उत्तराखंड में सिस्टम की अनदेखी ने उठा दिए होश धूल फांक रही इमारत…| Uttarakhand News

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लापरवाही या जानबूझी चुप्पी? एक इमारत, जो पूरी तो हुई, लेकिन कभी खुली नहीं लाखों रुपये खर्च हुए, मगर कोई दरवाज़ा नहीं खटखटाया गया। दस साल बीत गए, लेकिन डॉक्टरों का इंतज़ार अब भी जारी है। आखिर क्यों धूल फांक रही है पौड़ी सिरौली के स्वास्थ्य केंद्र की ये सरकारी इमारत? किसने रोक दी इसकी चाबी? Ignoring the system in Uttarakhand और क्या ये पूरा खेल सिर्फ ठेकेदार को फायदा पहुँचाने के लिए रचा गया? सीधा सा सवाल दोस्तो ये है कि लाखों की लागत से बना भवन किसके इंतजार में बंद है? वो भी 10 सालों से। दोस्तो उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में स्वास्थ्य सुविधाएं हमेशा से एक चुनौती रही हैं। खासकर दूरस्थ गांवों में डॉक्टरों की तैनाती और उनकी सुविधा से जुड़ी समस्याएं लगातार सामने आती रही हैं। इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखकर पौड़ी जनपद के सिरौली क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों के लिए एक आवासीय भवन तैयार किया गया था। मकसद था कि डॉक्टरों को रहने की सुविधा मिले और वे नियमित रूप से ग्रामीणों की सेवा कर सकें, लेकिन नहीं ऐसा हो नहीं सका। दिवारों पर काई जम गई दवासे जंग खा गए मेन गेट पर लटका है ताला और ये पिछले दस साल से लटका है बल, लेकिन हैरानी की बात यह है कि ये इमारत 10 साल पहले पूरी होने के बावजूद आज तक इस्तेमाल में नहीं लाई गई है।

ये भवन न सिर्फ धूल फांक रहा है, बल्कि सरकारी धन के दुरुपयोग और सिस्टम की सुस्ती का जीवंत उदाहरण भी बन चुका है। अब स्थानीय लोग भी सवाल उठाने लगे हैं, कि हम थक गए बल कि यहां कोई आएगा, क्योंकि पैसा तो लाखों खर्च हूआ है। ऐसे में लोग कहने लगे है कि ये सिर्फ ठेकेदार की कमाई का जरिया था और कुछ नहीं दोस्तो लोग कहते हैं कि हमने देखा कि बिल्डिंग बन रही है, हमें उम्मीद थी कि अब डॉक्टर यहाँ रहेंगे और 24×7 इलाज मिलेगालेकिन आज तक उस इमारत का दरवाज़ा भी ठीक से नहीं खुला। ये सिर्फ ठेकेदार की जेब भरने का जरिया बनकर रह गई। ग्रामीणों का मानना है कि यह भवन सिर्फ फाइलों में जिंदा है। न तो स्वास्थ्य विभाग ने इसे समय पर चालू करवाने में रुचि दिखाई, न ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने कोई ठोस कार्रवाई की। इधर परेशानी इस बात की है भी है कि यहां न ही डॉक्टर रुकते हैं और मरीजों की परेशानी में हर रोज इजाफा होता है। दोस्तो भवन खाली पड़ा है, इसलिए डॉक्टर सिरौली में नियमित रूप से नहीं रुकते, वे अक्सर मुख्यालय से अप-डाउन करते हैं या फिर कई बार अनुपस्थित भी रहते हैं। इसका सीधा असर मरीजों पर पड़ता है, कई बार इमरजेंसी में मरीजों को दूसरी जगह रेफर करना पड़ता है या फिर बिना इलाज के लौटना पड़ता है। इससे एक और गंभीर सवाल उठता है — अगर डॉक्टर के रहने की सुविधा नहीं होगी, तो क्या कोई पहाड़ी क्षेत्र में टिकेगा? अब जब प्रशासन के सामने इस बात को रखा गया तो सीएमओ पौड़ी, शिवप्रसाद शुक्ला ने इस पूरे मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि हम जल्द ही अवर अभियंता के साथ मिलकर भवन का निरीक्षण करेंगे।

ये पता लगाया जा रहा है कि भवन बनने के बाद उसे स्वास्थ्य विभाग को क्यों नहीं हैंडओवर किया गया, यदि लापरवाही पाई गई तो संबंधित विभाग से जवाब तलब किया जाएगा। दोस्तो ये बयान आश्वस्त तो करता है, लेकिन 10 साल की देरी का कोई ठोस जवाब नहीं देता, ये मामला केवल सिरौली का नहीं है । उत्तराखंड में ऐसे सैकड़ों भवन हैं जो करोड़ों रुपये की लागत से बने, लेकिन उपयोग में नहीं लाए गए। कारण अलग-अलग हो सकते हैं — हैंडओवर की प्रक्रिया में देरी, बिजली-पानी की अनुपलब्धता, स्टाफ की कमी या फिर केवल प्रशासनिक उदासीनता। आपके उधर भी है क्या कोई भवन ऐसा तो बताना जरूर कमेंट करके। दोस्तो जनता का पैसा बर्बाद हुआ और जरूरतमंद जनता को उसका लाभ भी नहीं मिला। सरकारें बदलती रहीं, मंत्री आए और गए, लेकिन सिरौली का ये आवासीय भवन अपने उद्घाटन का इंतज़ार करता रहा। अब जब स्थानीय मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म्स पर ये मामला जोर पकड़ रहा है, तो उम्मीद है कि प्रशासन की नींद टूटेगी। इस पूरी घटना ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि सिर्फ निर्माण करना काफी नहीं होता, बल्कि उसका समय पर उपयोग और जनहित में क्रियान्वयन ही किसी योजना की सफलता तय करता है। पौड़ी के सिरौली का ये आवासीय भवन अब एक इमारत नहीं, बल्कि एक प्रतीक बन चुका है — प्रशासनिक लापरवाही, राजनीतिक उदासीनता और जनता की उपेक्षा का प्रतीक। अगर अब भी इसे चालू नहीं किया गया, तो यह सिर्फ एक सरकारी भवन नहीं, बल्कि व्यवस्था की असफलता की निशानी बनकर रह जाएगा। एक दो सवाल तो करने ही होंगे, क्या स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत जवाब देंगे? क्या स्वास्थ्य विभाग दोषियों की पहचान करेगा? और सबसे जरूरी — क्या इस भवन का दरवाज़ा कभी खुलेगा?