्सक कैसे कर पाएंगे प्रैक्टिस। एमबीबीएस के बाद मेडिकल की उच्च डिग्रियों के साथ हाईटेक होती तकनीक के लिए विदेशों में कैसे ग्रहण कर पाएंगे ऐसे छात्र शिक्षा।”
आपको बता दें कि मध्य प्रदेश सरकार ने इसी साल से फर्स्ट ईयर एमबीबीएस छात्रों के लिए हिंदी पाठ्यक्रम को शुरू किया है। इस पाठ्यक्रम को तैयार करने के लिए मध्य प्रदेश के 97 चिकित्सकों ने 4 महीने में अंग्रेजी की किताबों का हिंदी अनुवाद किया था। फिलहाल इस साल से एमबीबीएस के प्रथम वर्ष के छात्रों के तीन विषयों जिसमें एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री शामिल है, इन तीनों विषयों की हिंदी की किताबों शुरू किया गया है. पिछले महीने देश के गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश में इन तीनों किताबों को जारी किया था। उत्तराखंड में हिंदी माध्यम की किताबों के सिलेबस का मसौदा इन्हीं किताबों के अध्ययन के जरिए तैयार किया जाएगा।
हालांकि उत्तराखंड में एमबीबीएस की हिंदी माध्यम से पढ़ाई को लेकर क्या परिणाम होते हैं, यह तो भविष्य तय करेगा, लेकिन विपक्ष के प्रहार इस मामले पर तेज हो गए हैं। इस मामले पर भाजपा भी अपनी सरकार के बचाव में उतरते हुए कहती है कि कांग्रेस हमेशा हिंदी और देश का अपमान करती रही है। देश में कोई काम बेहतर हो रहा है तो कांग्रेस केवल उसका विरोध करने का काम करती है। राज्य की चिकित्सा शिक्षा पर हिंदी को प्राथमिकता देने की दो प्रमुख वजह मानी जा रही हैं। पहला तो हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले वो छात्र हैं जो मेडिकल की पढ़ाई अंग्रेजी में करने में दिक्कतें महसूस करते हैं। माना जा रहा है कि इसके बाद छात्रों को मेडिकल की पढ़ाई करने में आसानी होगी। उधर दूसरी तरफ इसके जरिए हिंदी को बढ़ावा देने की भी कोशिश इन सरकारों की मानी जा रही है।