उत्तराखंड में विभागों का बड़ा खेल ! | Uttarakhand News | CM Dhami

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जी हाँ दोस्तो, उत्तराखंड में विभागों के बीच चल रहा करोड़ों का ‘बड़ा खेल’ अब खुलने लगा है, और इसका सबसे खौफ़नाक असर पड़ रहा है एक ऐसे विभाग पर, जो खुद ही अब घाटे में डूबकर सांसें गिन रहा है। Big game of departments in Uttarakhand करोड़ों की उधारी, बढ़ता आर्थिक बोझ और अब कर्मचारियों पर मंडरा रहा एक बड़ा संकट! आखिर वेतन पर संकट क्यों? कौन जिम्मेदार है इस ‘मौन लूट’ का? और कैसे विभागों की लापरवाही ने निगम को कगार पर पहुंचा दिया? दोस्तो उत्तराखंड में विभागों में खूब खेल हुआ घपना घोटाला, सब कुछ देखा है, लेकिन अब मामला GMVN की 19 करोड़ की उधारी का है और दोस्तो चौकाने वाली बात ये है कि इस 19 करोड़ की उधारी को चुकाने को तैयार नहीं हैं विभाग,जिस वजह से घाटे में डूबाता निगम तो EPF भी अटक गया और सबसे बड़़ी बात कर्मचारियों पर संकट मंडराने लगा है। दोस्तो सीधे शब्दों में कहूं तो घाटे में चल रहे गढ़वाल मंडल विकास निगम (जीएमवीएन) को सरकार के विभाग ही चूना लगा रहे हैं। कई चिट्टियां लिखने के बाद भी जीएमवीएन की उधारी चुकाने को विभाग तैयार नहीं हैं। इन हालातों ने आर्थिक संकट के जूझ रहे जीएमवीएन के कर्मचारियों के लिए और भी बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। जीएमवीएन फिलहाल अपने कर्मचारियों का वेतन देने की भी स्थिति में नहीं दिखाई दे रहा, ऐसे में विभागों ने उधारी न देकर प्रदेश के पर्यटन को बढ़ावा देने वाले इस निगम की उम्मीदों को तोड़ दिया है। दोस्तो आगे में आपको कुछ आकड़े दिखा रहा रहा हूं गौर कीजिएगा।

GMVN के आंकड़ों के अनुसार, दोस्तो कुल 19 करोड़ रुपए की देनदारी बनी हुई है, जिसमें से सचिवालय प्रशासन को करीब 14 करोड़ 59 लाख रूपये देने हैं। दोस्तो आगे देखिए ये तो कुछ भी नहीं है, कैसे घाटे में है निगम राज्य स्थापना से अब तक मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात कर्मचारियों के वेतन के रूप में कुल करीब सात करोड़ 51 लाख रुपए देने थे। मुख्यमंत्री आवास में काम करने वाले कर्मचारियों का कुल करीब करोड 95 लाख रुपए देना था.इसमें से करीब दो करोड़ 86 लाख रुपए विभाग ने GMVN को लौटा दिए। दोस्तो ये वो वजह है जिससे उत्तराखंड में पर्यटन विकास की महत्वपूर्ण इकाई गढ़वाल मंडल विकास निगम यानी GMVN इन दिनों गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहा है। घाटे में चल रहे निगम की स्थिति तब और बिगड़ गई जब सरकार के दो प्रमुख विभाग- सचिवालय प्रशासन और राज्य संपत्ति विभाग ने निगम के बार-बार पत्र लिखने के बावजूद उसकी 19 करोड़ रुपये की बकाया देनदारी का भुगतान नहीं किया। इससे न सिर्फ निगम की वित्तीय रीढ़ कमजोर हुई है, बल्कि कर्मचारियों के भविष्य निधि पर भी ताला लग गया है। इसका कारण ये है राज्य संपति विभाग को बीजापुर और रेस कोर्स कैंटीन के 2,56,348 रुपए और 4,22,378 रुपए देने हैं। राज्य सरकार के अन्य विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों का कुल 4,42,40,605 रुपए की देनदारी है। इस तरह राज्य संपत्ति द्वारा गढ़वाल मंडल विकास निगम को 4,49,19,331 रुपए देने हैं। दोस्तो अब इस घाटे का असर देखिए, गढ़वाल मंडल विकास निगम को अपने कर्मचारियों के EPF में 16 करोड़ रुपये जमा करने हैं, ये राशि जमा होने के बाद ही कर्मचारी PF से लोन, अग्रिम या अन्य लाभ ले सकते हैं।

लेकिन फिलहाल निगम की आर्थिक हालत इतनी खस्ता है कि वो अपने संसाधनों से ये राशि जमा करने में सक्षम नहीं है। उधर, दोस्तो विभागों द्वारा 19 करोड़ की देनदारी न चुकाने से निगम की ये अनिवार्य जिम्मेदारी अधर में अटकी हुई है। इस वित्तीय संकट के कारण कर्मचारियों को सीधे नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। कई कर्मचारी घर बनाने, बच्चों की शादी, मेडिकल जरूरतों और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए EPF से पैसा निकालना चाहते थे, लेकिन फंड जमा न होने से प्रक्रिया रुक गई है। दोस्तो उधर गढ़वाल मंडल विकास निगम को सचिवालय प्रशासन और राज्य संपत्ति द्वारा ये भुगतान किया जाना है। ये देनदारी करोड़ों की है और बार-बार पत्र लिखने के बाद भी राज्य स्थापना के बाद से अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। पिछले महीनों में कई बार पत्र लिखकर सचिवालय प्रशासन और राज्य संपत्ति विभाग को बकाया चुकाने की मांग की गई, लेकिन अभी देनदानी वापस मिलने का इंतजार बना हुआ है। अब दोस्तो वित्तीय संकट से सबसे अधिक प्रभावित निगम के कर्मचारी हैं। कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष राजेश चंद्र रमोला ने बताया कि 19 करोड़ रुपये लंबे समय से विभागों पर बकाया हैं, लेकिन भुगतान नहीं हो रहा है। निगम कई बार पत्र लिख चुका है, पर अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। EPF में रकम जमा न होने के कारण कर्मचारी न लोन ले पा रहे हैं, न ही अपनी जरूरत के समय पैसा निकाल पा रहे हैं। यह कर्मचारियों के भविष्य से खिलवाड़ है, तो दोस्तो करोड़ों की उधारी, विभागों की लापरवाही और लगातार बढ़ता घाटा—इन सबके बीच अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस निगम को डूबने से बचाया जा सकेगा? और क्या कर्मचारियों की रोज़ी-रोटी पर छाया ये संकट कभी हट पाएगा? फैसले लेने वालों को अब जवाब देना ही होगा, क्योंकि वक्त कम है और हालात हर दिन और भयावह होते जा रहे हैं।