उत्तराखंड में 28 अगस्त से भक्ति की बहार, होगा संस्कृति और आस्था का संग। नंदा देवी महोत्सव शुरूआत होने जा रही है। 28 अगस्त से भक्ति की बहार होगी, और मां नंदा-सुनंदा की आराधना होगी। 31अगस्त को प्राण प्रतिष्ठा होगी। Maa Nanda Devi Mela 123वां नंदा महोत्सव अपने आप बेहद खास है। ये भक्ति, संस्कृति और आस्था का संगम है। ये कुमाउं अंचल का प्रमुख त्यौहार मनाने के लिए उत्तराखंड तैयार है। इस ऐतिहासिक महोत्सव के बारे में क्या आप जानते हैं। ये क्यों मनाया जाता है और कब से मनाया जा रहा है। दोस्तो 9 दिन भक्ति में रंग रहते हैं। उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र के प्रमुख त्योहारों में से एक, नंदा देवी मेला अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, भवाली और कोट जैसे स्थानों के साथ-साथ जोहार के दूर-दराज के गाँवों में भी आयोजित किया जाता है। यह मेला हर साल सितंबर के महीने में आयोजित किया जाता है। अल्मोड़ा ही मुख्य मेले का स्थान है। नंदा देवी मेला, जिसे नंदा देवी महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है, चंद राजाओं के शासनकाल से मनाया जाता रहा है और इसकी अवधि 5 या 7 दिन होती है। यह मेला आमतौर पर नंदाष्टमी के आसपास आयोजित होता है, जो राज्य के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है दोस्तो कहा जाता है कि नंदा देवी कुमाऊं क्षेत्र के शासक चंद राजाओं की कुल देवी थीं।
17वीं शताब्दी में राजा द्योत चंद ने अल्मोड़ा में नंदा देवी का मंदिर बनवाया था। इस प्रकार, तब से हर साल कुमाऊं की देवी नंदा देवी की पूजा के लिए नंदा देवी मेले का आयोजन किया जाता है और यह क्षेत्र की आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। लोग नंदा देवी और उनकी बहन सुनंदा के डोला (पालकी) को ले जाने वाले जुलूस में भाग लेते हैं। मेला आमतौर पर नंदा देवी मंदिर के आसपास लगता है। लोकगीतों और नृत्य के साथ-साथ मंदिर के पास एक विशाल बाजार भी लगता है जहाँ स्थानीय हस्तनिर्मित उत्पाद और ग्रामीण शिल्प बेचे जाते हैं दगड़ियो उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों के साथ-साथ भारत के अन्य राज्यों से भी भक्त इस मेले में भाग लेने के लिए यहां आते हैं। इधर दोस्तो उत्तराखंड की सरोवर नगरी नैनीताल एक बार फिर भक्ति, संस्कृति और परंपरा की अनुपम छटा से सराबोर होने जा रही है। 28 अगस्त से यहां शुरू हो रहा है ऐतिहासिक 123वां नंदा देवी महोत्सव, जो 5 सितंबर तक चलेगा। इस भव्य आयोजन की जिम्मेदारी हमेशा की तरह नगर की प्रतिष्ठित संस्था श्री राम सेवक सभा ने संभाली हैं, जिसकी तैयारियां पूरे जोर-शोर से जारी हैं। इस यात्रा के बारे में मै आगे आपको बहुत कुछ बताने जा रहा हूं तो मेरे साथ आप अंत तक जरूर बने रहें। दोस्तो महोत्सव की शुरुआत 28 अगस्त को कदली वृक्ष (केले के पेड़) लाने की यात्रा से होगी, जो नंदा देवी पूजा की सदियों पुरानी परंपरा का अहम हिस्सा है।
29 अगस्त को यह वृक्ष नैनीताल पहुंचेगा और तल्लीताल धर्मशाला से भव्य नगर भ्रमण कर मल्लीताल स्थित मां नयना देवी मंदिर तक लाया जाएगा। यहां विधिवत पूजन के साथ मां नंदा-सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण प्रारंभ होगा। अब दगड़ियों आप जानना चाहेंगी की मां के दर्शन भकत्तों को कब हो पाएंगे। इसको लेकर आगे में बताने जा रहा हूं की कब प्राण प्रतिष्ठा होगी और कैसे श्रद्धालु मां के दर्शन कर सकते हैं। जानकारी के मुताबिक, 1 अगस्त को ब्रह्म मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी, जिसके बाद मां के दर्शन के लिए मंदिर के द्वार श्रद्धालुओं के लिए खुल जाएंगे। इस दौरान पूरे नगर में भक्ति का माहौल होगा, भजन-कीर्तन और लोक गायन की ध्वनि गूंजेगी, और भक्तगण मां के दरबार में अपनी श्रद्धा समर्पित करेंगे। महोत्सव का अंतिम दिन, 5 सितंबर को होगा, उस दिन नगर भ्रमण के बाद शाम को शुभ मुहूर्त में मां का डोला विसर्जन किया जाएगा। जिसमें सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मां की प्रतिमा को विदाई देने निकलेंगे। यह दृश्य आस्था और विरह का अनुपम संगम होगा। वहं आपको इस दौरान एक अनोकी प्रथा के बारे में बताता चलूं की इस भक्तमय महौल में एक प्रथा भी है जी हां दोस्तो नंदा देवी महोत्सव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि कुमाऊं की लोक संस्कृति, जन परंपरा और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। 90 के दशक से नैनीताल में एक विशेष परंपरा चल रही है, मां नंदा-सुनंदा के कैलेंडर और पोस्टर बांटने की। इस अनूठी रीत से महोत्सव का रंग हर घर तक पहुंचता है. भक्ति, लोक परंपरा और सामूहिक भागीदारी का यह पर्व न केवल नैनीताल बल्कि पूरे उत्तराखंड के सांस्कृतिक गौरव का भी जीवंत प्रमाण है।