उत्तराखंड के उत्तरकाशी में जोशीमठ की दस्तक? कई गांवों के घरों में पड़ी दरारें। मैं आपको बताने आया हूं दगड़ियों कैसे गांववालों की नींद उड़ चुकी है, कैसे पलायन की नौबत आ चुकी है, क्योंकि घर हो रहे जर्जर और दरारों से झांक रहा है खतरा, सब बताउंगा आपको एक एक कर खबर बहुत ज्यादा संवेदनशील है और महत्पूर्ण है दगड़ियों। Disaster In Himalayan State दोस्तो बारिश के मौसम में उत्तरकाशी जिले का हाल बेहाल हो रखा है। दो गांवों का अस्तिव इस वक्त खतरे में है। दगड़ियो उत्तरकाशी के गांवों में जोशीमठ जैसी त्रासदी की आहट — ज़मीन दरकी, घर कांपे, प्रशासन मौन, दगड़ियो उत्तरकाशी ज़िले के गांवों में इन दिनों एक अदृश्य डर पसरा हुआ है — वह डर जो न किसी आपदा की चेतावनी में पूरी तरह सुनाई देता है और न ही राहत कार्यों में पूरी तरह मिटाया जा सकता है। ये वो डर है जब ज़मीन खुद ही घरों को निगलने लगती है, और प्रशासन केवल सर्वे की रिपोर्ट में “स्थिति गंभीर” लिख कर आगे बढ़ जाता है। सिल्याण और क्यार्क गांवों में जो हालात बने हैं, वे केवल ‘भू-धंसाव’ नहीं, बल्कि ‘भू-अवहेलना’ के दंश हैं। दगड़ियो उत्तरकाशी ज़िला मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर स्थित सिल्याण गांव इस समय एक प्राकृतिक त्रासदी की चपेट में है। 10 से अधिक मकानों और आंगनों में दरारें आ चुकी हैं।
3 भवन और एक आंगनबाड़ी केंद्र कभी भी गिर सकते हैं, ग्रामीणों का कहना है कि “हर बारिश के साथ हमारी नींद और नींव — दोनों टूट जाती है दगडियो गांव के लोग दहशत में हैं, लेकिन विस्थापन नहीं चाहते — वे समाधान चाहते हैं। दोस्तो सिल्याण गांव के लोग बताते हैं कि यह त्रासदी अचानक नहीं आई। डेढ़ साल पहले लोक निर्माण विभाग ने बिना भूगर्भीय जांच के पहाड़ी कटिंग शुरू की, और आज उसी कटिंग के नीचे से धरती धंसने लगी है। दगड़़ियो एसा लगता है कि यह एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि विकास के नाम पर की गई लापरवाही की कीमत है। प्रशासन ने शिकायतों के बाद कुछ “जालियां” तो लगाईं, लेकिन भू-धंसाव को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया दूसरी और भटवाड़ी ब्लॉक के क्यक गांव में पापड़ गार्ड नदी अपने उफान पर है। 5 से 6 घरों के आंगन फट चुके हैं खेतों में कटाव जारी है पुलिस ऑफ जिस जमीन से लोगों का पेट पालता था अब वही जमीन उनके घरों को खा रही है।
दगड़ियों 2012 13 की आपदा के समय भू वैज्ञानिकों ने गांव के विस्थापन की सिफारिश की थी लेकिन आज तक ना फाइल हिली ना अधिकारी, अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन किसी बड़ी त्रासदी के इंतजार में है और प्रशासनिक रवैया यह है की शरण को समाधान नहीं देंगे यह इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि राजस्व विभाग का कहना है कि कहीं घरों में गंभीर दरारें आई हैं और तीन-चार भवन कभी भी गिर सकते हैं लेकिन समाधान क्या है गांव छोड़ दो और मुख्यालय में शरण ले लो 4 किलोमीटर दूर इंटर कॉलेज में जाकर रहने का सुझाव ग्रामीणों को दिया गया है। क्या यही है आपदा का प्रबंध क्या कोई भी व्यवस्था घर छोड़ने के दर्द को समझ सकती है डिस्टर्ब दगड़िया सालियां गांव के ऊपर सक्रिय हो चुके भूस्खलन जॉन का खतरा सिर्फ गांव तक सीमित नहीं है अगर स्थिति और बिगड़ती है तो नीचे स्थित तिलोथ वर्ल्ड जैसे शायरी इलाके भी उसकी चपेट में आ सकते हैं। यह केवल एक गांव का मामला नहीं बल्कि पूरे जिले की चेतावनी है। दोस्तों आज सिल्याण और त्याग की तस्वीर है वही है जो जोशीमठ में वह दशाओं से पहले दिखाई दी थी। बिना भूगर्भीय सर्वे के कटिंग नियोजित निर्माण मौसम की अंधे की और सबसे अहम प्रशासन की छुट्टी कब तक उत्तराखंड की धरती धड़कती रहेगी और हम आपदा प्रबंधन के नाम पर सिर्फ राहत केंद्र खोलने रहेंगे।