प्रदेश सरकार के इस फैसले से कर्मचारियों ने जताई नाराजगी, ये है वजह…

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देहरादून: प्रदेश सरकार के पास आय के बेहद सीमित संसाधन है। खर्च में कटौती के भारी दबाव के चलते सचिवालय कर्मचारियों में भारी नाराजगी है। कुछ दिन पूर्व मंत्रिमंडल ने फैसला लिया कि राजकीय सेवा में आने वाले सभी कर्मचारियों के केंद्र सरकार से अधिक वेतनमान नहीं दिया जाएगा। सरकार का यह दावा भी है कि यह मौजूदा सेवारत कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा, लेकिन सचिवालय संघ आशंकित है कि सरकार के इस फैसले से सचिवालय कर्मियों के हित प्रभावित होंगे।

जीएसटी मुआवजा बंद होने से राज्य को केंद्र से अब पांच हजार रुपये सालाना नहीं मिलेंगे। सरकार को इस घाटे की पूर्ति करने के लिए आय के साधन के बढ़ाने के साथ फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाना पड़ रहा है। हाल ही मुख्यमंत्री ने मितव्ययिता को लेकर कुछ फैसले लिए। बता दे, राज्य की माली हालत बहुत अच्छी नहीं है। कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और ऋणों और ब्याज की अदायगी पर ही सरकार को 32 हजार करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च करनी पड़ रही है। जो कुल खर्च का 63.36 प्रतिशत है। 2020-21 के वास्तविक आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने कर्मचारियों के वेतन पर 13704 करोड़, पेंशन पर 6167 करोड़, ऋणों की अदायगी पर 8269 करोड़ और ब्याज की अदायगी पर 4773 करोड़ खर्च किए।

वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि सरकार हमेशा कर्मचारी हित में रही है। मंत्रिमंडल ने हाल में जो फैसला लिया है, वह राजकीय सेवा में आने वाले नए कर्मचारियों पर लागू होगा। वर्तमान कर्मचारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अग्रवाल ने कहा कि राज्य के वित्तीय संसाधन सीमित हैं। दूसरे राज्यों के पास हम से बहुत अधिक संसाधन हैं। हम राजस्व बढ़ाने और अपने खर्चों को सीमित करने पर जोर दे रहे हैं। वही सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी का कहना है कि इससे कर्मचारी हित प्रभावित होंगे। उनका तर्क है कि इससे आने वाले दिनों में नए तरह की वेतन विसंगति पैदा हो जाएगी। भविष्य में सीधी भर्ती से आने वाले कार्मिक और पदोन्नति से अगले पद पर जाने वाले सेवारत कार्मिक के वेतनमानों को लेकर होने वाले विरोधाभास और विसंगति के बारे में स्पष्ट करना चाहिए।