उपनल कर्मचारियों की वेतन की चिंता पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी | High Court | Uttarakhand News

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उत्तराखंड के उपनल कर्मचारियों की वेतन और नियमितीकरण की लंबी लड़ाई अब एक नई करवट ले रही है। उच्च न्यायालय ने सरकार की वित्तीय स्थिति को लेकर सख्त टिप्पणी की है और कहा है कि कर्मचारियों को वेतन न देना कतई स्वीकार्य नहीं। Salary of UPNL employees क्या सरकार के पास सचमुच वेतन देने के लिए पैसा नहीं? और क्या इस बीच हजारों कर्मचारी परिवारों की रोज़ी-रोटी दांव पर लगी है? आज मै आपको इस ज्वलंत मुद्दे की पूरी कहानी बताउंगा। जिसमें कोर्ट के सख्त फरमान और कर्मचारियों की अनिश्चितता दोनों शामिल हैं। दोस्तो आप इसलिए भी मेरे साथ इस वीडियो में बने रहिएगा क्योंकि यह सिर्फ एक प्रशासनिक मसला नहीं, बल्कि लाखों लोगों की उम्मीदों का सवाल है। जी हां दोस्तो उत्तराखंड में सरकारी विभागों में कार्यरत उपनल (UPNL) कर्मचारियों का मामला वर्षों से एक गूढ़ विवाद बना हुआ है। ये कर्मचारी कई विभागों में अस्थायी या संविदा पर काम कर रहे हैं, परंतु नियमितीकरण और वेतन भुगतान को लेकर उनकी समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। हाल ही में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इस मामले में सरकार की भूमिका पर कड़ी तल्ख टिप्पणियां की हैं, जो इस पूरी स्थिति की गंभीरता को दर्शाती हैं। तो क्या वाकई में ये सच हैं जो वकील साहब कोर्ट में कह रहे हैं कि फाइनेंशियल कॉम्पलिकेशन हैं। इस कॉम्पलिकेशन का मतलब मै ये निकालूं की सरकार के पास इन अस्थाई कर्मचारियों को देने के लि पैसा नहीं है। अगर कोई सरकारी वकील कोर्ट में खड़ा होककर ये तर्क दे रहा हो कि फाइनेंशियल कॉम्पलिकेशन हैं इसलिए इन कर्मचारियों को ना नियमित किया जा रहा है और ना ही कई महीने से उन्हें वेतन मिल रहा है ये तर्क कितना सही है। हालांकि जज साहब अपने ही अंदाज में जवाब दिया। आपने ये कोर्ट में कहा गया जज साहब भी कुछ मेरे जैसी सोचते होगें की तुरंत टपाक से जवाब दिया और जवाब मांग भी लिया, जज साहब ने पूछ लिया कि गरीब को तनख्वा देने के लिए फाइनेंशियल कॉम्पलिकेशन है जिस्से काम कर रहा रहे हैं। वैसे वकील साहब की हिम्मेत गजब है ना, दोस्तो यहां ये भी आपको बताता हूं कि उपनल कर्मचारी कौन हैं और उनकी संख्या कितनी है?उत्तराखंड में उपनल कर्मचारी वे अस्थायी या संविदा आधारित कर्मचारी हैं, जिन्हें विभिन्न सरकारी विभागों में भर्ती किया गया है। सरकारी आंकड़ों और विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राज्य में इन कर्मचारियों की संख्या लगभग 10,000 से 15,000 के बीच हो सकती है, लेकिन वकील साहब तो कोर्ट में बता रहे थे कि 3 0 से 40 हजार कर्मचारी हैं। अब पता नहीं कि वकील साहब ने किसे जोड़ा कहां छोड़ा, लेकिन दोस्तो इन कर्मचारियों की मुख्य मांग यह है कि उन्हें नियमित किया जाए ताकि वे स्थिरता और वेतन संबंधी समस्याओं से निजात पा सकें। इसके अलावा वेतन न मिलने की चिंता और वित्तीय दिक्कतें हर रोज इन कर्मचारियों को परेशान करती है। दोस्तो इन उपनल कर्मचारियों को लंबे समय से नियमित वेतन का भुगतान नहीं हो पा रहा है, जिसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। वेतन न मिलने की वजह से न केवल उनके परिवारों की आर्थिक तंगी बढ़ी है, बल्कि उनका मनोबल भी टूट रहा है। दोस्तो इस मामले में कोर्ट में सरकार के वकील ने यह स्वीकार किया है कि राज्य सरकार के पास वर्तमान में वेतन भुगतान के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं हैं। इस बात ने कर्मचारियों की चिंता को और बढ़ा दिया है कि वे अपना जीविकोपार्जन कैसे करेंगे अब कुछ ऐसा कह रहे हैं वकील कोर्ट में दोस्तो उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई है और सरकार की कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी की है। न्यायाधीशों ने कहा कि कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है, और वित्तीय दिक्कतों को इसका बहाना नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने सरकार को चेतावनी दी है कि वेतन न मिलने की स्थिति में कर्मचारियों के जीवन और परिवारों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, जो सामाजिक और कानूनी दोनों दृष्टि से अस्वीकार्य है। न्यायालय ने सरकार से तत्काल प्रभाव से वेतन भुगतान के लिए उचित कदम उठाने को कहा है सरकार ने कई बार उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू करने का आश्वासन दिया, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है। नियमितीकरण न होने के कारण कर्मचारियों को न केवल वेतन संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि वे अपने भविष्य को लेकर भी अनिश्चितता महसूस कर रहे हैं। दोस्तो अपनी परेशानियों को लेकर उपनल कर्मचारी और उनके समर्थक लगातार सरकार के सामने अपनी मांगें रख रहे हैं। कई बार वे धरने-प्रदर्शन कर चुके हैं, ताकि उनकी आवाज़ सुनी जाए। वेतन भुगतान और नियमितीकरण को लेकर उनका संघर्ष अभी भी जारी है। उस बीच ये कोर्ट की टिप्पणी। उत्तराखंड में उपनल कर्मचारियों की समस्या केवल एक प्रशासनिक मसला नहीं है, बल्कि यह हजारों परिवारों के जीवन से जुड़ा एक बड़ा सामाजिक मुद्दा बन चुका है। वित्तीय दिक्कतों के बहाने कर्मचारियों को वेतन न देना और नियमितीकरण में देरी करना न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि न्यायालय की भी नाराजगी का कारण बन रहा है। सरकार के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह उपनल कर्मचारियों के वेतन भुगतान और नियमितीकरण के मुद्दे को प्राथमिकता से हल करे, ताकि कर्मचारियों के अधिकार सुरक्षित हो सकें और वे अपनी जिम्मेदारियों को निडरता से निभा सकें।