उत्तराखंड में बीजेपी फिर करने जा रही है प्रयोग चुनाव से पहले होगा कुछ ऐसा कि धामी भी कुर्सी नहीं बचा पाएंगे? क्या है ऐसी खबर जिसने उत्तराखंड की सियासत के साथ ही जनता को सोचने को मजबूर कर दिया गया। Atmosphere against CM Dhami पूरी खबर बताउंगा आपको और जिस तरह का माहौल सेट किया जा रहा है वो बहुत कह रह है। दगड़ियों मै ये क्यों कह रहा हूं कि सीएम पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ माहौल, इसके कई कारण हैं कई उदारण हैं और प्रदेश का मौजूदा सियासी घटना क्रम भी बता रहा है कि कुछ तो हो रहा है और कुछ बड़ा होने वाल है, हो सकता है ये आज हो जाय। हो सकता है चुनाव से ठीक एक साल या छह माह पहले हो ऐसा कई राज्यों में बीजेपी ने करके दिखाया है। आगे बताउंगा आपको एक वो बात जो प्रदेश के मुख्यंमंत्री की कुर्सी की ओर इशारा कर रही है। दगड़िओ एक बहुत बड़ी बात मैने आपको अपने इससे पहले वाले वीडियो में बताइ कि कैसे खतरे में पड़ती दिख रही है पुष्कर सिंह धामी की कुर्सी कैसे बीजेपी के नेताओं को ही खटक रहे हैं धमी और उसमें मेने एक सावल भी किया था, कि कब तक मुख्यमंत्री रह पाएंगे पुष्कर सिंह धामी। लेकिन दोस्तो एक दूसरा पहलू भी है जो ये सोचने को मजबूर कर रहा है कि विधानसभा चुनाव 2027 क्या बीजेपी धामी के नेतृत्व में ही लड़ेगी या नहीं, यहां बीजेपी का कुछ हालिया पूराना प्रयोग और उत्तराखंड में जो होता रहा है।
एक मुख्यमंत्री को छोड़ किसी ने भी अपने 5 साल पूरे नहीं किए, तो क्या पुष्कर सिंह धामी वो दूसरे मुख्यमंत्री होगें। जो अपना कार्यकाल 5 साल पूरा करेंगे या फिर कुछ और होने जा रहा है। बड़ा होने जा रहा है। दगड़ियों जैसा कि हम सब जानते हैं कि बीजेपी प्रयोग करती है और इधर हालिया प्रदेश का घटनाक्रम देखेंगे तो बहुत कुछ सवालों को जन्म देने वाले दिखाई दिया। अब बात कहां से शुरूकरूं समझ नहीं हा रहा है। दोस्तो हालही में दिल्ली में अचानक से एक बैठक होती है जिस बैठख में प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट और मुख्यमंत्री धामी भी होते हैं। इस बैठक में कुछ सांसदों के होने कुछ के ना होने पर खूब सवाल हुआ। इस दिल्ली दर्शन के बाद दो चीजें देखने को मिली एक तो इसे उत्तराखंड मंत्रिमंडल में विस्तार और बीजेपी की टीम कैसी हो जो 27 का रथ खींच सके। ऐसा कुछ दिखाया गया, दूसरा ये कि इस बैठक से नाराज होकर गए त्रिवेंद्र सिंह रावत। ऐसी खबरें आई उसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत की एक ही कूरते में प्रदेश के कई पूर्व मुख्यमंत्रीयों के साथ फोटो वायरल होने लगी तो सियासी जानकारों का कहना है कि कुछ बड़ा होने वाले है। वैसे आपने देखा होगा एक तरफ प्रदेश आपदा कई क्षेत्रों में मुख्यमंत्री और प्रदेश सरकार के खिलाफ माहौल दिखाई दिया उसके बाद हरक सिंह रावत के उस बयान ने हल्ला किया कि बीजेपी भ्रष्टाचार किया। मै उसका गवाह हूं, इस मामले में बीजेपी उस तरह से डिफेंड़ करती नहीं दिखाई दी और ना ही धामी। साथ ही आग में घी डालने और महौल को और गरमाने का काम प्रदेश में कुछ महिनों के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कर दिया उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि भ्रष्टाचार की गाड़ी आज भी दौड़ रही है, बस ड्राइवर बदल गया है। इन सब सब घनाओं को आप जोड़कर देखेंगे। तो आपको इसके केंद्र में और कौई नहीं धामी दिखाई देंगे। अब आगे बढ़ता हूं मेने कहा ना कैसे धामी की मुख्मयमंत्री की कुर्सी को चार ओर से खींचा जा रहा है।
