डिलीवरी फर्श पर, डॉक्टर खामोश | Viral Video | Uttarakhand News | Haridwar News

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जब सिस्टम शर्मिंदा नहीं होता, तो जनता को गुस्सा आना तय है। डिलीवरी फर्श पर हो गई और डॉक्टर अस्पताल प्रसासन खामोश रहा। सिस्टम की ऐसी कहानी लेकर आया हूं जहां मरहम की दुकान में दर्द ही दर्द मिला और कुछ नहीं, हमारे सिस्टम के मुंह तमाचे जैसी एक घटना जिससने सब को झकझोर कर रख दिया। Haridwar Women’s Hospital दोस्तो ज़रा सोचिए, एक महिला प्रसव पीड़ा में है, अस्पताल के दरवाज़े पर है, मदद की गुहार लगा रही है लेकिन डॉक्टर कहते हैं — ‘यहां डिलीवरी नहीं होगी। अगले ही पल वो महिला अस्पताल के फर्श पर गिरती है दर्द से तड़पती है, और वहीं जन्म देती है एक मासूम को सामने खड़ा हैं अस्पताल के स्टाफ, मगर कोई हाथ नहीं बढ़ात कोई हाथ नहीं लगाता। ये मै आपको किसी फिल्म की कहानी नहीं बता रहा हूं दोस्तो। ये हरिद्वार के महिला अस्पताल की हकीकत है। एक ऐसा सच जिसने इंसानियत को शर्मिंदा कर दिया है और पूरे स्वास्थ्य सिस्टम को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल ये नहीं कि गलती किसकी थी, सवाल यह है कि क्या अब अस्पताल के दरवाज़े भी गरीबों के लिए बंद हो गए हैं? क्यों एक गर्भवती महिला को अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया। क्या कहना है मरीज के परिजनों का और क्या कह रहा है अस्पताल प्रशासन, दोस्तो दिखा रहा हूं मै आपको हरिद्वार महिला अस्पताल में इंसानियत की मौत क्या अब अस्पतालों में दर्द दिखना भी अपराध है।

हरिद्वार से एक ऐसी शर्मनाक घटना सामने आई है, जिसने न सिर्फ उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था पर, बल्कि पूरे समाज की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए है। एक गर्भवती महिला , जिसे प्रसव पीड़ा हो रही थी, जब हरिद्वार महिला अस्पताल पहुँची, तो उसे भर्ती करने से साफ इनकार कर दिया गया। यही नहीं, ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने महिला को अस्पताल से बाहर निकाल दिया गया। दोस्तो अस्पताल के फर्श पर महिला ने तड़पते हुए बच्चे को जन्म दिया.म, और वहीं खून से लथपथ पड़ी रही। न कोई स्ट्रेचर लाया गया, न डॉक्टर आगे आया। इस पूरे अमानवीय दृश्य का वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल है — और इसने आम लोगों से लेकर स्वास्थ्य अधिकारियों तक को कठघरे में ला खड़ा किया है। दोस्तो क्यों एक अस्पताल में डॉक्टर, नर्स, स्टाफ – सब बने मूकदर्शक रहे। महिला के इस दर्द को में साफ-साफ दिखा नहीं सकता लेकिन आप अंदाजा लगा सकते हैं जब कोई महिला प्रसव पीड़ा से कराह रही हो और उससे समय पर इलाज नहीं मिले बैड नहीं मिले डॉक्टर और स्टाफ का सहयोग नहीं मिले, तो क्या करना ऐसे अस्पताल का ऐसी व्यवस्था का महिला फर्श पर पड़ी है, दर्द से कराह रही है। अस्पताल का कोई भी स्टाफ न उसके पास आ रहा है, न कोई सहायता कर रहा है। एक आशा वर्कर उसे संभालने की कोशिश कर रही है, खबर ये भी की जब उसने वीडियो बनाना शुरू किया, तो स्टाफ ने उसका मोबाइल छीनने की कोशिश की।

