उत्तराखंड सरकार पर भड़के CJI Suryakant | Uttarakhand News | CM Dhami | Supreme Court On Uttarakhand

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जी हां दोस्तो बीते कुछ वक्त से देवभूमि की सरकारी जमीनों पर कब्जा कर कई तरह का निर्माण कर दिया गया। इस पर खूब हल्ला हुआ और मेने ही पूछा था कि इतनी बड़ी मात्रा में कैसे जमीनों पर कब्जा होता रहा और हमारी सरकारे, और सिस्टम क्या करता रहा, लेकिन अब जब उत्तराखंड सरकार को लगी है फटकार तो फिर से प्रदेश में जमीन कब्जाने का मामला तूल पकड़ने लगा है। दोस्तो क्या कहा ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने और कौन सा लिया वो बड़ा ऐक्शन बताउंगा आपको पूरी खबर अपनी इस रिपोर्ट के जरिए। जी हां दोस्तो अतिक्रम होता रहा सरकार देखती रही। जमीन पर कब्जा होता रहा प्रशानस सोता रहा, वन भूमि में होता रहा कब्जा मुकदर्शक बनी सरकार। दोस्तो ये सब मै नहीं देश की सबसे बड़ी अदालत का कहना है। जंगल की जमीन कर कब्जा किए जाने के मामले में समुचित कार्रवाई नहीं किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को आड़े हाथ लिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब राज्य के सक्षम अधिकारियों की आंख के सामने निजी संस्थाओं द्वारा बड़े पैमाने पर जंगल की जमीन पर कब्जा किया जा रहा था, तो वे ‘मूक दर्शक’ बने रहे।

दोस्तो मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की विशेष पीठ ने जंगल की जमीन पर कब्जे को गंभीरता से लेते हुए। उत्तराखंड के मुख्य सचिव और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को एक जांच समिति गठित करने और एक रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। दोस्तो इसके साथ ही पीठ ने, निजी संस्थाओं को संबंधित जमीन को बेचने या उस पर किसी तीसरे पक्ष का अधिकार बनाने से रोक दिया। पीठ ने अपने आदेश में विवादित जमीन पर किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है और राज्य के वन विभाग और जिला कलेक्टर को सभी खाली जमीन (आवासीय घरों को छोड़कर) पर कब्जा करने को कहा है।दोस्तो दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अनिता कंडवाल की ओर से दाखिल याचिका पर विचार करते हुए इस मामले को स्वतः संज्ञान मामले के तौर पर आगे बढ़ाने के लिए इसका दायरा बढ़ाया। सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि, मामले के तथ्यों से पहली नजर में जाहिर होता है कि कैसे जंगल की हजारों एकड़ जमीन पर निजी संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा व्यवस्थित रूप से कब्जा किया गया है। उन्होंने कहा कि हमें जो बात चौंकाने वाली लगती है, वह यह है कि जंगल की जमीन पर कब्जा होता रहा, लेकिन उत्तराखंड राज्य और उसके अधिकारी मूक दर्शक बने रहे। दोस्तो पीठ ने मामलें में उत्तराखंड सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई पांच जनवरी को होगी। अब आपको ये बताता हूं कि ये मामला है क्या गौर कीजिएगा।

दोस्तो सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका के मुताबिक, यह मामला 2,866 एकड़ जमीन से संबंधित था, जिसे सरकारी जंगल की जमीन के रूप में अधिसूचित किया गया था। बाद में इस जमीन का एक हिस्सा कथित तौर पर ऋषिकेश की एक सोसायटी-पशु लोक सेवा समिति को पट्टे पर दिया गया। दोस्तो याचिका के अनुसार, सोसायटी ने दावा किया कि उसने जमीन के कुछ हिस्से अपने सदस्यों को आवंटित किए। रिकॉर्ड के अनुसार, समिति और उसके सदस्यों के बीच विवाद पैदा हुआ, जिसके परिणामस्वरूप एक संदिग्ध और मिलीभगतपूर्ण समझौता डिक्री पारित की गई। बाद में सोसायटी लिक्विडेशन में चली गई। और सरेंडर डीड के जरिए उसने 23 अक्तूबर 1984 को 594 एकड़ जमीन वन विभाग को सौंप दी। इसके बावजूद, कुछ निजी व्यक्तियों द्वारा यह दावा किया गया कि उन्होंने वर्ष 2001 के आसपास ये भूमि पर कब्जा कर लिया था। दोस्तो इन्हीं दावों और परिस्थितियों को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि वन भूमि पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जा हुआ है और राज्य के अधिकारियों ने समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया। वैसे दोस्तो हाल के दिनों में आपने देखा होगा कि वन भूमि पर हुए कब्जे पर खूब एक्शन भी देखने को मिला। कुमाउं से लेकर गढवाल तक सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर कैसे खेल किया जा रहा है। वैसे अब कार्रवाई एक तरफ देखने को मिल रही है, तो उधर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाने का आदेश दिया है। उत्तराखंड के मुख्य सचिव और प्रधान संरक्षण सचिव को इस कमेटी का जिम्मा सौंपा गया है। उन्हें जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट कोर्ट में जमा करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि जब तक मामला कोर्ट में है, जमीन की स्थिति में कोई बदलाव न हो।