मैराथन की चैम्पियन बनी Chamoli की बेटी | Bhagirathi Bisht | Uttarakhand News | Marathon Winner

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उत्तराखंड के खेतों से दौड़कर, मैराथन की चैम्पियन बनी चमोली की बेटी। गोल्ड मेडल जीतकर रच दिया इतिहास। जी हां एक बेटी की संघर्ष से सफलता तक की कहानी लेकर आया हूं दोस्तो कैसे खेतों में दौड़ते-दौड़ते उसने इतिहास रच दिया। Bhagirathi Bisht of Chamoli became the marathon champion दगड़ियों उत्तराखंड की पहाड़ियों से एक ऐसी आवाज गूंजी है, जिसने पूरे देश को गौरव महसूस कराया है। चमोली जनपद के देवाल ब्लॉक के एक छोटे से गांव वाण से ताल्लुक रखने वाली भागीरथी बिष्ट ने हाल ही में हैदराबाद मैराथन में शानदार प्रदर्शन करते हुए गोल्ड मेडल हासिल किया है। इस प्रतियोगिता में उन्होंने 42 किलोमीटर की दूरी सिर्फ 2 घंटे 51 मिनट में पूरी कर प्रथम स्थान प्राप्त किया और इसके साथ ही 3 लाख रुपये की पुरस्कार राशि भी अपने नाम की। दगड़ियों ये कर पाना चमोली के दूरस्त गांव की इस बेटी के लिए इतना भी आसान नहीं था जितना आपको लग रहा होगा, इसलिए आप से गुजारिश ये है कि आप मेरे साथ इस वीडियो में अंत तक जरूर देंखे। दगड़ियो इस बेटी ने बता दिया कि यहां भागीरथी कल-कल बहती ही नहीं है यहां भागिरथी दौड़ती भई है। भागीरथी की सफलता जितनी बड़ी है, उनकी कहानी उससे भी ज्यादा प्रेरणादायक है। वह पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं। महज तीन साल की उम्र में पिता का निधन हो गया था। इसके बाद जीवन ने उन्हें बहुत कुछ सिखा दिया। उन्होंने बचपन से ही घर के सारे कामों में मां का हाथ बंटाया — खाना बनाना, खेतों में काम करना और पढ़ाई करना, सब कुछ एक साथ संभाला।

दोस्तो जब भाई खेत में नहीं होते थे, तब भागीरथी खुद हल लेकर खेत जोतती थीं। एक ऐसे गांव से जहां बुनियादी सुविधाएं भी कम हैं, वहां से निकलकर आज देशभर में उनका नाम रोशन हो रहा है। भागीरथी को लोग अब ‘फ्लाइंग गर्ल’ कहकर बुला रहे हैं, इससे पहले भी वह ईरान में अंतरराष्ट्रीय मैराथन में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं और देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई कई प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान हासिल कर चुकी हैं, उनके कोच सुनील शर्मा, जो हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले से हैं और खुद भी अंतरराष्ट्रीय मैराथन धावक रह चुके हैं, वो बताते हैं कि भागीरथी में अपार क्षमता है। भागीरथी नियमित रूप से कठोर अभ्यास करती हैं, और उनकी लगन ही उन्हें आगे ले जा रही है। भागीरथी फिलहाल उत्तराखंड के पौड़ी जनपद स्थित रासी स्टेडियम में अभ्यास कर रही हैं। वे खुद कहती हैं कि उनकी नजरें अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए मैडल जीतने पर टिकी हैं।

वह पूरी मेहनत से खुद को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार कर रही हैं। हैदराबाद मैराथन में गोल्ड मेडल जीतने की खबर जब उनके गांव वाण और जिले चमोली में पहुंची, तो हर तरफ खुशी की लहर दौड़ गई। गांव के लोगों, शिक्षकों, खिलाड़ियों और अधिकारियों ने भागीरथी की इस उपलब्धि को पूरे जनपद की उपलब्धि बताया। देवाल जैसे सुदूर क्षेत्र से निकलकर एक युवती ने यह कर दिखाया, यह पूरे राज्य के लिए गर्व की बात है। भागीरथी बिष्ट की कहानी हमें ये सिखाती है कि कठिन परिस्थितियां हौसलों को रोक नहीं सकतीं। गरीबी और संसाधनों की कमी कभी भी सपनों की उड़ान में बाधा नहीं बन सकती, अगर आपके अंदर मेहनत और लगन है, तो आप किसी भी मंच पर खुद को साबित कर सकते हैं। भागीरथी बिष्ट का जीवन उन लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा है जो छोटे गांवों या सीमित संसाधनों के बीच बड़े सपने देखती हैं। वह बताती हैं कि सपनों को सच करने के लिए सबसे ज़रूरी चीज है — दृढ़ निश्चय, मेहनत और आत्मविश्वास। उत्तराखंड की इस होनहार बेटी ने साबित कर दिया है कि पहाड़ों से निकली रफ्तार, अब दुनिया की रेस में सबसे आगे दौड़ सकती है।