दोस्तो ये सब तब हो रहा था, जब महिला को सबसे ज्यादा जरूरत थी संवेदनशीलता, सेवा और सहायता की, लेकिन जो मिला वो था — उपेक्षा, उपहास और अपमान इस खबर ने जब तूल पकड़ा तो सिस्टम पर सवाल होने लगा तो प्रशासन की प्रतिक्रिया आई और साज़िश का बहाना कर छोड़ दिया गया। दोस्तो जैसे ही ये खबर पर जिम्मेदारों से सवाल किया गया तो प्रशासन की तरफ से सफाई आ गई। हरिद्वार के सीएमओ आर.के. सिंह ने बयान दिया कि –यह सब एक आशा वर्कर की साज़िश है। महिला को रात में ही एडमिट कर लिया गया था और डिलीवरी भी अस्पताल में ही हुई। अब कह तो रहे हैं कार्रवाई होगी, क्या कार्रवाई होगी पता नहीं, दरअसल इस मामले को जितनी गंभीरता से सीएमओ साहब को लेना चाहिए था। उतनी गंभीरता से वो लेते दिखाई नहीं दिए, वो बस लीपापोती करते दिखाई दिए। सीएमओ के बयान से तो यही लगता है कि प्रशासन का पहला कदम था – घटना को झुठलाना वो वीडियो जिसमें महिला फर्श पर पड़ी है, वो वीडियो जिसमें स्टाफ खड़ा तमाशा देख रहा है, उस सबको एक “साज़िश” कहकर नकार देने की कोशिश की गई। अब मेरे कुछ सावल हैं दोस्तो जैसा में अक्सर करता हूं। हर उस घटना पर जिसका सरोकार आप से होता है, अगर महिला को रात में भर्ती कर लिया गया था, तो वो फर्श पर कैसे पहुंची? अगर डिलीवरी अस्पताल में हुई थी, तो उस दर्द से चीखती महिला को किसने संभाला? स्टाफ कहां था? अगर यह साज़िश थी, तो उस साज़िश में सबसे ज्यादा पीड़ा उस नवजात ने क्यों झेली? क्या कोई अस्पताल प्रसूता को भर्ती करने से मना कर सकता है?

दोस्तो ये भी समझलीजिए कि भारत सरकार की नीति और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश साफ कहते हैं कि —हर गर्भवती महिला को समय पर, सुरक्षित और सम्मानजनक प्रसव सुविधा देना राज्य की ज़िम्मेदारी है। नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) के तहत, चाहे महिला गरीब हो, मजदूर की पत्नी हो, चाहे उसके पास पैसे हों या न हों — उसे इलाज से मना नहीं किया जा सकता, इसलिए जब हरिद्वार अस्पताल की डॉक्टर ने कहा कि “यहां डिलीवरी नहीं होगी”, तो उन्होंने ना सिर्फ एक महिला को ठुकराया, बल्कि कानून की भी अवहेलना की और जब स्टाफ ने कहा – तेरा मरीज है, तू ही देख, तो उन्होंने पूरे अस्पताल तंत्र की सोच सामने रख दी। सवाल जो पूरे सिस्टम से पूछे जाने चाहिए दोस्तो आप भी पूछियेगा, एक महिला, जो प्रसव पीड़ा में थी, उसे अस्पताल से क्यों निकाला गया? डॉक्टर और नर्स ने तुरंत प्राथमिक मदद क्यों नहीं दी? फर्श पर तड़पती महिला को मदद की बजाय तमाशा क्यों बना दिया गया? आशा वर्कर को वीडियो बनाने से रोकना किसे बचाने की कोशिश थी? सीएमओ ने वीडियो को साज़िश के चश्मे से देख रहे हैं। अब ये साजिश कहने की हिम्मत कैसे कर ली – क्या उन्हें लोगों की संवेदना का कोई डर नहीं? दोस्तो इन सवालों का जवाब सिर्फ जांच से नहीं, राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति से मिलेगा। मुझे ऐसा लगता है ये पहली घटना नहीं है – लेकिन शायद आखिरी होनी चाहिए। दोस्तो हरिद्वार की यह घटना कोई अपवाद नहीं है। इससे पहले भी देश के कई हिस्सों से ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। कभी महिला अस्पताल के गेट पर बच्चे को जन्म देती है,कभी ऑक्सीजन के अभाव में नवजात दम तोड़ता है।और कभी इलाज के इनकार से मां और बच्चा दोनों मर जाते हैं। हर बार स्वास्थ्य विभाग एक कमेटी बनाता है, जांच होती है, फाइलें बंद हो जाती हैं। लेकिन इस बार जो वीडियो सामने आया है, उसने झूठ को छिपाने की गुंजाइश नहीं छोड़ी है। दोस्तो अगर अस्पताल सुरक्षित नहीं, तो कहां जाए आम आदमी? कहां जाएगी गर्भवती महिला जवाब आप कमेंट के जरिए दीजिएगा।