जौनसार बावर में जागड़ा पर्व | Uttarakhand News | Mahasu Devta | Jaunsar Bawar

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उत्तराखंड में लोक आस्था, परंपरा और संस्कृति का ऐसा जीवंत संगम जो आपने कहीं नहीं देखा होगा। मै दिखाने और बताने आया हूं दगड़ियो कि कैसे महासू देवता की जय से गूंजा जौनसार। Jagra festival in Jaunsar Bawar उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्र जौनसार-बावर की धरती न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है, बल्कि यहां की सांस्कृतिक विरासत भी उतनी ही समृद्ध और अद्वितीय है। इन्हीं परंपराओं का जीवंत प्रमाण है जागड़ा पर्व, जो न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है बल्कि क्षेत्रीय एकता, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक चेतना का उत्सव भी है। दगड़ियों इस साल भी लक्सयार, बिसोई और लखवाड़ सहित पूरे जौनसार-बावर क्षेत्र में जागड़ा पर्व की अद्भुत छटा देखने को मिली। विशेषकर लक्सयार मंदिर में तो जैसे लोक संस्कृति और आस्था की सरिता बह निकली हो। मंदिर प्रांगण में हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचे और महासू देवता की पूजा-अर्चना कर परिवार, समाज और क्षेत्र की सुख-शांति की कामना की। दगड़ुयो सुबह होते ही मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग और बच्चे – सभी धार्मिक उल्लास और श्रद्धा से भरे हुए थे। कतारों में खड़े लोग महासू देवता के दर्शन, माथा टेकने और भेंट चढ़ाने के लिए बेसब्र थे। कुछ भक्तों ने मन्नतें मांगी, तो कुछ ने देवता का धन्यवाद अर्पित किया।

दगडि़यों जैसे ही देव पालकी मंदिर से दर्शनार्थियों के बीच आई, माहौल भक्ति और दिव्यता से भर गया। मंदिर परिसर “महासू देवता की जय” और “चालदा देवता की जय” के नारों से गूंज उठा। पालकी दर्शन की इस परंपरा को देखने के लिए न केवल स्थानीय लोग बल्कि बाहरी श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पहुंचे। दोस्तो पालकी के साथ चल रहे भक्तों की टोली, उनके नृत्य, ढोल-दमाऊं की थाप, और परंपरागत वेशभूषा ने इस धार्मिक उत्सव को एक जीवंत सांस्कृतिक प्रस्तुति में बदल दिया। इस दौरान एक और तस्वीर थी महिलाओं ने इस आयोजन में भी अपनी गहरी आस्था और संलग्नता दिखाई। पालकी की पूजा के लिए उन्होंने धूप, चावल, फूल और अक्षत चढ़ाए। जैसे ही पालकी को मंदिर प्रांगण में नचाया गया, वहां मौजूद श्रद्धालुओं ने चावल, फूल और अखरोट की वर्षा कर वातावरण को अलौकिक बना दिया। दगड़ियों इससे पहले देव पालकी को पवित्र देव जलस्रोत पर स्नान कराने ले जाया गया। जलाभिषेक की यह परंपरा क्षेत्रीय आस्था में शुद्धिकरण और शक्ति जागरण का प्रतीक मानी जाती है।

जलस्नान के बाद पालकी को पुनः मंदिर परिसर में लाया गया, जहां पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ उसे गर्भगृह में प्रवेश कराया गया। कार्यक्रम के समापन पर सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया और फिर सामूहिक भंडारे का आयोजन हुआ। इस आयोजन में सभी वर्गों और समुदायों के लोग एक साथ पंगत में बैठे और सद्भावना, समरसता और एकता की मिसाल पेश की। जागड़ा पर्व जौनसार-बावर की सांस्कृतिक पहचान का सबसे प्रमुख उदाहरण है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ता है। यह पर्व परंपरा और आधुनिकता के बीच पुल का काम करता है, जिसमें युवा पीढ़ी भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। दोस्तो महासू देवता, जिन्हें क्षेत्र में न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है, उनकी पालकी के दर्शन और उत्सव में भाग लेना लोगों के लिए जीवन का महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव होता है और दगड़ियो जौनसार-बावर में आयोजित जागड़ा पर्व इस बात का प्रमाण है कि आस्था और संस्कृति आज भी लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। बदलते समय के बावजूद भी इन पर्वों की लोकप्रियता और प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। लक्सयार मंदिर की तस्वीरें, जयकारों की गूंज और भक्तों की अपार श्रद्धा यह साबित करती है कि परंपराएं आज भी जीवित हैं, और आने वाली पीढ़ियों को दिशा देने के लिए पूरी मजबूती से खड़ी हैं।