गैरसैंण में रात को हो गया कुछ ऐसा, CM धामी को करना पड़ा फोन लेकिन फिर भी क्यों नहीं बनी बात.इतिहास में इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। कभी सड़क पर हंगामा अब सदन में हंगामा लेकिन ऐसा हंगामा जो कभी किसी ने देखा नहीं, ऐसा प्रदर्शन जो कभी हुआ नहीं, Congress Protested In Bhararisain जिसके लिए सीएम धामी आधी रात को फोन करें और तब भी बात ना बने जी हां दगड़िओ उत्तराखंड की भराड़ीसैंण विधानसभा ने इस बार इतिहास रच दिया। लेकिन यह कोई सकारात्मक इतिहास नहीं था — यह वो क्षण था जब लोकतंत्र के मंदिर में माइक उखाड़ दिए गए, टेबल पलटे गए और सत्ता तथा विपक्ष के बीच की खाई एक रात में और गहरी हो गई। मंगलवार को जैसे ही विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हुआ, विपक्ष ने सरकार को झकझोरने की ठान ली। लेकिन सवाल यह है — क्या यह सिर्फ विरोध था? या कांग्रेस ने पहले से सोच-समझकर एक ‘राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक’ की योजना बना रखी थी? ये इसका एक पहलू जिस पर मै बात कर रहा हूं। दूसरा भी बताऊंगा, आगे चलकर दगड़ियो ख्यमंत्री का फोन और कांग्रेस का इनकार — क्या सियासी इरादे पहले से तय थे? दगड़ियो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने व्यक्तिगत रूप से नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य को फोन कर मनाने की कोशिश की। यह कोई आम बात नहीं होती। जब खुद मुख्यमंत्री किसी मुद्दे को सुलझाने के लिए विपक्ष से बात करता है, तो संकेत साफ होते हैं — सरकार बातचीत के लिए तैयार है।लेकिन कांग्रेस पीछे नहीं हटी। बल्कि और आक्रामक हो गई। विपक्ष के 19 विधायक, निर्दलीय उमेश कुमार के साथ, सदन के अंदर ही रात भर डटे रहे। तो क्या ये प्रदर्शन अचानक हुआ? या कांग्रेस पहले से ही सत्ता पक्ष को नीचा दिखाने के लिए ये स्क्रिप्ट लिख चुकी थी?
एक सवाल तो ये है दूसरा ये कि जिन मुद्दो पर विपक्ष चर्चा चाहता है वो मुद्दे तो बेहद महत्पूर्ण है, तो ऐसे में सरकार क्यों चर्चा नहीं करा रही है। आगे बात करुंगा इसके उस पहलू पर भी लेकिन सदन में रात की ऐतिहासिक कार्यवाही की तस्वीर दिखाना चाहता हूं। दगड़ियों कांग्रेस का मुख्य मुद्दा कानून व्यवस्था है। नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में हुई धक्का-मुक्की। यशपाल आर्य के साथ हुई घटना को कांग्रेस ने कानून व्यवस्था पर सीधा हमला करार दिया। विपक्ष चाहता हैकि नियम 310 के तहत इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हो, लेकिन सरकार ने पहले से तय कार्यक्रम के तहत सदन की कार्यवाही चलाने पर ज़ोर दिया। और यहीं से शुरू हुआ हाई-वोल्टेज सियासी ड्रामा। दोस्तो ये में सदन के सत्र के पहले दिन और रात की बात कर रहूं हूं, लेकिन दूसरे दिन की शुरूआत भी कुछ इसी अंदाज में हुई। पहले दिन जहां के विधायकों ने माइक उखाड़ दिए, टेबल पलट दिए और बार-बार कार्यवाही को बाधित किया। ऐसे दृश्य भारतीय लोकतंत्र में बेहद दुर्लभ होते हैं, लेकिन उत्तराखंड ने इस बार सब देख लिया। बड़ा सवाल यह है — क्या कांग्रेस का यह कदम वास्तव में जनहित के लिए था? या यह सिर्फ सत्ता पक्ष को घेरने का एक तरीका था? जब सरकार कानून व्यवस्था पर बहस से कतरा रही थी, तब विपक्ष का धरना तर्कसंगत लग सकता है। लेकिन जब हंगामे का स्तर इतना बढ़ गया कि विधानसभा को स्थगित करना पड़ा, तो यह सिर्फ जनहित नहीं बल्कि ‘सियासी पावर प्ले’ बन गया।क्या कांग्रेस ने जानबूझकर सदन की मर्यादा को चुनौती दी ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके? या यह वाकई जनता के मुद्दे उठाने की आखिरी कोशिश थी?