कुमाऊं हुआ भारी, गढ़वाल के हाथ खाली: कांग्रेस ने तोड़ी क्षेत्रीय समीकरण साधने की परंपरा, आर्य के रूप में साधा जातीय समीकरण

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उत्तराखंड की राजनीति क्षेत्रीय और जातीय समीकरण पर आधारित रही है लेकिन इस बार कांग्रेस ने बड़ा दांव खेलते हुए इस परंपरा को तोड़ा है। तीनों की महत्वपूर्ण पद (प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और उप नेता प्रतिपक्ष) कुमाऊं की झोली में डालकर गढ़वाल को खाली हाथ कर दिया है। हालांकि, एक दलित चेहरे को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर जातीय समीकरण साधने में पार्टी कामयाब रही है।

वहीं पांच विधायक देने वाले हरिद्वार के हाथ भी खाली ही रह गए। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के बाद हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए गणेश गोदियाल ने 15 मार्च का इस्तीफा दे दिया था। वहीं, पांचवीं विधानसभा का पहला सत्र शुरू होने पर भी  कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष का चुनाव नहीं कर पाई थी। जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा था कि पार्टी इस बार नई नियुक्तियों में चौंकाने वाले नाम सामने ला सकती है। गणेश गोदियाल को दोबारा जिम्मेदारी मिलने की भी चर्चा थी।

कुमाऊं से अधिक सीटें जीतने पर इनाम

वैसे ही नाम सामने आए हैं। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड की राजनीति में इन महत्वपूर्ण नियुक्तियों में क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधकर ही पार्टियां आगे बढ़ी हैं। चाहे वह भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने गढ़वाल-कुमाऊं के साथ मैदान और जातीय संतुलन बनाए रखा। यदि प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल से दिया तो नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी कुमाऊं को दी गई। लेकिन इस बार कांग्रेस ने इस परंपरा को तोड़ते हुए तीनों ही महत्वपूर्ण पद कुमाऊं की झोली में डाल दिए हैं।  कुमाऊं से अधिक सीटें जीतने पर इसे इनाम के तौर पर देखा जा रहा है। पार्टी को विधानसभा चुनाव में कुल 19 सीटों  पर जीत मिली है। इनमें से अकेले कुमाऊं से 11 सीटें पार्टी की झोली में आई हैं। जबकि गढ़वाल के हिस्से में मात्र तीन सीटें ही आई हैं। इनमें से भी एक सीट देहरादून की है।

भाजपा के बाद कांग्रेस ने भी की हरिद्वार की अनदेखी 

सत्तारूढ़ दल भाजपा के बाद कांग्रेस ने भी हरिद्वार की अनदेखी की है। जहां भाजपा ने इस बार हरिद्वार को एक भी मंत्रीपद नहीं दिया है, हालांकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक हरिद्वार से ही आते हैं। वहीं कांग्रेस ने भी हरिद्वार की अनदेखी की है। जबकि पार्टी को हरिद्वार से पांच सीटें मिली हैं। पिछली सरकार में हरिद्वार के कोटे से स्वामी यतीश्वरानंद को मंत्री बनाया गया था, जबकि इससे पहले मदन कौशिक भी कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे। बाद में उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी।