उत्तराराखंड के अपस्पताल में मोबाइल की रोशनी में इलाज, व्यवस्थाओं पर फिर उठे सवाल तो कहना पड़ता है कि कब सुधरेंगे हालात। उत्तराखंड के पौड़ी जिला अस्पताल से सामने आई हैं ऐसी चौंकाने वाली तसवीरें, जहां मरीजों का इलाज किया जा रहा है — मोबाइल फोन की टॉर्च की रोशनी में, साहब ऐसे उत्तराखंड की मांग तो आंदोलनकारियों ने कि थी। Pauri Garhwal Health Facility अभी तो रामपुर तिराहा कांड में को याद किया गया, शहीदों को श्रद्धासुमन अरिपत की लेकिन हालात चिंता में डालने वाले हैं। दोस्तो 21वीं सदी के भारत में, जहां हम चाँद पर पहुंचने की बात करते हैं, वहीं धरातल पर हालत ये है कि अस्पताल में बिजली नहीं और डॉक्टर मोबाइल की रोशनी से इलाज करने को मजबूर हैं। और हैरानी की बात ये है कि ये पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी इसी अस्पताल में ऐसी ही घटनाएं सामने आ चुकी हैं आखिर जिम्मेदार कौन है? कब सुधरेगा ये तंत्र? और मरीजों की जिंदगी से ऐसे खिलवाड़ की कीमत कौन चुकाएगा? सूबे में सरकारी अस्पतालों के क्या हाल हैं? उसका एक नमूना पौड़ी जिला अस्पताल में देखने को मिला। जहां रात के समय मोबाइल फोन की टॉर्च की रोशनी में मरीजों का उपचार होता नजर आया। जो स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के दावों पर सीधे सवाल खड़े कर रहा है।
उधर, वीडियो सामने आने के बाद लोगों में भारी आक्रोश है। दोस्तो ये तस्वीर वहा से आई, जहां से प्रदेश को एक नहीं अनेको मुख्यमंत्री मिले, लेकिन पौड़ी जिला अस्पताल पौड़ी से एक वीडियो सामने आया है, जहां बिजली गुल होने के बाद अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी मोबाइल फोन की टॉर्च की रोशनी में मरीजों का उपचार करते हुए नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि बीती शुक्रवार की शाम ग्रिड फेल होने से करीब एक घंटे तक बिजली आपूर्ति बाधित रही। इसी दौरान डॉक्टरों को आकस्मिक विभाग में मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में मरीजों का उपचार करना पड़ा। अस्पताल में जनरेटर उपलब्ध होने के बावजूद उसे संचालित नहीं किया जा सका। बताया जा रहा कि जनरेटर में डीजल न होने और तकनीकी खराबी के कारण बिजली आपूर्ति बहाल नहीं हो सकी। इस दौरान अस्पताल पहुंचे मरीजों और उनके परिजनों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी। वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि जिला अस्पताल पौड़ी न केवल शहर बल्कि, आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भी उपचार का प्रमुख केंद्र है। ऐसे में यदि यहां बिजली या बैकअप की समुचित व्यवस्था नहीं है तो ग्रामीण अस्पतालों की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। दगड़ियो इनता नहीं यहां इलाज कराने आये मरीज, उनके तीमारदार बताते हैं कि अपनी बीमार बच्ची को इलाज के लिए अस्पताल लाया था, लेकिन बिजली बाधित होने के बाद भी करीब एक घंटे तक जनरेटर नहीं चला। डॉक्टर मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण कर रहे थे, साथ ही दोस्तो स्थानीय लोगों ने उठाई जांच की मांग स्थानीय लोगों ने मांग की है कि जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग इस घटना की जांच करें और अस्पताल में मूलभूत सुविधाओं को तत्काल दुरुस्त करें। ताकि, भविष्य में मरीजों को इस तरह की असुविधा का सामना न करना पड़े। उनका कहना है कि यह बड़ी लापरवाही भी है।
वहीं बात अगर अस्पताल प्रशासन की करूं तो प्रभारी पीएमएस पौड़ी जिला अस्पताल मानते है कि विद्युत आपूर्ति बाधित होने पर जनरेटर संचालन के निर्देश दिए गए थे, लेकिन तकनीकी खामी के चलते कुछ समय तक व्यवस्था प्रभावित रही। संबंधित कार्मिकों को भविष्य में लापरवाही पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। दोस्तो एक बार चलो समझ आता है कि हो गया होगा, लेकिन ये पहली बार नहीं है, जब अस्पताल में इस तरह की स्थिति देखने को मिली हो। बीती 12 जनवरी को देहलचौरी मोटर मार्ग पर हुए बस हादसे के दौरान भी बिजली बाधित होने से डॉक्टरों ने मोबाइल की रोशनी में घायलों का उपचार किया था। उस घटना के बाद तत्कालीन सीएमओ को शासन ने बाध्य प्रतीक्षा में रखा था। वहीं अभी के इस मामले में एसडीओ, विद्युत वितरण खंड, पौड़ी से सवाल किया जाता है तो वो कहते हैं कि पौड़ी जिला अस्पताल में जनरेटर संचालन न होने की शिकायतें कई बार मिल चुकी है। डीजल की कमी और रखरखाव में लापरवाही के कारण इस तरह की स्थिति बार-बार सामने आ रही है। इस संबंध में जल्द ही जिला प्रशासन को पत्र भेजा जाएगा। वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री पौड़ी जिले से होने के बावजूद यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था बेहद दयनीय बनी हुई है। यदि जिला अस्पताल का यह हाल है तो दूरस्थ क्षेत्रों के अस्पतालों की स्थिति क्या होगी? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। बता दें कि यह अस्पताल एक जनवरी से सरकारी सेवाओं में वापस आ गया था। इससे पहले इसे पीपीपी मोड पर संचालित किया जा रहा था। दगड़ियो आपको याद दिला दू — ये वही पौड़ी जिला है, जिसने उत्तराखंड को अब तक कई मुख्यमंत्री दिए हैं, और यही नहीं, मौजूदा समय में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का भी ये गृह जिला है, फिर भी अगर यहां के सबसे बड़े अस्पताल में इलाज के लिए मोमबत्ती, मोबाइल टॉर्च जलानी पड़े, तो सोचिए बाक़ी इलाकों की हालत क्या होगी?ये सिर्फ़ एक बिजली की समस्या नहीं है — ये एक व्यवस्था की असफलता की कहानी है। जहां न सिस्टम जागता है, न ज़िम्मेदार जवाब देते हैं और खामियाजा भुगतते हैं — आम लोग, बीमार लोग, वो जो मदद की उम्मीद में अस्पताल का दरवाज़ा खटखटाते हैं। अब सवाल ये नहीं है कि बिजली कब आएगी —सवाल ये है कि जवाबदेही कब तय होगी? क्या कभी पौड़ी के अस्पतालों को वो सम्मान और सुविधा मिलेगी,जिसके वो हकदार हैं — खासकर तब, जब ये ज़िला खुद स्वास्थ्य मंत्री का हो? सोचिएगा जरूर क्योंकि अगर गृह जिले की ये हालत है, तो बाकी का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।