उत्तराखंड में जनता के लिए आवाज़ उठाना अब विधायक को भारी पड़ता दिख रहा है। बिजली कटौती के विरोध में खंभे पर चढ़कर प्रदर्शन करना झबरेड़ा से कांग्रेस विधायक वीरेंद्र जाति को मुश्किल में डाल सकता है। बिजली विभाग ने इस कार्रवाई को गैरकानूनी बताते हुए थाने में शिकायत दी है। सवाल ये है—क्या जनता के लिए किया गया यह कदम अब विधायक पर कार्रवाई की वजह बनेगा? पूरी कहानी आगे, दोस्तो उत्तराखंड में जनता के लिए खंभे चढ़ना अब विधायक को भारी पड़ सकता है। कांग्रेस के विधायक वीरेंद्र जाति के इस कदम के बाद विद्युत विभाग ने थाने में शिकायत दर्ज कराई है और कानूनी कार्रवाई के संकेत दिए हैं। क्या विधायक की इस कार्रवाई पर होगी कार्रवाई? पूरे मामले की पड़ताल हमारे साथ, खबर को अंत तक जरूर देखिएगा दोस्तो बिजली कटौती के विरोध में जनता के लिए आवाज़ उठाना जनप्रतिनिधियों का अधिकार है, लेकिन जब यही विरोध कानून की सीमाओं को पार कर जाए, तो सवाल उठना लाज़मी है। झबरेड़ा विधानसभा से कांग्रेस विधायक वीरेंद्र जाति का एक ऐसा ही कदम अब उनके लिए मुश्किलें खड़ी करता दिख रहा है। सरकारी आवासों की बिजली काटे जाने के मामले में विद्युत विभाग ने विधायक के खिलाफ थाने में तहरीर देकर कानूनी कार्रवाई की मांग की है। इस पूरे घटनाक्रम के बाद प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है।
दरअसल, मामला उस वक्त तूल पकड़ गया जब सुबह इलाके में अघोषित बिजली कटौती से नाराज़ विधायक वीरेंद्र जाति अपने समर्थकों के साथ सीधे बिजली विभाग के अधिकारियों के सरकारी आवासों पर पहुंच गए। आरोप है कि विधायक और उनके समर्थकों ने बिना किसी पूर्व अनुमति, तकनीकी जानकारी और सुरक्षा इंतजामों के बिजली के खंभों पर चढ़कर आपूर्ति काट दी। इस दौरान न तो शटडाउन लिया गया और न ही विभागीय कर्मचारियों को सूचना दी गई, जिससे कई अधिकारियों के आवास अचानक अंधेरे में डूब गए।घटना की सूचना मिलते ही बिजली विभाग में हड़कंप मच गया। अधीक्षण अभियंता कार्यालय में तत्काल अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई गई, जिसमें इस पूरे कृत्य को न केवल नियमों का उल्लंघन, बल्कि जानलेवा लापरवाही करार दिया गया। अधिकारियों का कहना है कि बिना शटडाउन के लाइन काटना किसी बड़े हादसे को न्योता दे सकता था, जिसमें जान-माल का भारी नुकसान हो सकता था। बैठक के बाद उपखंड अधिकारी द्वारा सिविल लाइंस कोतवाली पहुंचकर लिखित शिकायत दी गई। तहरीर में साफ तौर पर कहा गया है कि विभागीय अधिकारियों के सरकारी आवासों की बिजली लाइन जानबूझकर और गैरकानूनी तरीके से काटी गई, जिससे न केवल सरकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न हुई, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई। विभाग का यह भी कहना है कि यह कृत्य सरकारी कामकाज में सीधा हस्तक्षेप है, जिसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस मामले पर शहरी क्षेत्र के अधिशासी अभियंता अनिल कुमार मिश्रा ने कहा कि बिजली व्यवस्था एक संवेदनशील प्रणाली है और इसमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ गंभीर परिणाम ला सकती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि बिना शटडाउन लाइन काटना न सिर्फ नियमों के खिलाफ है, बल्कि इससे बिजली कर्मचारियों और आम नागरिकों की जान को भी खतरा हो सकता है।
विभाग ने मजबूरी में कानूनी रास्ता अपनाया है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के अधिशासी अभियंता विनोद पांडेय ने कहा कि विरोध का अधिकार सभी को है, लेकिन कानून हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती, चाहे वह जनप्रतिनिधि ही क्यों न हो। उन्होंने कहा कि विभाग ने मामले से जुड़े सभी तथ्य पुलिस को सौंप दिए हैं और अब जांच के बाद ही आगे की कार्रवाई तय होगी। फिलहाल, पुलिस ने तहरीर के आधार पर जांच शुरू कर दी है और घटनास्थल से जुड़े तथ्यों, वीडियो फुटेज और गवाहों के बयान जुटाए जा रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या एक विधायक द्वारा इस तरह का कदम उठाना उचित था और क्या इस मामले में उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। एक तरफ जहां कांग्रेस विधायक इसे जनता के हित में उठाया गया कदम बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन और विद्युत विभाग इसे कानून व्यवस्था और सुरक्षा से खिलवाड़ मान रहा है। अब सबकी निगाहें पुलिस जांच और प्रशासन के अगले कदम पर टिकी हैं। यह देखना अहम होगा कि क्या यह मामला केवल राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित रहेगा या फिर वास्तव में कानून अपना रास्ता तय करेगा।