देहरादून: नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने जीएसटी को लेकर केन्द्र की मोदी सरकार और सूबे की धामी सरकार को निशाने पर लिया है। नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि पूरे भारत में कर संग्रह की जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद सभी राज्यों को पहले की कर व्यवस्था की तुलना में राजस्व संग्रह में नुकसान हुआ है, परंतु यह नुकसान उत्तराखंड जैसे छोटे और उत्पादन की तुलना में बहुत ही कम खपत करने वाले राज्यों को बहुत अधिक हुआ है। यशपाल आर्य ने कहा कि अगर जल्दी ही जीएसटी से मिलने वाले राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी नही बढ़ाई गयी या फिर केंद्र सरकार राज्यों को मिलने वाली जीएसटी प्रतिपूर्ति को आने वाले कुछ सालों तक के लिए न देती रही तो उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों को आर्थिक रूप से गर्त में जाने से कोई नहीं बचा सकता है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि राज्य की भाजपा सरकार केंद्र के समक्ष जीएसटी से होने वाले नुकसान का जिक्र तो करती है लेकिन न तो इसका खुलकर विरोध करती है और न ही इसके पुनर्गठन की मांग। कहा कि राज्य निर्माण के समय राज्य का कर आधारित राजस्व 322 करोड़ रुपये था, जो जीएसटी लागू होने से पहले राज्य के लोगों, कर्मचारियों और अधिकारियों की मेहनत से वर्ष 2016-17 में 31 गुणा बढ़कर 7143 करोड़ रुपये हुआ। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के आंकड़े ही बता रहे हैं कि स्टेट जीएसटी के सेटलमेंट के बाद वर्ष 2017-18 में संरक्षित राजस्व 44 प्रतिशत घटा था, जो आने वाले सालों में 51 प्रतिशत तक कम रहेगा। वर्ष 2021-22 में यह 45 प्रतिशत कम रहा है। आर्य ने कहा कि यह हजारों करोड़ रुपये राजस्व का नुकसान है।
पहले ही जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद उत्तराखंड राजस्व की कमी झेलने वाले टॉप थ्री राज्यों में शामिल है। मौजूदा साल में ही उत्तराखंड को जीएसटी से वैट की तुलना में बहुत कम राजस्व मिला है। वही अब केंद्र से जीएसटी क्षतिपूर्ति की व्यवस्था जुलाई से बंद कर दी गई है, इससे राज्य सरकार के सामने नई विकास योजनाओं को मंजूर करने में दिक्कत आ सकती है। केंद्र सरकार ने साल 2017 में जीएसटी व्यवस्था लागू की थी। इसमें राज्यों के वैट की तुलना में राजस्व कम मिलने पर भरपाई की व्यवस्था की गई थी। यह व्यवस्था पांच साल के लिए थी, जो इस साल जून में समाप्त हो गई। इससे उत्तराखंड के राजस्व में बड़े नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है। आर्य ने साफ किया कि यदि केंद्र सरकार ने सीमित संसाधनों वाले उत्तराखंड राज्य के प्रति उदार रुख नहीं दिखाया तो अगले पांच साल में उत्तराखंड को 25 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।