अब पानी नहीं, इंसानियत बहेगी! | Uttarakhand News | Dharali | Uttarkashi

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उत्तरकाशी फिर संकट में: अब यमुना घाटी में कहर, आधा किलोमीटर लंबी झील ने निगला स्याना चट्टी! जी हां दगड़ियो उत्तरकाशी की पीड़ा, हर्षिल के बाद यमुना घाटी में तबाही, अस्थायी झील ने उजाड़ा बसा-बसाया संसार। खबर एक बार फिर चिंता को बढा देने वाली है। Uttarkashi Syanachatti Alert दगड़ियों उत्तरकाशी, एक बार फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। लेकिन यह सिर्फ एक कुदरती आपदा नहीं है – यह एक प्रशासनिक विफलता, पूर्व चेतावनी तंत्र की असफलता और सिस्टम की गहरी संवेदनहीनता की करुण कथा है। ये समझ लीजिए जो में आप आपके साथ साझा करने जा रहा हूं, दोस्तो पहले हर्षिल, अब यमुना घाट सवाल उठता है कि आखिर कब तक उत्तरकाशी के लोग प्रकृति और प्रशासन के दोहरे प्रहार का शिकार बनते रहेंगे? तस्वीरों को देखकर आपको अंदाजा लग गया होगा कि मै जिस खतरे के बारे में बार बात करता हूं। पहाड़ पर पहाड़ जैसी चुनौतियों की बात करता हूं, वो ये ही है, वो ऐसी ही होती है। दोस्तो इस इलाके की आप पूरानी तस्वीर देखेगे तो आप कहेंगे वाह क्या क्या खूबसूरत गांव है कस्बा है। इस गांव की कस्बे की बस एक ही गलती है वो नदी के किनारे पर है और हां दोस्तो इसकी खूबसूरती इसी नदी ने बनाई और बिगाड़ भी उसी का पानी है। यमुनोत्री राजमार्ग पर स्थित स्याना चट्टी कस्बा अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। यहाँ एक अस्थायी झील बन चुकी है, जिसने इलाके की तस्वीर ही बदल दी है।

यह कोई छोटी झील नहीं है — आधा किलोमीटर लंबी और 300 मीटर चौड़ी झील ने पूरा कस्बा निगल लिया है। जहाँ पहले बच्चों की हँसी गूंजती थी, वहाँ अब सिर्फ डर और सन्नाटा है, जहाँ पहले लोग घरों से निकलकर स्कूल, बाजार, मंदिर जाया करते थे, अब वहाँ नाव चलाने की भी जगह नहीं बची। होटल, मकान, स्कूल, पुल — सब कुछ पानी में डूब चुका है, बाकी मै क्या कहूं और कैसे कहूं ये मेरे अगल बगल और पीछे चलती तस्वीरे सब बयां कर रही हैं। यह कोई प्राकृतिक झील नहीं, यह सिस्टम की निष्क्रियता से जन्मी त्रासदी है, मुझे जो लगता है। दगड़ियों कुपड़ा और कुनसाला जैसे गाँवों पर अब भी खतरा मंडरा रहा है, झील हर पल बढ़ रही है और उसके साथ डर भी। सैकड़ों लोग रातें जागकर काट रहे हैं, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि अगली सुबह उनका घर होगा या नहीं..एक ओर झील का फैलाव, दूसरी ओर प्रशासन का ढुलमुल रवैया — ये मिलकर स्थानीय लोगों के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं। दोस्तो यहां आपके मन में एक सवाल होगा कि झील कैसे बनी, इस त्रासदी के पीछे वजह बना एक प्राकृतिक नाला — जिसे स्थानीय भाषा में “गदेरा” कहा जाता है, इस गदरे के मलबे ने यमुना नदी के प्रवाह को रोक दिया, जिससे नदी ने दूसरी दिशा में बहना शुरू कर दिया और वही पानी झील में तब्दील हो गया। यह कोई अचानक हुई घटना नहीं थी। पहले से संकेत मिल रहे थे कि बहाव असामान्य हो रहा है, पर न तो चेतावनी जारी की गई, न ही कोई कार्रवाई, दगड़ियो अब जबकि आधा कस्बा डूब चुका है, तब जाकर सरकार और प्रशासन जागे हैं।

