उत्तराखंड में ये शिकारी बना आफत, 3 साल की बच्ची को उठाया। बताऊंगा आपको कैसे बीते 24 साल में 534 लोगों का किया शिकार। दोस्तो उत्तराखंड की वादियों में अगर कोई नाम सबसे ज्यादा डर पैदा कर रहा है, तो वो है गुलदार यानी लेपर्ड। Terror Of Leopard In Uttarakhand दगड़ियो माँ चिल्लाती रही, बाप भागा, लेकिन गुलदार जंगल में कहीं खो गया। उत्तराखंड के पहाड़ इन दिनों सिर्फ़ प्राकृतिक आपदाओं से नहीं, बल्कि एक और छुपे हुए— लेकिन लगातार बढ़ते हुए—संकट से जूझ रहे है। ये संकट है – मानव और वन्यजीवों के टकराव का, दगड़िय़ो पौड़ी जिले के सतपुली से आई 3 साल के विवेक ठाकुर की खबर ने पूरे उत्तराखंड को झकझोर कर रख दिया। शुक्रवार रात उस समय जब लोग दिन भर की थकान के बाद खाना खाकर अपने घरों में चैन से बैठे थे। विवेक की झोपड़ी में तबाही उतर आई। एक गुलदार चुपचाप झोपड़ी तक आया, और पल भर में उस बच्चे को अपने जबड़ों में दबोच कर जंगल की ओर भाग गया। जिससे बाद लोग डंडा लेकर पहुंचे वन कर्मियों पर फायर हो गए। दोस्तो आगे में कुछ आकड़ों के जरिए आपको बताने की कोशिश करूंगा कि कैसे ये गुलदार तेदुआ अब पहाड़ी इलाकों के लिए मौत बन रहा है। दोस्तो जहां एक ओर बाघ (टाइगर) को जंगल का सबसे खतरनाक शिकारी माना जाता है।
वहीं उत्तराखंड में तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही है। यहां इंसानों पर हमलों के मामले में लेपर्ड ने टाइगर को भी पीछे छोड़ दिया है। इतना ही नहीं, अब तो गुलदार रिहायशी इलाकों तक पहुंच गए हैं और इंसानों से डरना छोड़ चुके हैं। विवेक , महज़ 3 साल का, अपने माता-पिता के साथ नेपाल से आकर उत्तराखंड के सतपुली में मजदूरी करने वाले परिवार का हिस्सा था। अस्थायी, कमजोर, और असुरक्षित घर में अपने माता पिता के साथ रहता था। जैसे ही रात के 8 बजे का समय हुआ, झाड़ियों से निकला एक गुलदार, और सीधे झोपड़ी की ओर झपट पड़ता है। माँ की चीख-पुकार शुरू हुई, लेकिन जब तक लोग कुछ समझ पाते, विवेक गायब था। सिर्फ़ झोपड़ी के बाहर मिट्टी पर उसके छोटे-छोटे पैरों के निशान और खून के धब्बे बाकी थे। रातभर तलाशी चलती रही। जंगल की ओर टॉर्चें, आवाज़ें, चप्पलें, और सिसकियाँ जाती रहीं। लेकिन सुबह जब सूरज निकला, तब पेड़ों की जड़ों के पास एक अधखाया शव मिला। दोस्तो उसका चेहरा पहचानने लायक नहीं था। पिता की आंखें सूख चुकी थीं, और माँ की चीखें अब सन्नाटे में गूंज रही थीं। इस तस्वीर को देखने वाले हर ग्रामीण की आंखें नम थीं और दिल में गुस्सा भी। लोनों का कहना है कि वन विभाग के कानों में जूं तक नहीं रेंगती। ये पहली घटना नहीं है।
उत्तराखंड में गुलदारों द्वारा बच्चों को उठाने, बुजुर्गों पर हमले और खेतों में घात लगाकर मारने की घटनाएं अब आम हो चली हैं। अकेले पौड़ी जिले में बीते दो वर्षों में गुलदार के हमलों में कई मौतें हो चुकी हैं, फिर भी न तो जंगल विभाग की कोई ठोस रणनीति है और न ही शासन-प्रशासन की कोई जवाबदेही दिखाई देती है। कुछ आकड़ों पर गौर करिगा। ये बताएंगी की ये कितनी बड़ी परेशानी है। दोस्तो उत्तराखंड के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में गुलदारों के हमले लगातार बढ़ रहे हैं। ये अब सिर्फ जंगलों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि घरों तक घुसने लगे हैं। उत्तराखंड के गठन के 24 सालों में गुलदारों ने 534 लोगों की जान ली है और 2052 लोग घायल हुए हैं। अकेले 2025 के पहले 5-7 महीनों में ही गुलदार के हमले से 3 व्यक्ति की मौत और 18 लोग घायल हो चुके हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि लेपर्ड इंसानों और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष का सबसे बड़ा कारण बनते जा रहे हैं। पिछले 5 सालों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं दगड़ियो, अभी इस साल के आकड़े आने बाकि हैं, लेकिन 2024 और उससे पहले के आकड़े कुछ यूं हैं 2024: 14 मौतें, 127 घायल, 2023: 18 मौतें, 100 घायल,2022: 22 मौतें, 18 घायल,2021: 23 मौतें, 98 घायल,
2020: 30 मौतें, 100 घायल अब तक बाघों की गणना वैज्ञानिक तरीके से होती रही है, लेकिन पहली बार गुलदारों की भी ऑल इंडिया टाइगर इंटीमेशन के साथ गिनती की बात सामने आई। जिससे गुलदारों की सटीक संख्या पता चल सके। माना जा रहा है दोस्तो कि उत्तराखंड में 2800 से 3000 लेपर्ड मौजूद हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इंसानों की बदलती आदतें इस संकट का मुख्य कारण हैं। लोग भोजन का कचरा इधर-उधर फेंकते हैं, जो जानवरों को आकर्षित करता है। गांवों से पलायन के चलते खाली घरों और झाड़ियों में गुलदारों को छिपने की जगह मिल रही है। आसान शिकार (जैसे पालतू जानवर या छोटे बच्चे) की मौजूदगी गुलदारों को रिहायशी इलाकों की ओर खींच रही है। जानकार कहते हैं गुलदार आसानी से सरवाइव कर लेता है, चाहे जंगल हो या इंसानी बस्ती। वह खरगोश, चूहे जैसे छोटे जीवों का भी शिकार कर सकता है। इसी वजह से इसकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। लेपर्ड में इंसानों को लेकर डर खत्म हो गया है। यही कारण है वे धीरे-धीरे इंसानी बस्तियों का रुख कर रहे हैं और नुक्सान बड़ा हो रहा है। अब पौड़ी में एक तीन साल के बच्चे को गुलदार उसके घर से उठाकर ले गया।