90 लाख का इंसाफ !| Nainital High Court | Uttarakhand News | Pappu Karki

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जी हां दोस्तो उत्तराखंड के गायक को सड़क हादसे ने छीन लिया, अब कोर्ट का फैसला बना परिवार की उम्मीद की रोशनी। पूरी खबर के बताने के लिए आया हूं दोस्तो ये खबर बेहद अहम है। Pappu Karki दोस्तो एक आवाज़ जो पहाड़ों से उठी और दिलों तक पहुंची — पप्पू कार्की लेकिन एक सड़क हादसे ने उस सुरीली यात्रा को अधूरा छोड़ दिया। परिवार टूटा, सपने बिखरे और फिर शुरू हुई एक लंबी कानूनी लड़ाई। आज, सालों बाद हाईकोर्ट का वो फैसला आया है — जिसने एक बार फिर उम्मीद की रौशनी जलाई है। बीमा कंपनी की अपील खारिज की है— और पप्पू कार्की के आश्रितों को मिलेंगे पूरे ₹90 लाख। दगड़ियो बताने जा रहा हूं कि कैसे आया ये फैसला? क्यों इतने साल खिंची ये लड़ाई? और इस इंसाफ की कीमत क्या सिर्फ़ पैसे से आंकी जा सकती है? दोस्तो 9 जून 2018 — एक तारीख जिसने उत्तराखंड की संगीत दुनिया से एक उभरता सितारा छीन लिया। एक दर्दनाक सड़क हादसे में कुमाऊंनी लोकगायक पवेंद्र सिंह ‘पप्पू’ कार्की की जान चली गई, लेकिन आज, सात साल बाद, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है जो सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं, बल्कि उनके परिवार के लिए न्याय और सम्मान की अनुभूति है। दगड़ियो उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की एकलपीठ ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की अपील को खारिज कर दिया है। ये अपील मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें पप्पू कार्की के आश्रितों — उनकी पत्नी कविता कार्की और अन्य परिजनों को ₹90,01,776 (नब्बे लाख एक हजार सात सौ छिहत्तर रुपये) मुआवजा देने का आदेश दिया गया था।

दोस्तो हाईकोर्ट ने साफ कहा कि बीमा कंपनी के तर्क असंगत और आधारहीन हैं। कंपनी की ये दलील कि गायक की आमदनी अनियमित थी और आयकर रिटर्न मृत्युपश्चात दाखिल किए गए, अदालत ने खारिज कर दिए। कोर्ट ने माना कि गायक की आमदनी का आकलन वैध दस्तावेजों (ITR) पर आधारित था और दुर्घटना की जिम्मेदारी लापरवाह ड्राइविंग की वजह से थी, न कि किसी जंगली जानवर को बचाने की कोशिश के चलते। यहां दोस्तो आपको ये बता दूं कि कैसे हुआ हादसा? दगड़ियो हादसा 9 जून 2018 को हुआ था, जब पप्पू कार्की अपनी मंडली के साथ एक कार्यक्रम से लौट रहे थे। कार गौनियारो हैड़ाखान से हल्द्वानी जा रही थी और ग्राम मुरकुड़िया के पास एक गहरे खड्ड में गिर गई। इस दुर्घटना में पप्पू कार्की और वाहन चालक की मौके पर ही मौत हो गई। दोस्तो ये सिर्फ एक सड़क दुर्घटना नहीं थी — यह उत्तराखंड की लोकसंगीत परंपरा के लिए एक बड़ी क्षति थी। दगड़ियो वैसे तो पप्पू कार्की को कौन नहीं जानता उत्तराखंड में लेकिन मै बता दूं कि उनका जन्म 30 जून 1984 को पिथौरागढ़ जिले के शैलावन गांव में हुआ था। वे एक मेहनती, जुझारू और बेहद प्रतिभाशाली लोकगायक थे, जिन्होंने कुमाऊंनी संगीत को नई पहचान दी। उन्होंने पारंपरिक लोकगीतों को आधुनिक अंदाज में प्रस्तुत किया और युवाओं के दिलों में अपनी जगह बनाई। जब उनके प्रसिद्ध गीतों कि बात आती है तो उन गानों को लोग आज भी आत्मयता के साथ सुनते हैं जैसे। डीडीहाट की छमना छोरी, ऐ जा रे चैत बैशाखा मेरो मुनस्यारा, तेरी रंगीली पिछौड़ी, उत्तरैणी कौतिक लगिरौ, हीरा समदणी, ये गीत जिन्होंने उत्तराखंड के घर में घर में जगह बनाई और हां वो लाली हो लाली होंसिया,पहाड़ो ठंडो पाणी।

दगड़ियो इन गीतों में सिर्फ मनोरंजन नहीं, पहाड़ की संस्कृति, जीवनशैली और जज़्बात झलकते हैं। वहीं आपको ये भी बता दूं कि पप्पू कार्की का सफर आसान नहीं था। संगीत में करियर बनाने के साथ-साथ उन्होंने रोज़गार के लिए दिल्ली में 6 साल तक नौकरी की। इसी दौरान उन्होंने उत्तराखंड आइडल 2006 में दूसरा स्थान हासिल किया। 2009 में मसूरी संगीत महोत्सव में उन्हें “सर्वश्रेष्ठ उभरता गायक” चुना गया। 2010 में रिलीज़ हुआ उनका एल्बम “झम्म लागदी” कुमाऊंनी संगीत में एक मील का पत्थर साबित हुआ। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा, 2014 में उन्हें यूका अवॉर्ड और 2015 में गोपाल बाबू गोस्वामी पुरस्कार से नवाज़ा गया। दोस्तो गायक पवनदीप राजन — इंडियन आइडल विजेता — भी पप्पू कार्की की मंडली का हिस्सा रह चुके हैं, जो उनके प्रभाव और प्रेरणा को दर्शाता है। हालांकि 2018 की दुर्घटना ने पप्पू कार्की को हमसे छीन लिया, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी पहाड़ की वादियों में गूंजती है। उनके गीत, उनके शब्द, और उनका संघर्ष — सब कुछ आज भी युवाओं को प्रेरणा देता है।

हाईकोर्ट का यह फैसला केवल मुआवज़ा नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक संदेश है कि कलाकारों की मेहनत और उनके परिवार की पीड़ा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बीमा कंपनी ने हाईकोर्ट में यह तर्क दिया था कि गायक की आय अनियमित थी। आयकर रिटर्न उनके निधन के बाद दाखिल किए गए। दुर्घटना चालक की लापरवाही से नहीं, बल्कि जंगली जानवर को बचाने के प्रयास में हुई। दोस्तो पप्पू कार्की चले गए, लेकिन उनका संघर्ष, उनकी सादगी और उनका संगीत आज भी हर पहाड़ी दिल की धड़कन बना हुआ है। उत्तराखंड हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक ऐसी गूंज है जो यह याद दिलाती है — कि न्याय देर से मिल सकता है, लेकिन जब मिलता है तो वो सिर्फ शब्द नहीं, मरहम बन जाता है।