बेटियों ने निभाया फर्ज ! | Uttarakhand News | Pithoragarh News | Inspirational Story

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जी हां दोस्तो उत्तराखंड से आई एक तस्वीर ने सबको हैरानी में डाल दिया, खास कर उन लोगों को जो सालों से जिस बात करते आ रहे थे विरोध, वहीं काम बेटो ने नहीं बेटियों ने अपने पिता के लिए कर दिखाया। कैसे लोग बेटियों की देने लगे मिशाल, कैसे आया देवभूमि में बड़ा परिवर्तन, बताउंगा पूरी खबर। दोस्तो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से एक ऐसी प्रेरणादायक घटना सामने आई है, जिसने समाज की पुरानी सोच को झकझोर दिया। सात बेटियों ने अपने रिटायर्ड सैनिक पिता की अर्थी को कंधा दिया, और फौजी बेटी ने पिता के लिए मुंडन कर श्मशान घाट पर चिता को मुखाग्नि दी। इस साहसिक कदम ने साबित कर दिया कि बेटियां किसी भी परंपरा को निभाने में पीछे नहीं हैं। बेटियों ने तोड़ी रूढ़िवादी सोच, पिता को दी अंतिम विदाई। दोस्तो उत्तराखंड में बेटियों ने समाज की पुरानी सोच को चुनौती दी, उन्होंने अपने पिता की अर्थी को कंधा देकर और चिता को मुखाग्नि देकर दिखा दिया कि जिम्मेदारी और सम्मान का कोई लिंग नहीं होता यह है एक मिसाल, जिसने दिलों को झकझोर दिया। दोस्तो हिंदू धर्म में परंपरागत रूप से यह माना जाता रहा है कि पिता की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम यात्रा और चिता को मुखाग्नि देने का काम केवल पुत्र का होता है। इसे धार्मिक दृष्टिकोण से पुत्र का फर्ज माना जाता है, जो वंश को आगे बढ़ाने और माता-पिता की आत्मा को मोक्ष दिलाने का प्रतीक है, लेकिन समय के साथ सोच बदल रही है और बेटियों ने इस रूढ़िवादी नियम को चुनौती देते हुए समाज को नया दृष्टिकोण दिया है।

ऐसा ही एक प्रेरणादायक उदाहरण उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से सामने आया है। दोस्तो यहां सिमलकोट उकाला गांव के निवासी पूर्व सैनिक किशन कन्याल की अचानक मौत ने उनके परिवार और ग्रामीणों को गहरे सदमे में डाल दिया। किशन कन्याल की मौत ऐसे समय हुई जब उन्हें गंगोलीहाट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से हल्द्वानी रेफर किया गया था, लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। उनके अचानक निधन के बाद परिवार में न केवल गम बल्कि पारंपरिक रस्मों को निभाने को लेकर भी चिंता पैदा हो गई, लेकिन फिर वो हुआ जिस पर सालों से एक अलग तरह की सोच का बंधन था। जिस काम को सिर्फ बेटों का फर्ज कह कर बेटियों को दूर रखा गया। विकट परिस्थिति में किशन कन्याज की सातों बेटियों ने समाज की पुरानी सोच को तोड़ते हुए आगे आने का साहस दिखाया। बेटियों ने न केवल पिता की अर्थी को कंधा दिया, बल्कि शमशान घाट पर उनकी चिता को भी मुखाग्नि देकर बेटे के फर्ज को निभाने जैसा कर्तव्य किया। इस साहसिक कदम ने न केवल परिवार को गर्व महसूस कराया, बल्कि समाज के रूढ़िवादी दृष्टिकोण को भी झकझोर दिया। दोस्तो तीसरे नंबर की बेटी किरन, जो केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में तैनात हैं, ने अपनी वर्दी में पिता की अर्थी को कंधा दिया। उनके कदम ने सभी को भावविभोर कर दिया। किरन की बहनों—शोभा, चांदनी, नेहा, बबली और दिव्यांशी—ने मिलकर श्मशान घाट पर पिता की चिता को मुखाग्नि दी। जबकि बहन मंजू किसी कारणवश वहां नहीं पहुंच सकीं, लेकिन उन्होंने अर्थी को कंधा देकर अपनी भागीदारी सुनिश्चित की।

दोस्तो ये घटना न केवल बेटियों के साहस और परिवार के प्रति उनके प्यार को दर्शाती है, बल्कि ये समाज के लिए एक बड़ी सीख भी है। बेटियों ने साबित कर दिया कि पारंपरिक धारणाएं केवल सोच में सीमित हैं और उन्हें बदलने की क्षमता हर किसी में होती है। बेटियों की इस पहल ने न केवल पिता की आत्मा को श्रद्धांजलि दी, बल्कि समाज को भी यह सिखाया कि जिम्मेदारी, साहस और सम्मान का कोई लिंग नहीं होता। दोस्तो आज ये खबर ये बताने का काम कर ती है कि बेटियां भी किसी भी परंपरा को निभाने और उदाहरण पेश करने में पीछे नहीं हैं। किशन कन्याल की बेटियों ने जिस तरह से अपने पिता को अंतिम विदाई दी, वो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा। इस घटना ने ये भी साबित कर दिया कि जब हौसला और साहस हाथ में होता है, तो किसी भी रूढ़िवादी सोच को चुनौती दी जा सकती है और समाज में बदलाव लाया जा सकता है..दोस्तो बेटियों ने न केवल अपने पिता की सेवा की, बल्कि समाज को ये संदेश भी दिया कि समानता और साहस किसी की सीमाओं में नहीं बंधते। ये प्रेरणा देने वाली घटना एक मिसाल बनकर हमेशा याद रहेगी और भविष्य में बेटियों को अपने अधिकार और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करने में मदद करेगी। दोस्तो पिथौरागढ़ की इन बेटियों ने साबित कर दिया कि साहस और जिम्मेदारी का कोई लिंग नहीं होता। उन्होंने अपने पिता को अंतिम विदाई देकर न केवल परिवार का फर्ज निभाया, बल्कि समाज की रूढ़िवादी सोच को भी चुनौती दी। ये मिसाल हम सभी के लिए प्रेरणा और बदलाव का संदेश है। हिंदू धर्म में अक्सर देखा जाता है कि पिता की मौत के बाद उसके बेटे ही उसकी चिता को मुखाग्नि देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योकि पुत्र को वंश चलाने और माता-पिता को मोक्ष दिलाने वाला माना जाता है। हिंदू धर्म में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, लेकिन अब उस पर परंपरा में आ रहा है बड़ा बदलाव।