चारधाम परियोजना पर बड़ा सवाल! | Uttarakhand News | Char Dham Protect | CJI BR Gavai | Supreme Court

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चारधाम परियोजना पर बड़ा सवाल, पूर्व मंत्री का CJI को पत्र लिखा कि ‘SC अपना फैसला वापस ले ले’ वरना और आएगी तबाही। दोस्तो क्या आस्था की राह पर बिछाई जा रही सड़क, विनाश की ओर ले जा रही है? Question on Chardham project उत्तराखंड की तबाही के बाद अब सवाल सड़क चौड़ीकरण पर नहीं, हिमालय के अस्तित्व पर उठने लगे हैं और ये सवाल अब किसी विपक्षी पार्टी या पर्यावरणविद की ओर से नहीं, बल्कि बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक मुरली मनोहर जोशी की ओर से उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट को लिखे एक पत्र में जोशी ने चेतावनी दी है — अगर अभी नहीं चेते, तो पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। क्या चारधाम परियोजना विकास है या विनाश की नींव? गहराई से पड़ताल करने के लिए आया हूं दोस्तो। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने चारधाम परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है। उन्होंने इस परियोजना के तहत हो रहे सड़कों के चौड़ीकरण के खिलाफ अपनी आपत्ति जताते हुए कोर्ट से फैसले की समीक्षा की मांग की है।

दोस्तो उत्तराखंड की हाल की तबाही को कौन भूला है और हर साल कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है। दरअसल दोस्तो इसके लिए कई लोग एक कारण सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को भी मानते हैं और मांग उस फैसले को वापस लेने की उठ रही है। दोस्तो जोशी का कहना है कि जिस तरह से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हाल ही में भारी बारिश, भूस्खलन और फ्लैश फ्लड जैसी आपदाएँ देखने को मिली हैं, वह साफ संकेत हैं कि हिमालय क्षेत्र अत्यधिक विकास कार्यों की मार झेल नहीं पा रहा है। उन्होंने कहा है कि अगर अब भी समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में पूरे देश को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। मुरली मनोहर जोशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री कर्ण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई से एक मामले में पुनर्विचार करने और सुप्रीम कोर्ट के ही फैसले को वापस लेने की मांग की है। यह मामला साल 2021 में उत्तराखंड में चार धाम प्रोजेक्ट के तहत सड़क चौड़ीकरण से जुड़ा है। जोशी और कर्ण सिंह ने इसे लेकर गवई को पत्र लिखा है। इनमें इतिहासकार और पद्मश्री विजेता शेखर पाठक, पद्मभूषण से सम्मानित लेखक रामचंद्र गुहा, आरएसएस के पूर्व विचारक केएन गोविंदाचार्य जैसी बड़े नाम शामिल हैं।

इसके अलावा शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, वर्तमान और पूर्व सांसदों और उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी पत्र में की गई अपील का समर्थन किया है। दोस्तो जोशी और कर्ण सिंह ने कहा है कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के 2020 के उस सर्कुलर को रद्द किया जाना चाहिए, जिसमें सड़कों के चौड़ीकरण की अनुमति दी गई थी। जोशी और सिंह का कहना है कि इस प्रोजेक्ट के तहत सड़क की चौड़ाई 12 मीटर करने के बजाय 5.5 मीटर की जानी चाहिए। लेकिन ये पूरा मामला है क्या दोस्तो ये जानना बेहद जरूरी है उसे बताने की कोशिश करने जा रहा हूं थोड़ा गौर कीजिएगा। क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला? 14 दिसंबर, 2021 को जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने केंद्र सरकार की उस योजना को मंजूरी दे दी थी, जिसमें ऋषिकेश-माणा, ऋषिकेश-गंगोत्री और टनकपुर-पिथौरागढ़ के नेशनल हाईवे को 12 मीटर चौड़ा किए जाने का प्रस्ताव था। सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना के लिए जस्टिस ए. के. सीकरी की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बनाई थी।

दोस्तो इतना भर नहीं है और वो जानकारी भी लेने चाहिए जो आज पहाड़ में परेशानी का कारण बर नरही है। चार धाम परियोजना में हिमालय में लगभग 825 किलोमीटर की सड़कों को चौड़ा किया जाना है। केंद्र ने पूरी परियोजना को 53 पैकेजों में बांटा था। 11 जून, 2025 को जारी सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, 629 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है। दोस्तो मुरली मनोहर जोशी और कर्ण सिंह ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के अपने फैसले में कम चौड़ाई की बात का समर्थन किया था लेकिन 2021 में इसे बदल दिया गया। बेहद अनुभवी इन नेताओं की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का 2021 का फैसला हिमालयी भूभाग के लिए बेहद खतरनाक साबित हुआ है। दोस्तो इस पत्र में अपील की गई है कि उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग पर स्थित भगीरथी ईको-सेंसिटिव जोन को 12 मीटर चौड़ा न किया जाए। यहां पर एक बाइपास मार्ग को भी सिफारिश के खिलाफ जाकर मंजूरी दे दी गई है। इस बाइपास के लिए लगभग 3,000 पेड़ों को काटा जाएगा और इससे 17 हेक्टेयर जंगल खत्म हो जाएगा। इसी घाटी में सड़क चौड़ी करने के लिए देवदार के 6,000 पेड़ों को काटे जाने का प्रस्ताव है। यहां हाल ही में हुए हिमस्खलन में सैकड़ों लोगों दफन हो गए।

दोस्तो पत्र में कहा गया है कि हिमालय में बार-बार आने वाली आपदाएं न केवल लोगों की जान ले रही हैं बल्कि इससे देश को बहुत बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। पत्र में इस साल मानसून के दौरान हुई घटनाओं का हवाला देते हुए कहा गया है कि उत्तराखंड सरकार ने नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार से 5,700 करोड़ की मदद मांगी है, तो क्या वाकई विकास की ये दौड़, विनाश की एक खामोश दस्तक बन चुकी है? जब हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्र में नेता, न्यायपालिका और समाज के बुद्धिजीवी — सब एक सुर में चेतावनी देने लगे हों, तो हमें रुककर सोचने की ज़रूरत है। चारधाम पहुँचने का रास्ता भले सुगम हो रहा हो, लेकिन अगर वो रास्ता ही प्रकृति की कब्रगाह बन जाए, तो श्रद्धा के साथ-साथ जीवन भी संकट में आ जाएगा। अब फैसला सिर्फ नीति का नहीं, नियति का भी है — हम क्या बचाना चाहते हैं: सड़कें या सदियों से जीवित हिमालय?फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की नज़रें सरकार की रिपोर्ट पर टिकी हैं, लेकिन देश की नज़रें अब इस सवाल पर हैं — क्या हम समय रहते चेतेंगे? या फिर आने वाली पीढ़ियों को सिर्फ मलबे और पछतावे की विरासत देंगे?