उत्तराखंड विधानसभा का नज़ारा आज कुछ ऐसा था, जो पहले कभी नहीं देखा गया, जब राष्ट्रपति सदन में पहुंचीं तो पलकें झपकाना तक भूल गईं — क्योंकि सदन में नज़ारा था परंपरा और आधुनिकता के मिलन का, महिला विधायक और स्पीकर पारंपरिक वेशभूषा में नजर आईं, और पूरे सदन ने संस्कृति की वो झलक पेश की जिसने इतिहास रच दिया। Uttarakhand Culture Dress कैसे वो पल, जब उत्तराखंड का सदन सच में ‘देवभूमि’ की पहचान बन गया, शान बन गया। दगड़ियो दरअसल उत्तराखंड सदन की तस्वीर ऐसी रही कि सब देखते रहे गए। जी हां दोस्तो उत्तराखंड की रजत जयंती। परंपरा, पहचान और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बना विधानसभा का विशेष सत्र, दोस्तो उत्तराखंड के इतिहास में 9 नवंबर का दिन हमेशा से खास रहा है। यही वो तारीख है जब साल 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड ने एक नए राज्य के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। आज, 25 साल बाद, जब ये राज्य अपनी रजत जयंती मना रहा है, तो देहरादून स्थित विधानसभा भवन में कुछ ऐसा नज़ारा दिखा जिसने इतिहास रच दिया। ये सिर्फ एक विशेष सत्र नहीं था, बल्कि ये उत्तराखंड की आत्मा — उसकी संस्कृति, उसकी परंपरा और उसकी नारी शक्ति का जीवंत प्रदर्शन था।
दोस्तो राज्य की रजत जयंती के मौके पर विधानसभा भवन को फूलों से इस तरह सजाया गया था मानो कोई दुल्हन सजी हो। जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू विशेष सत्र को संबोधित करने पहुंचीं, तो पूरा परिसर उत्तराखंड की संस्कृति, रंग और पहचान में सराबोर दिखा। विधानसभा की दीवारों से लेकर मंच तक, हर कोना मानो ये कह रहा था — ये उत्सव सिर्फ वर्षों का नहीं, यह पहचान का है। पारंपरिक वेशभूषा में दिखीं महिला विधायक — संस्कृति का सजीव प्रदर्शन। दोस्तो सदन के भीतर कुछ ऐसा दृश्य देखने को मिला जो शायद इससे पहले कभी नहीं देखा गया था। महिला विधायक अपनी-अपनी पारंपरिक वेशभूषा में विधानसभा पहुंचीं और पूरे सदन में एक सांस्कृतिक सौंदर्य बिखेर दिया। दोस्तो नैनीताल विधायक सरिता आर्या कुमाऊंनी पिछौड़ा ओढ़े नजर आईं। केदारनाथ विधायक आशा नौटियाल अपनी ठेठ पहाड़ी वेशभूषा और पारंपरिक आभूषणों के साथ सदन पहुंचीं। वहीं यमकेश्वर विधायक रेणु बिष्ट ने भी अपनी क्षेत्रीय संस्कृति का शानदार प्रदर्शन किया। दोस्तो इन विधायिकाओं की उपस्थिति ने न सिर्फ सदन को रंगीन बनाया बल्कि ये भी साबित किया कि महिलाएं राजनीति में सिर्फ प्रतिनिधि नहीं, बल्कि परंपरा की वाहक भी हैं। दोस्तो अब जब बात महिलाओं की हो रही थी तो पुरुष विधायक कहां पीछे रहने वाले थे। दोस्तो सिर्फ महिला विधायक ही नहीं, बल्कि पुरुष विधायक भी अपनी संस्कृति को जीते हुए नजर आए। पुरोला विधायक दुर्गेश्वर लाल अपने रवांई और मोरी क्षेत्रीय पारंपरिक वस्त्रों में विधानसभा पहुंचे। उनकी ये सादगी भरी परिधान में उपस्थिति उत्तराखंड के विविध सांस्कृतिक परिदृश्य की झलक थी। बात अगर विधानसभा अध्यक्ष की करें तो स्पीकर ऋतु भूषण खंडूड़ी का भी पारंपरिक लुक आकर्षण का केंद्र बना। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खंडूड़ी खुद पारंपरिक पिछौड़ा और पौंजी के साथ सदन में मौजूद थी उनका ये लुक पूरे दिन चर्चा में रहा, उन्होंने न केवल पहाड़ी संस्कृति को सम्मान दिया, बल्कि ये भी संदेश दिया कि “परंपरा और पद” दोनों एक साथ निभाए जा सकते हैं।
दोस्तो ये सत्र ऐतिहासिक है, क्योंकि ये राष्ट्रपति की मौजूदगी में हुआ और इसमें महिलाओं की भागीदारी अभूतपूर्व रही। इस मौके पर विधानसभा अंध्यक्ष ने कहा कि ये हमारे राज्य की 25वीं वर्षगांठ है, और हमारे लिए यह सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं बल्कि एक त्योहार है। हमारी यह पुरानी परंपरा रही है कि त्योहारों पर हम सब बहनें सजती हैं, और आज सदन में वही रंग और वही आत्मा झलक रही है। तो माहौल ही कुछ ऐसा था कि देश की राष्ट्रपति भी एक टक देखती रहीं। दोस्तो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने अभिभाषण में उत्तराखंड में महिलाओं के योगदान और सशक्तिकरण की सराहना की। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की महिलाएं शिक्षा, प्रशासन, सेना और सामाजिक कार्यों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। राष्ट्रपति ने महिला शिक्षा के विस्तार पर विशेष रूप से चर्चा करते हुए कहा नारी शक्ति के बिना कोई भी समाज पूर्ण नहीं हो सकता। उत्तराखंड की महिलाएं पर्वतों की तरह मजबूत हैं, और यही इस राज्य की असली पहचान हैं। दोस्तो विशेष सत्र राजनीति से अधिक संस्कृति का उत्सव बन गया। सदन में पहली बार परंपरा और आधुनिकता एक साथ दिखाई दीं। जहां मंच पर संवैधानिक गरिमा थी, वहीं दर्शक दीर्घा में परंपरा की झलक थी। ये वो दिन था जब देवभूमि की राजनीति ने अपनी आत्मा — “पहाड़ की संस्कृति” — को सम्मान दिया। दोस्तो 25 साल पूरे होने पर उत्तराखंड विधानसभा का ये सत्र सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं था, बल्कि ये उस संघर्ष, उस संस्कृति और उस शक्ति को नमन था, जिसने इस राज्य को बनाया। ये तस्वीर आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संदेश है — कि विकास तभी सार्थक है जब उसमें अपनी जड़ों की पहचान बची रहे। उत्तराखंड ने न सिर्फ अपनी राजनीतिक परिपक्वता दिखाई, बल्कि ये भी बताया कि जब महिला नेतृत्व, संस्कृति और संविधान एक साथ चलते हैं, तो हर सत्र इतिहास बन जाता है।