खतरे में CM Dhami की कुर्सी ! | Uttarakhand News | Trivendra Singh Rawat | Harak Singh Rawat

Share

जी हां दोस्तो उत्तराखंड में एक बार फिर कुछ वैसा होने की आहट सुनाई पड़ने लगी है। जैसा कि उत्तराखंड की जनता के साथ होता रहा है, इस बार सीएम धामी की की कुर्सी धामी में पड़ चुकी है, कभी भी कुछ बड़ा हो सकता है, CM Dhami’s chair is in danger दोस्तो क्या एक बार फिर हम सब अपना सीएम बदलते हुए देखने वाले है, क्या वैसा ही कुछ होने जा रहा है, जैसा इससे पहले होता चला आया है कि इस छोटे से प्रदेश ने अपने 25 सालों में कई सीएम रातों रात बदलते देखे हैं। मौजूदा वक्त में जो खबर आ रही है वो है धामी की कुर्सी को लेकर में खतरे में धामी की कुर्सी! सब बताउंगा आपको कैसे और क्यों में ये जानकारी आपको बताने जा रहा हूं, ताकी मै आपको जो बताना चाहता हूं वो पूरा बता पाऊं। का उत्तराखंड की राजनीति हमेशा से उतार-चढ़ाव और अस्थिरता का प्रतीक रही है। प्रदेश ने पिछले दो दशक में कई मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल देखा है, लेकिन स्थिर नेतृत्व बहुत कम ही नजर आया। मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को जब भाजपा ने सत्ता की बागडोर सौंपी थी, तो उन्हें युवा चेहरा, साफ छवि और संगठन का भरोसा बताकर आगे किया गया था लेकिन अब चर्चाएं तेज हैं कि धामी की कुर्सी खतरे में है, और सबसे बड़ी बात यह है कि यह खतरा विपक्ष से ज्यादा अपने ही दल और खेमों से सामने आ रहा है।

दोस्तो पहले तो विरोधिय़ों ने मौका देखा और बीजेपी के साथ ही धामी और सरकार को घेरने की शुरुआत की। अब विपक्ष के आरोपों को तो बीजेपी ने यूं ही कह कर किनारा कर लिया, लेकिन जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने तंजिया लहजे में जो कह दिया। वो ये बताने के लिए काफी था, कि इसकी काट बीजेपी को खोजने में पसीने छूटने वाले है। खैर इस पर आगे बात करूंगा इतना बर नहीं है। सिर्फ एक तीरथ सिंह रावत ही नहीं हैं, और भी कई बीजेपी के नेता है जो धामी की कुर्सी की टांगों पर जोर लगा रहे हैं वो भी आगे आपको बताउंगा लेकिन उससे पहले एक बात जो वैसे तो सभी जानते हैं लेकिन फिर भी मै बताने की कोसिश करताहूं कि चुनाव से ठीक पहले धामी क्यों बीजेपी की आंखों की किरकिरी बन रहे हैं। मतलब कुछ नेताओं के नहीं वरिष्ठ नेताओं की आंखो खटक रहे हैं। दगड़ियों भाजपा में धामी को शुरू से ही “केंद्र का चुनाव” माना गयाॉ। उन्हें संगठन और केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा तो मिला, लेकिन राज्य के कई वरिष्ठ नेता खुद को पीछे छूटता हुआ महसूस करने लगे। यही वजह है कि आज पार्टी के भीतर ही असंतोष की सरगर्मी है, जो अब धीरे-धीरे ही सही खुल कर सामने आने लगी है। साथ दगड़ियों माना जा रहा है कि कुछ बड़े नेता धामी की बढ़ती पकड़ और उनकी यंग ब्रांडिंग से सहज नहीं दिखाई दिए पहले भी और अभी भी। वैसे मै क्यों कह रहा हूं कि धामी सीएम नहीं रहने वाले इसकी एक नहीं कई वजह है। जिस तीरथ सिंह रावत ने बयान दिया वो वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं जो धामी के खिलाप लोबिंग करने में जुटे हैं। वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी जी हां दग़ड़ियो लंबे समय से राजनीति में सक्रिय दिग्गज नेताओं को लगता है कि धामी के रहते उनकी अहमियत कम हो रही है और आपने धामी जब से मुख्यमंत्री बने तब से तब से किसी भी पूर्व मुक्यमंत्री को सक्रीय नहीं देखा होगा वो इसलिए था क्योंकि धामी कुर्सी बैठे थे।

धामी ने कई बड़े फैसले लिए जिनमें स्थानीय नेताओं से ज्यादा परामर्श नहीं किया गया। एक और कारण युवाओं पर फोकस: सीएम ने युवा वर्ग और रोजगार पर ज़ोर दिया, लेकिन इससे पुराने राजनीतिक समीकरणों पर असर पड़ा है। एक ओर बड़ा कारण है जो प्रेदश के कई बीजेपी नेताओं को ना गवार गुरता दिख रहा है। वो है केंद्रीय नेतृत्व की नज़दीकी: धामी का सबसे बड़ा बल यही है, लेकिन यही उनके विरोध का कारण भी बन रहा है। अब मैं क्यों सीएम धामी की कुर्सी को खतरे में बता रहा हूं बल। प्रदेश में हाल के महीनों में हुए घटनाक्रम, जैसे नियुक्तियों को लेकर विवाद, कुछ योजनाओं की धीमी प्रगति, और भ्रष्टाचार को लेकर उठे सवालों ने विपक्ष के साथ-साथ अपनों को भी मौका दिया है। भाजपा के भीतर यह भावना पनप रही है कि यदि अगले चुनाव में पार्टी को मजबूत स्थिति में रखना है तो नेतृत्व परिवर्तन किया जा सकता है, हालांकि यह भी सच है कि धामी फिलहाल भाजपा के सबसे बड़े फेस हैं।  युवा नेता और साफ छवि उन्हें जनता से जोड़ती है। केंद्रीय नेतृत्व का पूरा समर्थन उनके पास है। विपक्ष की कमज़ोरी भी उनकी ढाल बनी हुई है दगड़ियों धामी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने ही घर को संभालने की है। यदि वे असंतुष्ट नेताओं को साधने में कामयाब रहते हैं, तो उनकी कुर्सी फिलहाल सुरक्षित है, लेकिन यदि भीतरघात बढ़ा, तो उत्तराखंड फिर से नेतृत्व परिवर्तन का गवाह बन सकता है। वैसे भी दगजडियों उत्तराखंड की राजनीति का इतिहास गवाह है कि यहां मुख्यमंत्री की कुर्सी कभी स्थिर नहीं रही। पुष्कर सिंह धामी इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब उनके लिए असली चुनौती विपक्ष नहीं, बल्कि अपनों का असंतोष है। यही वजह है कि धामी की कुर्सी पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।