गैरसैँण में मद्दों पर भारी पड़ गया हंगामा | Uttarakhand News | Gairsain | Uttarakhand Vidhan Sabha

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गैरसैँण में मद्दों पर भारी पड़ गया हंगामा, छल कर लौट गई सियासत कांग्रेस-बीजेपी दोनों हो गई बेनकाब, खबर उत्तराखंड के साथ हो रहे विश्वासघात बताने आया हूं दगड़ियों। ये खबर बेहद अहम है, संवेदनसील है। इसलिए आप मेरे साथ अंत तक जूड़े रहिगा, ताकि एक-एक कर सियासी काला चिठ्ठा खोल पाउं। Gairsain Assembly Monsoon Session देखिए दगड़ियों पहाड़ के साथ कैसे धोखा होता है, पहाड़ियों के साथ छल होता है। सत्र के नाम पर विश्वासघात होता है, सियासी लोग क्या देहरादून से 300 किमी दूर गैरसैंण सिर्फ-सिर्फ तमाशा करने हंगामा करने ही जाते हैं। आज कोई भूमिका नहीं बना रहा हूं सीधे सवाल करूंगा, आपको सियासत का वो काला पहलू भी दिखा पाउं समझा पाउं जो ना कई आज के दौर में दिखाता और ना कोई बताता। दगड़ियों जिस गैरसैंण मानसून सत्र से आपको बहुत सारी उम्मीदें रही होंगी। क्या ऐसा होगा वैसा भी हो सकता है वो सत्र पहले से बेहद कम यानि तीन दिन का तय था और ये सत्र तीन दिन छोड़िये दो दिन भी नहीं चल पाया। सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। देखो कैसे गजब हो रहा है, तीन चलने वाला सत्र डेढ दिन में पैकअप। भरो उड़ान देहरादून के लिए हो गया बल थोड़ा घूमना-फिरना, वो पिकनिक टाइप दोस्तो कुछ लोग कहेंगे भाई सरकार ने अनुपूरक बजट पैस कर दिया एक आद और चीजें भी हो गई। इसके लिए इतना बड़ा तामझाम उठाकर गैरसैंण हिटो क्यों कहा बल। ये तो देहरादून से ही हो जाता।

खैर अब सत्र महज डेढ दिन चल पाया चला क्या वो ही हंगामा शोर तमाशा और क्या। दगड़ियों उत्तराखंड की जनता ने गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बाद जो उम्मीदें पाली थीं, वो हर बार की तरह इस बार भी पैरों तले रौंद दी गईं बल। मात्र डेढ दिन में सत्र का समापन कर इतीश्रि कर दी गई। तीन दिन का घोषित मानसून सत्र महज डेढ़ दिन में ही “अनिश्चितकाल” तक स्थगित कर दिया गया। यानी न कोई बहस, न कोई फैसले, और न कोई जवाबदेही। दोस्तो गैरसैंण फिर से एक बार “सियासी पर्यटन” का गवाह बना, जहां नेता आए, भाषण दिए, हंगामा किया और निकल लिए — पीछे रह गई जनता, सवाल, और फिर से एक अधूरी राजधानी। साहब राजधानी ऐसी नहीं होती ना ही विधानसभा में ऐसी कार्यवाही होती है। जब राज्य गठन हुआ था, तब गैरसैंण को राजधानी बनाए जाने की मांग जनआंदोलनों से उठी थी। बाद में इसे आधिकारिक तौर पर ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा दिया गया, लेकिन हकीकत यह है कि सरकारें केवल खानापूर्ति के लिए यहाँ आती रही। मै आज की ही बात क्यों करूं इससे पहले किसने यहां बड़ा पहाड़ तोड़ा बल, कुछ नहीं एक ईट का ढांचा खड़ा कर देने भर से राजधानी नहीं बनती। सत्र के नाम पर नेता हेलिकॉप्टर से उतरते हैं,दो दिन सदन में दिखावा होता है,और फिर चुपचाप सब “अनिश्चितकालीन” हो जाता है।

