नींव से निकला विकास? गांव को चाहिए इंसाफ ! | Uttarakhand News | Heavy Rain | Landslide | Chamoli

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दोस्तों जब पहाड़ कांपते हैं तो सिर्फ जमीन नहीं हिलती घर सपना भरोसा और भविष्य सब चरमरा जाता है। उत्तराखंड में टूटे घर डगमगाते सपने, पल्ला गांव की त्रासदी विस्थापन का सवाल रोंगटे खड़े कर देने वाली खबर लेकर आया हूं। दगड़िया घर में नहीं दिलों में भी पड़ी है दरें किसका है यह पाप खुद ही तय करिए आगे बहुत कुछ बताऊंगा सरकारों और सिस्टम की बेरुखी के बारे में। Ambedkar village of origin valley of Chamoli district उत्तराखंड चमोली जिले की उद्गम घाटी का पल्ला अंबेडकर गांव आज एक विकास जनित आपदा का शिकार है 30 और 31 अगस्त की रात है इस गांव के लिए सदियों तक न घूमने वाली त्रासदी बन गई पुलिस स्टॉप वैसे मैं यहां के हालात पर पहले भी खबर बनाकर आपको बता चुका हूं लेकिन यहां के हाल आज सिर्फ खबर नहीं है इसलिए उसे तकलीफ को बताने आया हूं। लोगों के घरों में अचानक दरारें पढ़ने लगी दीवारें हिलने लगी और जमीन खिसकने लगी गांव वालों को रातों-रात अपने घर छोड़कर बाहर जाना पड़ा वह भी तब जब वहां रहने वाले अधिकतर परिवार दलित निर्धन और सामाजिक रूप से वंचित वर्ग से आते हैं। दगड़ियों पल्ला गांव के ठीक नीचे टीएचडीसी की विष्णु गाढ़ पीपल कोठी जल विद्युत परियोजना की सुरंग बनाई जा रही है।

स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि बीते कहीं मीना से रात को सुरंग में जोरदार धमाके होते थे जिसकी गूंज घरों की दीवारों में महसूस होती थी जी हां दगड़ियों इससे पहले मैंने आपको एक ख़बर बताई थी ऋषिकेश कर्ण प्रयाग हाईवे पर दरारें से दहशत फैल रही है कैसे 12 परिवारों ने छोड़े घर बताया है मैंने रेलवे टनल या तबाही की सुरंग के बारे में वहां भी इसी तरह की परेशानी है और यहां भी। आगे लोगों की परेशानी को बता रहा हूं सरकार से सवाल करने जा रहा हूं अब जोशीमठ के पल्ला की यह गूंज दरारों में बदल गई। घरों की नींव हिल चुकी है, और दीवारें बस गिरने की कगार पर हैं हमारे पास घर के सिवाय कुछ नहीं था वह भी नहीं रहा पुलिस ऑफ जीवन भर की पूंजी टूट रही है दगड़िया यह गांव उत्तराखंड के उन सैकड़ो गांव में से एक है जहां घरों को बनाना एक पीढ़ी का सपना होता है ईट दर इत जोड़कर, सालों की कमाई मेहनत मजदूरी और सपना से जो घर खड़ा होता है उसकी दीवार में जब दरार पड़ती है तो सिर्फ प्लास्टर नहीं टूटता आत्मा भी चटकती है।

दगड़ियों आज 30 से ज्यादा परिवार अपने घर खाली कर चुके हैं लेकिन अब तक इन्हें सिर्फ दो टेंट मिले हैं। क्या सरकार को यह नहीं पता कि पहाड़ की ठंडी रातें कैसा कर बार पाती हैं पुलिस स्टॉप छोटे बच्चों बुजुर्गों और महिलाओं को खुले में रहना पड़ रहा है स्कूल जाने वाले बच्चों गर्भवती महिलाएं और बीमार लोग सबसे ज्यादा प्रभावित है दगड़ियों यह सवाल उठता है क्या यही है आप जा रहता क्या टेंट से थमा दिया जाएगा इन परिवारों का दर्द? वायरल हुए वीडियो में एक महिला रोते हुए दिख रही है उसका परिवार किस तरह धड़क गया हीरो सिर्फ दीवारों की दरार नहीं सिस्टम की छुपी और विकास की संवेदनहीनता का आईना है। हम अधिकारी मौके पर जाकर देख रहे हैं कि कितना नुकसान हुआ है लेकिन यह क्यों नहीं देखा जा रहा है कि उसे नुकसान की जिम्मेदारी कौन है इधर टीएचडीसी से मुआवजा की मांग लेकिन क्या मुआवजा भर पाएगी टूटी उम्मीदों को ग्रामीणों ने टीएचडीसी से मुआवजे और स्थानीय पुनर्वास की मांग की है। पर क्या कुछ लख रुपए इन लोगों के आत्मिक सामाजिक और पारिवारिक नुकसान की भरपाई कर पाएंगे क्या विकास का मतलब यह है कि जो गरीब है उसका घर पहले जाएगा फिर विकास आएगा। दगड़िया यह सवाल सिर्फ पल्ला गांव का नहीं है बल्कि पूरे हिमालय क्षेत्र का है जहां बिना परिवार पर्यावरणीय संतुलन की चिंता किए बड़ी-बड़ी परियोजनाएं बना दी जाती हैं और जब गांव दर्द में लगते हैं तो प्रशासन अचानक आई प्राकृतिक आपदा कहकर पल्ला झाड़ दिया। जोशीमठ तवा घाट और अब पल्ला कितने और गांव उजड़ेंगे विकास के नाम पर यह तो बात नहीं दगडे होने के लिए यहां रहने वाले लोगों की परेशानी बड़ी है चुनौती है लोगों के लिए की कैसे अपने घर भर जमीन को बचाए इधर सरकार और सिस्टम की बेरुखी जले पर नमक छिड़कने का काम करती है।