उत्तराखंड की पंचायतों में Gen Z लड़कियां संभाल रही कमान | Uttarakhand News | Panchayat | Chamoli

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जी हां दोस्तो उत्तराखंड की जेन जी लड़कियों की चर्चा हर तरफ है, कैसे पंचायतों में संभाल रही कमान, रच रहीं नया इतिहास, जिससे लग रहा है कि अब अपने पहाड़ों में लौट रही हैं उम्मीद। खबर क्या है वो देखिए मेरी इस रिपोर्ट के जरिए, दोस्तो उत्तराखंड की पंचायतों में नया दौर शुरू हो गया है। पहाड़ों में लौट रही है उम्मीद, ग्रामीण राजनीति में बदल रही हैं तस्वीर, कैसे ये युवा महिलाएं अपनी मेहनत और हिम्मत से कहानी बदल रही हैं। Gen Z की लड़कियां संभाल रच रही हैं नया इतिहास। दोस्तो उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में सालों से पलायन और पुरुष-प्रधान राजनीति ने गांवों को खाली और व्यवस्था को कमजोर कर दिया, लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। कॉलेज से निकलते ही गांव लौट रहीं Gen Z की पढ़ी-लिखी युवा महिलाएं पंचायत की कमान संभाल रही है। डिग्री, आत्मविश्वास और स्मार्टफोन से लैस ये नई प्रधान न सिर्फ पलायन को चुनौती दे रही हैं, बल्कि ‘प्रधान-पति’ राजनीति की जड़ें भी हिला रही है। दोस्तो मै आपको बताता हूं कैसे पंचायत चुनावों में दिखा था पीढीगत बदलाव, उसके बाद एक उस महिला प्रधान का जिक्र करूंगा जो कर रहीं हैं अपने उत्तराखंड के गांव के लिए कमाल, दोस्तो जुलाई के अंत में आए उत्तराखंड पंचायत चुनाव नतीजों में कई गांवों में युवा महिलाएं पहली बार प्रधान बनीं. परंपरागत रूप से बुजुर्ग पुरुषों के कब्जे वाली सीटों पर अब 20–22 साल की लड़कियां चुनी गई। कुछ ही महीनों में ये युवा प्रधान पलायन, खराब सड़कें, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूल समस्याओं पर सीधे काम कर रही हैं।

दोस्तो काम ऐसा कि तारीफ कम पड़ जाए, दोस्तो थोड़ा गौर कीजिगा। कुछ नाम जो मै खोज पाया उनके बारे में आपको बताता हूं, साक्षी रावत – लैब की जगह गांव को चुना दोस्तो पौड़ी गढ़वाल के कुई गांव की रहने वाली साक्षी रावत (22) ने बायोटेक्नोलॉजी की डिग्री पूरी करने के बाद देहरादून में नौकरी करने की बजाय गांव लौटने का फैसला किया। साक्षी कहती हैं ज्यादातर युवा पढ़ाई के बाद गांव छोड़ देते हैं, मैं चाहती हूं कि वे यहीं रहें और कुछ बनाएं.’ उनका मानना है कि असली बदलाव घर से शुरू होता है और उत्तराखंड का भविष्य युवाओं के हाथ में है। दोस्तो कहते हैं सोच से बदलाव लाया जा सकता है और फिर उस काम कर इतिहास को बदला जा सकता है। दूसरे नंबर पर आती हैं प्रियंका नेगी गणित से शासन तक दोस्तो चमोली जिले के सरकोट गांव की प्रधान प्रियंका नेगी (21) कभी गणितज्ञ बनना चाहती थीं। उनके पिता खुद दो बार प्रधान रह चुके हैं, ब्लॉक बैठकों में साथ जाते हुए प्रियंका को समझ आया कि असल गणित शासन में है, उनकी प्राथमिकता है सड़क कनेक्टिविटी। प्रियंका मानती हैं कि सड़कें ठीक हों तो पहाड़ की आधी समस्याएं अपने आप सुलझ जाएंगी। दोस्तो वैसे अपने प्रदेश में व्यवस्थाओं का हाल क्या है ये तो सभी जानते हैं ना, लेकिन बदलाव की बयान गांव चल पड़ी है बल, अब देखिए ना अपने प्रदेश के गांव को मजबूत करने के लिए कैसे नेतृत्व और मातृत्व साथ-साथ निभा रही हैं दीक्षा मंडोली वो बताता हूं। दीक्षा मंडोली- गुलाड़ी गांव (चमोली) की प्रधान दीक्षा मंडोली महज 22 साल की हैं, 20 की उम्र में शादी और 21 में मां बनने के बावजूद उन्होंने नेतृत्व संभाला। अंग्रेजी से स्नातक दीक्षा युवाओं में बढ़ती नशे की लत को बड़ी चुनौती मानती हैं। वह साफ कहती हैं, ‘अब लोग सीधे हमसे बात करते हैं, किसी ‘प्रधान-पति’ की जरूरत नहीं, दोस्तो जेन जी लड़ियों की सोच कमाल की देखने को मिल रही है दोस्तो जो काम जो बात बड़े अपने प्रदेश के नेता नही कर सकते, वो युवा जेन जी लड़कियां कह ही नहीं रही…करके दिखा भी रही हैं।

अब देखिएना छोटे गांव की बड़ी सोच को किरण नेगी चमोली के चारी गांव (करीब 250 मतदाता) की प्रधान किरण नेगी अपने ब्लॉक की सबसे युवा प्रधान हैं. उनका कहना है, ‘गांव छोटा है, लेकिन समस्याएं बड़ी हैं पानी, सड़क, सब कुछ.’ किरण बिना किसी पुरुष प्रतिनिधि के फैसले ले रही हैं, जो यह साबित करता है कि नेतृत्व सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है। दोस्तो यहां लगता है कि पलायन और पितृसत्ता दोनों को चुनौती दने का काम किया जा रहा है। ये Gen Z प्रधान मानती हैं कि उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या न तो पैसा है और न ही भूगोल, बल्कि सोच है. इनका लक्ष्य है- वो लक्ष्य क्या है बल, गांव में रोजगार, बेहतर स्कूल, मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था, युवाओं को गांव में ही भविष्य दिखाना। यानि बुनियादी बात हो रही है, करने वाले कौन हैं जेन जी लड़कियां शायद प्रदेश को इन्हीं जेन जी से उम्मीदें हैं। बड़े सियासी धरंधरों का ज्ञान तो अब छोड़ो इस पर क्या बात करूं लेकिन आप इस खबर को लेकर क्या कहेंगे कमेंट करके बताईये गा। साथ खबर को शेयर कीजिएगा ताकि प्रेरणा मिले।