तो क्या गैरसैंण केवल फोटोशूट की राजधानी बनकर रह गई है?तीन दिन का वादा, डेढ़ दिन में विदा – क्यों?यह सत्र तीन दिन का घोषित था। लेकिन राजनीतिक ड्रामे, हंगामे और संवादहीनता की वजह से सिर्फ डेढ़ दिन में ही इसे बंद कर दिया गया।ना बजट पर गंभीर चर्चा हुई,ना आपदा प्रबंधन पर बात,ना ग्रामीण मुद्दों पर कोई प्रस्ताव लाया गया।जनता की उम्मीदें फिर से सियासी भूख की बलि चढ़ गईं।यह सिर्फ सत्र का अंत नहीं था, यह भरोसे की हत्या लगती है। मेरे शब्द तोड़ा चूभने वाले हो सकते हैं अब जो पीड़ा आपकी है वो मेरी भी तो है जो चिंता आपकी है वो मेरी भी है तो थोड़ा सरकार कहती है कि विपक्ष ने हंगामा करके सदन नहीं चलने दिया। कांग्रेस कहती है कि सरकार ने मुद्दों पर चर्चा से भागने के लिए सत्र को जल्द समाप्त किया सच ये है कि दोनों पक्ष जनता के साथ धोखा कर रहे हैं। वैसे ये तो पहले एक नेता ने बता दिया था बल होना जाना कुछ नहीं है। आज वैसा ही कुछ हुआ है, वो भी आपको सुना देता हूं। पहले आई थी कि यहां जनता के साथ छल होता है। अगर सरकार को चर्चा करनी थी, तो विपक्ष से टकराव से बचकर रास्ता निकाल सकती थी। विपक्ष को जनहित की बात करनी थी, तो उन्हें माइक उखाड़ने और टेबल पलटने की नौटंकी नहीं करनी चाहिए थी, यहाँ दोनों पक्षों ने लोकतंत्र को नाटक बना दिया।

दोस्तो सच क्या है सच ये है कि राज्य के कई हिस्सों में बाढ़, भूस्खलन और आपदा का खतरा है। सड़कों का बुरा हाल है, स्वास्थ्य सुविधाएँ बदहाल हैं, गांव उजड़ रहे हैं। कानून व्यवस्था का हाल हम सब देख रहे हैं, कैसे बीच चुनाव से नेता ही उठा लिए जाते हैं। क्या यह वही समय नहीं था जब गैरसैंण के सदन में जनता की इन तकलीफों पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए थी? लेकिन हुआ क्या?सत्ता पक्ष सिर्फ कांग्रेस को कोसता रहा।विपक्ष सिर्फ कैमरों के सामने बैठा धरना देता रहा।और फिर सबने मिलकर सत्र खत्म करवा दिया — क्योंकि असल मुद्दों पर बात करने की किसी को ज़रूरत ही नहीं लगी…गैरसैंण एक प्रतीक है — पहाड़ की अस्मिता का, संघर्षों का, उस जनता का जो मैदान से नहीं, पर्वतों से आती है, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी ये साफ हो गया कि गैरसैंण सरकारों के लिए सिर्फ एक “टोकन लोकेशन” है, जहां उन्हें लोकतंत्र का दिखावा करना है। सत्र यहाँ इसलिए होता है ताकि सरकार कह सके कि हमने राजधानी को सम्मान दिया। लेकिन हकीकत यह है कि जब भी कोई गंभीर मुद्दा उठता है, नेता बहाना बनाकर दिल्ली, देहरादून या हरिद्वार निकल जाते हैं, सवाल है: क्या गैरसैंण केवल काग़ज़ी राजधानी है? या सिर्फ हेलिपैड तक सीमित है?जनता के टैक्स का पैसा, और सदन में तमाशाएक सत्र आयोजित करने में लाखों-करोड़ों का खर्च आता है:विधायकों के आवास,सुरक्षा,ट्रांसपोर्टेशन,और अन्य व्यवस्थाएँ लेकिन अगर यह सब खर्च करके भी ना कोई विधेयक पास होता है, ना कोई बहस होती है, और ना ही कोई समाधान निकलता है, तो फिर यह किसके लिए है?क्या जनता का पैसा सिर्फ नेताओं के सैर-सपाटे और मीडिया शो के लिए खर्च हो रहा है?संवैधानिक मर्यादा का गिरता स्तर: क्या सत्र अब मज़ाक बन चुका है? खैर कहूंगा तो वीडियो बता नहीं कहां जाकर खत्म होगा। है तो बहुत कुछ आगे किसी वीडियो में बात करूंगा लेकिन आप क्या सोचते हैं वो मुझे जरूर बताइगा दोस्तो क्योंकि मुझे ऊर्जा आप सब से मिलती है।