क्या सरकार का ये प्लान भी हो गया फेल? | Chamoli | Uttarakhand News| Bear Attack

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जी हां दोस्तो उत्तराखंड में सरकार के फैसले से भी नहीं बदली जमीनी हकीकत, जंगली आंतक ने पूरी प्लानिंग पर फेर दिया पानी, क्या सरकार का जो प्लान राहत देने वाला था, वो फेल हो चुका है, क्योंकि उत्तराखंड में सरकार के बड़े फैसले के बाद भी जमीनी हकीकत जस की तस! Bear Attack In Uttarakhand दोस्तो सीधे कहूं तो जंगली जानवरों का आतंक अब स्कूलों और ग्रामीण इलाकों में दहशत बन चुका है। दोस्तो मै आपको तीन तस्वीरें दिखा रहा हूं, कैसे सरकार की प्लानिंग को मुंह चिढा रहा है ये जंगली आतंकी वो देखिए। जी हां दोस्तो इन तस्वीरों को देख कर ये पता चलाता है कि कैसे सरकारी फैसले भी बेअसर हो रहे हैं। उत्तरकाशी के एक स्कूल में एक बार नहीं दो बार भालुओं ने हमला कर दिया, और तीसरी तस्वीर गोपेश्वर की है। दोस्तो उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों की स्थिति हमेशा से ही चिंता का विषय रही है, लेकिन हाल की घटनाओं ने इसे और गंभीर बना दिया है। ये कोई नई बात नहीं है कि ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में बुनियादी सुरक्षा और सुविधाओं की कमी है। दुख की बात यह है कि अब यह खबर भी आम लोगों और प्रशासन की प्राथमिकता में नहीं रह गई है।

गोपेश्वर के राजकीय बालिका इंटर कॉलेज के पास एक भयावह घटना हुई। सुबह करीब 10 बजे एक भालू स्कूल के पास दिखाई दिया। घबराहट में कक्षा 12 की दो छात्राएं अपनी जान बचाने के लिए भागी और इस दौरान घायल हो गई। ये घटना स्कूल समय बदलने के एक दिन बाद हुई थी, दोस्तो प्रशासन ने फैसला लिया था कि स्कूल का समय सुबह 10 से दोपहर 3 बजे कर दिया जाएगा ताकि जंगली जानवरों से खतरे को कम किया जा सके। घटना ठीक उसी समय हुई जब स्कूल शुरू हुआ। इससे एक साफ सवाल खड़ा होता है: क्या ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण है कि भालू 10 से 3 बजे के बीच हमला नहीं करते? अगर नहीं, तो यह फैसला किस आधार पर लिया गया? अब दोस्तो सिर्फ वन्यजीवों का मामला नहीं रह गया है। ये रोज़मर्रा की लापरवाही और संवेदनहीनता का बनता जा रहा है। जब बच्चे स्कूल के आसपास भी सुरक्षित नहीं हैं, तो सिर्फ समय बदल देना समाधान नहीं लगता। स्थिति सामान्य होने तक स्कूल बंद रखना ही समझदारी है। वैसे इससे पहले एक और फैसला लिया गया था कि स्कूली बच्चे वन विभाग की निगरानी में स्कूल जांएगे। अब कहां गए बल वो कर्मचारी, दोस्तो इस पर मेने तब भी सवाल किया था कि इतने बच्चों को गांव-गांव में वन विभाग कैसे लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करेंगा। इसका क्या खाका है, क्या विभाग के पास इतने कर्मी हैं। ऐसे इंतजाम है, लेकिन सरकार और विभाग के फैसलों पर भालू का हमला पानी फेरना का काम कर रहा है।

बच्चों को अब सिर्फ पढ़ाई के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता। उनकी जान बचाना भी प्राथमिकता बन गई है। ये सचमुच चिंताजनक है कि बच्चे स्कूल के परिसर और आसपास अपने जीवन के लिए दौड़ रहे हैं। पहले मै भी स्कूलों को लेकर पढाई को लेकर सवाल करता था, लेकिन आज बच्चों की जान कैसे बचे इस सवाल करता हूं। पढाई तो तभी होगी ना जब जान बचेगी। वैसे दोस्तो हम सबने सरकारी स्कूलों की हालत देखी है। बरसात के मौसम में बच्चों को टूटी सड़कों और उफनती नदियों को पार कर स्कूल पहुंचना पड़ता है। इससे उनका जीवन हमेशा जोखिम में रहता है। और अब हालात इससे भी आगे बढ़ चुके हैं। बच्चे अब तेंदुओं और भालुओं से भी सुरक्षित नहीं हैं। जंगली जानवर स्कूल परिसरों तक पहुँच रहे हैं। आज गोपेश्वर में छात्राएँ घायल हो गई, इससे पहले चमोली के हरिशंकर जूनियर स्कूल में क्लास रूम से बच्चे को भालू ने घसीटा स्कूली छात्र को झाड़ियों में ले गया , स्कूल में मची चीख पुकार शिक्षक और एक छात्रा ने साहस दिखाते हुए भालू के चंगुल से छात्र को छुड़ाया भालू ने छात्र के कपड़े फाड़े , छात्र के पीठ और हाथ पर भालू के नाखून के निशान बाल बाल बची छात्र की जान। पोखरी विकासखण्ड में भालू का आतंक देखने को मिला। यहां जूनियर हाईस्कूल हरिशंकर में एक छात्र पर भालू ने हमला किया। दूसरे छात्र ने भालू को पत्थर से मार कर भगाया। दोस्तो ये सब देख कर लगता है कि प्लानिक वैसी है नहीं जैसी होनी चाहिए सरकार और वन विभाग की। उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा की समस्या को नजरअंदाज करना गंभीर चिंता का विषय माना जा रहा है। हाल की घटनाओं ने ये साबित कर दिया कि सरकारी योजनाएं और घोषणाएं जमीनी हकीकत से मेल नहीं खातीं बल। वैसे भी दोस्तो बच्चे कोई प्रयोग नहीं हैं। उनका जीवन और सुरक्षा सबसे पहले होनी चाहिए। शिक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन यह बच्चों की जान की कीमत पर कभी नहीं हो सकती। सरकार और प्रशासन को अब यह समझना होगा कि बच्चों की सुरक्षा केवल उनके परिवार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पूरे समाज और राज्य की जिम्मेदारी है। शिक्षा और सुरक्षा का संतुलन बनाए बिना कोई नीति सफल नहीं हो सकती।