उत्तराखंड में युवाओं के सपनों को बेचकर कैसे हो गया बड़ा खेल, IT पार्क के नाम पर कैसे रियल एस्टेट से हो गई डील? जी हां एक ऐसी खबर जिसने प्रदेश में एक बार फिर से हड़कंप मचा दिया है। आज में देहरादून का आईटी पार्क के उस घपले के बारे में बताने के आया हूं जिस पर कांग्रेस ने सरकार को घेरा है, कि युवाओं के सपने से रियल एस्टेट के खेल तक कैसे बड़़ा फायदा कुवछ रियल एस्टेट कंपनियों को पहुंचाया गया। ये खबर बेहद अहम है दोस्तो पूरी खबर बताउं उससे पहले आप इतना जान लीजिए कि इस खेल में 90 साल की लीज हो गई। 90 साल का मतलब समझ रहे होंगे आप और ओने पौने दामों पर किसके इशारे पर हुआ होगा खेल। अपनी राजधानी देहरादून का आईटी पार्क कभी राज्य के युवाओं के लिए तकनीकी और रोजगार का गढ़ बनने का सपना था। एक ऐसा केंद्र जहाँ नए जमाने की तकनीकी कंपनियाँ फल-फूल कर प्रदेश के युवाओं को अवसर दे सकें, उनकी प्रतिभा को निखार सकें, और उत्तराखंड को डिजिटल युग में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलती, लेकिन इस सपने को आखिरकार किस मोड़ पर मोड़ दिया गया, और कैसे यह ऐतिहासिक परियोजना अब रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में तब्दील हो गई, ये सवाल आज हर जागरूक नागरिक के मन में उठता है और विपक्ष तो उठा ही रहा है।
इस खेल के तो दोस्तो क्या देहरादून का आईटी पार्क सच में युवाओं के भविष्य का केंद्र बन पाएगा, या सरकार ने इसे रियल एस्टेट कंपनियों के हाथ बेच कर उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है? जब एक सपना ‘पब्लिक टू प्राइवेट ट्रांसफर’ की चपेट में आ जाता है, तो सवाल उठता है—क्या हमारी सरकार प्रदेश के युवाओं के हित में काम कर रही है या खास हितों के दबाव में? ये मै क्यों कह रहा हूं अब वो देखिए राजधानी देहरादून स्थित IT पार्क के दो बहुमूल्य भूखंड एक निजी कंपनी RCC Developer को 90 साल की लीज़ पर दे दिए गए। दोस्तो जो जानकारी निकलकर सामने आ रही है और जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने इस खेल को लेकर सवाल किया उसके मुताबिक आईटी पार्क देहरादून में R-1 भूखंड 4 एकड़ और R-2 भूखंड 1.5 एकड़ का है। टेंडर में भूमि का बेस रेट ₹40,000 प्रति वर्ग मीटर तय था, लेकिन बोली लगाने वाले ₹46,000 प्रति वर्ग मीटर से आगे नहीं बढ़े। दोनों ही भूखंडों के टेंडर एक ही कंपनी के पक्ष में छूटना कई सवाल खड़े कर गया। दोस्तो इतना भर नहीं है जिस कंपनी की बात हो रही है उसे सरकारी ज़मीन पर फ्लैट बनाकर बेचने की अनुमति भी दी गई। दोस्तो समझौते के तहत कंपनी को फिलहाल केवल 25% राशि जमा करनी है, जबकि बाकी रकम आसान किश्तों में दी जाएगी।
दगड़ियो उत्तराखंड सरकार ने जब आईटी पार्क की नींव रखी थी, तब उसकी कल्पना एक उच्च तकनीकी हब की थी। जहां न केवल राज्य के युवा, बल्कि देश-विदेश के आईटी व्यवसाय भी आकर्षित हों, प्रदेश की अर्थव्यवस्था में नई जान आए, रोजगार के अवसर बढ़ें और साथ ही युवाओं का पलायन रुके। ये न केवल आर्थिक विकास का जरिया था, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव का प्रतीक भी, लेकिन इस सपने का वास्तविक चित्र कुछ और ही निकला। इतना ही नहीं कहा जा रहा है कि अचानक हुए तमाम बदलाव और सरकारी फैसले भी हो गए। ये एक खुलासा जिसने पूरे मामले को नए संदर्भ में पेश किया। सरकार ने इस आईटी पार्क की जमीन को निजी कंपनी को सौंप दिया है, जो फ्लैट्स और अपार्टमेंट बनाएगी। इस जमीन को 90 साल की लीज़ पर दिया गया है, जो सरकारी संपत्ति को सार्वजनिक से निजी स्वामित्व में बदलने जैसा है। इस सौदे की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि टेंडर में बिडिंग बेस रेट लगभग 40,000 रुपये प्रति वर्गमीटर था, लेकिन बोली केवल 46,000 रुपये तक गई। यानि सरकारी जमीन को न्यूनतम कीमत पर दिया गया और सबसे हैरानी की बात यह कि दोनों प्लॉट एक ही कंपनी ‘RCC Developer’ को दे दिए गए। ये मामला ना केवल संदिग्ध है, बल्कि इसमें संभावित मिलीभगत के संकेत भी साफ़ नजर आते हैं। दोस्तो सरकार ने इस प्रक्रिया में न तो जनता को कोई जानकारी दी, न ही कोई सार्वजनिक चर्चा या पारदर्शिता बरती गई। टेंडर की जानकारी, बोली लगाने वाली कंपनियों के नाम या जमीन सौंपने की शर्तें पूरी तरह गुप्त रखी गईं। इसका सीधा मतलब यह है कि आम नागरिक इस निर्णय से वंचित रहे, जबकि इसका असर उनके भविष्य पर पड़ेगा। इतना ही नहीं, कंपनी को केवल 25% अग्रिम राशि जमा करनी थी, बाकी भुगतान आसान किस्तों में। क्या सरकार खुद किसी निजी डेवलपर की आर्थिक मदद कर रही है? यह सवाल भी गंभीरता से पूछा जा रहा है।
उत्तराखंड के हजारों युवा, जो आईटी और तकनीकी क्षेत्र में करियर बनाने की उम्मीद लेकर इस आईटी पार्क की स्थापना के इंतजार में थे, उनके लिए यह निर्णय एक कड़ा झटका साबित हुआ है। जहाँ तकनीक आधारित उद्योग और रोजगार के अवसर आने चाहिए थे, वहां अब आवासीय अपार्टमेंट बनेंगे। यह न केवल रोजगार के अवसरों को घटाएगा, बल्कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था के दीर्घकालीन विकास को भी प्रभावित करेगा। दोस्तो देहरादून के आईटी पार्क का मामला प्रदेश के लिए चेतावनी का संकेत है कि पारदर्शिता, जवाबदेही और जनहित को नजरअंदाज कर निर्णय लेने से न केवल युवाओं का विश्वास खोता है, बल्कि प्रदेश की प्रगति भी बाधित होती है। यदि हम आज इन मुद्दों पर गंभीर नहीं हुए, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। राज्य सरकार से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह इस विवादास्पद सौदे की समीक्षा करे, सार्वजनिक संवाद बढ़ाए और सुनिश्चित करे कि उत्तराखंड के युवाओं को उनके सपनों का सम्मान मिले। तकनीकी विकास और रोजगार के रास्ते कभी भी रियल एस्टेट के व्यवसाय में तब्दील नहीं होने चाहिए।