अब इसमें एक और मुख्यकारण प्रदेश में किस मुख्यमंत्री ने अपने 5 साल पूरे किए। मात्र एक मुख्यमंत्री, स्वरगीय नरायणदत्त तिवारी बस..इसके बाद तो कभी कोई कभी कई 5 साल में दो दो तीन तीन मुख्यमंत्री बदलते इस प्रदेश ने देख लिए, और बीजेपी तो इसमें कांग्रेस बहुत आगे हैं। प्रदेश की नीव जब पड़ी तब शुरूआत में नित्यान्द स्वामी, उसके बाद चुनाव से ठीक एक साल पहले भगत सिंह कोशियारी, लेकिन कोशियारी वाला फैसला बीजेपी को उटा पड़ गया। सरकार कांग्रेस ने बना ली प्रदेश के मुख्यमंत्री बने नारायण दत्त तिवारी। आगे क्या बताऊं कांग्रेस डाल-डाल तो बीजेपी पात, खंडूरी निशंक फिर चुनाव से पहले खंडूरी, उसके बाद कांग्रेस हरीश रावत फिर बहुगुना फिर बीजेपी त्रीवेंद्र रावत तीरथ रावत फिर धामी, ये ही प्रदेश की असलियत और प्रदेशों में जनता के लिए बहुत कुछ बदलता है। हमारे उत्तराखंड में मुख्यमंत्री इतनी तेजी से बदलते हैं। जैसे कोइ रिकार्ड बनाना हो या तोड़ना हो, इसलिए एक कारण ये भी है कि क्या धामी अपने पांच साल पूरे करेंगे या उनकी कुर्सी खतरे में। वहीं दूसरी ओर बीजेपी के मौजूदा ट्रेन्ड को आप देखते हैं देश के फलक पर तो यहां बीजेपी ने कई प्रयोग किये हैं और बीजेपी को सफलता भी मिली है। कुछ एक राज्यों को छोड़ कर जो अपवाद माने जा सकते हैं। दगड़ियों बीजेपी चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री का चेहरा बदल रही है। हाल ही में हरियाणा में देखने को मिला जहां तब के मुख्यमंत्री मनोहर लाल मुख्यमंत्री का काल का रिकार्ड बना रहे थे। तब बीजेपी के केंद्रीय नेत्रत्व ने खट्टर को हटाकर नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया और चुनाव भी सैनी के नेतृत्व में लड़ा गया और जीत मिली त्रिपुरा में कुछ ऐसा देखने को मिला गुजरात में बीजेपी ने विजय रुपानी की जगह भूपेंद्र पटेल को जिम्मेदारी दी।
हां कर्नाटका में बीजेपी को सफलता नहीं मिली लेकिन प्रयोग यहां कुछ ऐसा किया था। सीएम चेहरा बदलकर सत्ता में वापसी का बीजेपी का सबसे सफल प्रयोग उत्तराखंड का रहा, तब उत्तराखंड में बीजेपी नेतृत्व को अंदाजा हो चुका था कि पार्टी जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी लहर से जूझ रही है। इसकी काट के लिए बीजेपी ने दो बार राज्य में अपने मुख्यमंत्री बदले। 2017 में बीजेपी जब उत्तराखंड में चुनाव जीती तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम बनाया गया। 2021 आते-आते रावत के खिलाफ विधायकों का असंतोष बढ़ गया। लिहाजा आलाकमान ने रावत को सीएम पद से हटा दिया और 10 मार्च 2021 को राज्य की बागडोर तीरथ सिंह रावत को सौंप दी गई। तीरथ सिंह रावत सत्ता, जनता और प्रशासन पर छाप छोड़ने में सफल नहीं रहे और 4 महीने बाद सीएम पद से उनकी छुट्टी हो गई। उसके बाद 4 जुलाई 2021 को पुष्कर सिंह धामी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। मार्च 2022 में बीजेपी पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चुनावी जंग में उतरी और जीत हासिल की, लेकिन अब सवाल आने वाले विधानसबा चुनाव को लेकर क्या बीजेपी फिर से कोई प्रयोग करने जा रही है। इतना ही नहीं दगड़ियों हरियाणा में तो जहां विरोध मुख्यमंत्री के खिलाफ नहीं था, जहां सरकार को सीएम फेस पर फिलहाल कोई खतरा नहीं था, वहां पर बीजेपी ने अचानक मुख्यमंत्री बदल दिया? अगर 97 दिन और मनोहर लाल खट्टर सीएम रह लेते तो हरियाणा के सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री बन जाते, लेकिन उससे पहले विदाई हो गई। लेकिन क्या उत्तराखंड में धामी बनेगे योगी जी हां योगी आदित्यनाथ ही एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनकी कुर्सी की तरफ कोई फिलहाल देख नहीं सकता। इसके कारण कई हो सकते हैं, वरना बीजेपी लोकसभा चुनाव मेंबीजेपी का प्रदर्शन था उस हिसाब से तो तय था। खैर उत्तऱाखंड को लेकर सोचना होगा और धामी की कुर्सी को देखना होगा, क्या अगला चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लगा जाता है या फिर नहीं और हां यहां टायमिग बहुत जरूरी है। ये केंद्रीय नेतृत्व तय करता है कि कब सीएम का फेस बदलाना है। चुनाव से एक साल पहले या फिर 6 माह पहले जहां पार्टी को जीत लगे या पार्टी का फायदा दिखे वहीं।