दगड़ियों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हर परिवार को सुरक्षित जगह पहुंचाने के निर्देश दिए हैं। पर एक सवाल पूछना ज़रूरी है — जब ये झील बनने लगी थी, तब कहां थे ये आदेश? क्या उत्तरकाशी के लोग तब तक मरते रहेंगे जब तक राजधानी देहरादून से कोई फाइल पास नहीं होती? SDRF, NDRF और जिला प्रशासन मैदान में, लेकिन, अब प्रशासन कह रहा है कि SDRF, NDRF और जिला प्रशासन की टीमें मौके पर हैं और हालात पर नज़र बनाए हुए हैं।150 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है — ये स्वागत योग्य है, लेकिन जब संकट हज़ारों पर मंडरा रहा हो, तो सौ–डेढ़ सौ लोगों की सुरक्षा पर्याप्त नहीं कही जा सकती। दगड़ियों कहीं न कहीं, ये राहत कार्य एक “फॉर्मेलिटी” से अधिक कुछ नहीं लग रहा — क्योंकि न योजना है, न तैयारियाँ। जिलाधिकारी प्रशांत आर्य स्मार्ट कंट्रोल रूम से हालात की निगरानी कर रहे हैं। यह तकनीकी पहल सराहनीय हो सकती है — लेकिन क्या एक स्क्रीन पर बाढ़ का नक्शा देखने से उन लोगों की पीड़ा महसूस हो सकती है, जिनके घर बह चुके हैं? या डूब रहे हैं… टूट रहें हो। क्या कंट्रोल रूम से किसी बच्चे की चीखें सुनाई देती हैं जो अपना स्कूल बहता देख रहा है?दगड़ियों ये सोचने वाली बात है कि यह पहली बार नहीं है जब यमुना नदी को चैनलाइज करने की बात हुई हो। पहले भी सरकारी योजनाएं बनीं, बजट स्वीकृत हुए, चैनलाइजेशन का दावा किया गया — लेकिन अभी की स्थिति बताती है कि या तो वो काम पूरा नहीं हुआ, या किया ही नहीं गया। बहाव इतना तेज है कि यमुना फिर से बेकाबू हो गई है। तो क्या ये मान लिया जाए कि हमारे सिस्टम में नदियों को नियंत्रित करने की क्षमता ही नहीं है?

स्याना चट्टी के लोग सिर्फ घर नहीं खो रहे, वो अपनी पहचान, अपना भविष्य और अपने सपने भी डूबते देख रहे हैं। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, बुजुर्गों को दवा नहीं मिल रही, महिलाएँ सुरक्षित नहीं हैं — और अधिकारी सिर्फ बयान दे रहे हैं।यह सिर्फ एक पर्यावरणीय संकट नहीं है, यह एक इंसानी त्रासदी है, जिसका हल कागजों में नहीं, जमीनी स्तर पर होनी चाहिए। सवाल पूछने का वक्त है, चुप रहने का नहीं अब वक्त आ गया है कि हम सवाल पूछें। यमुना घाटी में निगरानी तंत्र क्यों नहीं था? SDRF और NDRF तब तक क्यों नहीं भेजे गए जब संकेत मिल रहे थे?चैनलाइजेशन के नाम पर हुए बजट का क्या हुआ?कितने और गांव तबाह होने के बाद जागेगा सिस्टम? अब सिर्फ राहत नहीं, जवाबदेही चाहिए दोस्तो.. लेकिन वो कैसे और कब होगी ये मै नहीं जानता। उत्तरकाशी के लोगों को अब राशन, टेंट या कंबल नहीं, एक भरोसा चाहिए — कि अगली बार कोई हर्षिल या स्याना चट्टी न डूबे। उन्हें चाहिए एक स्थायी समाधान, एक योजना जो सिर्फ कागज पर न हो, जमीन पर भी दिखाई दे।सरकार को अब सिर्फ आदेश नहीं, कार्रवाई करनी होगी। अगर हम अभी भी नहीं जागे, तो अगली बारी किसी और घाटी, किसी और कस्बे की होगी। अब और नहीं अब पानी नहीं, इंसानियत बहेगी! हर बार की तरह अगर यह हादसा भी “एक और प्राकृतिक आपदा” बनकर मीडिया की सुर्खियों से गायब हो गया, तो हम सब दोषी होंगे — सिर्फ सरकार नहीं, समाज भी। उत्तरकाशी की आवाज़ बनिए, क्योंकि आज वहाँ है, कल कहीं और होगा।