रामनगर में ‘लव जिहाद’ प्रकरण के बाद उबाल | Uttarakhand News | Ramnagar | Love Jihad

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रामनगर में ‘लव जिहाद’ प्रकरण के बाद उबाल, हिंदू संगठनों की बुलडोजर कार्रवाई की मांग तेज, जी हां दोस्तो रामनगर की सड़कों पर आज कुछ अलग ही नज़ारा था। नारों की गूंज थी, झंडों की लहर थी और चेहरे पर था गुस्सा। ‘Love Jihad’ in Ramnagar हिंदूवादी संगठनों की इस आक्रोश रैली ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है — क्या अब रामनगर में चलेगा बुलडोजर? आखिर किस घटना ने उबाल दिया जनसैलाब को? और क्यों उठ रही है सख्त कार्रवाई की मांग? इस पूरे घटनाक्रम को बताने के लिए आया हूं दोस्तो कि मामला है क्या और क्यों उठ रही है बुलडोजर एक्शन की मांग। दोस्तो अभी आपने देखा होगा कि पेपर लीक कांड के मास्टर माइंड खालिद मलिक के अतिक्रमण कर बनाई गई संपत्ति पर बोलडोजर की कार्रवाई को अंजाम दिया गया है लेकिन अब ऐसी ही मांग उठने सगी है कुमाउं के रामनगर से आखिर क्यों उठ रही है मांग बताने जा रहा हूं।

दोस्तो उत्तराखंड का नैनीताल ज़िला, आमतौर पर शांत, सौम्य और पर्यटकप्रिय। लेकिन बीते कुछ दिनों से रामनगर क्षेत्र सुर्खियों में है—कारण है एक कथित ‘लव जिहाद’ प्रकरण जिसने स्थानीय समाज को झकझोर कर रख दिया है। घटना के विरोध में हिंदूवादी संगठनों ने रामनगर की सड़कों पर आक्रोश रैली निकाली, जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए। इस रैली में बुलडोजर कार्रवाई की खुली मांग की गई और सरकार को चेतावनी भी दी गई–बाइट लगान—- अब आपको बताता हूं दोस्तो ये सब क्यों हो रहा है ये मामला है क्या। खबरों के अनुसार दोस्तो , बीते हफ्ते रामनगर में एक हिंदू नाबालिग किशोरी को गुमराह करने और उसके साथ आपत्तिजनक कृत्य करने का आरोप एक मुस्लीम युवक पर लगा है। ये मामला सामने आते ही स्थानीय जनमानस में जबरदस्त नाराजगी फैल गई। हिंदू संगठनों का आरोप है कि यह सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि एक ‘सुनियोजित सांस्कृतिक हमला’ है। हिंदूवादी प्रदर्शन कारी लोग कहते हैं कि रामनगर के अंदर लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। यह हमारी संस्कृति और समाज पर सीधा हमला है। हम मुख्यमंत्री से मांग करते हैं कि आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाया जाए। इससे एक कड़ा संदेश जाएगा।

दोस्तो शुक्रवार को निकाली गई इस जनजागरण रैली में छोटे बच्चों से लेकर महिलाएं, युवा और बुजुर्ग तक शामिल हुए। रैली की शुरुआत पीएनजीपीजी महाविद्यालय से हुई और यह मुख्य बाज़ार, नगर के प्रमुख मार्गों से होकर सभा स्थल तक पहुंची। इतना भर नहीं था रैली के दौरान लोग हाथों में बैनर और पोस्टर लिए हुए थे, जिन पर “#JusticeForDaughter”, “लव जिहाद बंद करो”, बुलडोजर चलाओ – अपराध मिटाओ जैसे संदेश लिखे थे। नारों की गूंज और लोगों की ऊर्जा ने यह साफ कर दिया कि यह मामला अब केवल एक परिवार या समुदाय का नहीं रह गया है — यह सामाजिक चेतना का विषय बन चुका है। दोस्तो यहां एक तरफ कड़ी कार्रवाी की मांग तो की ही गई साथ ही सरकार को भी चेतावनी दी गई वो कैसे बताता हूं। दोस्तो रैली के दौरान हिंदू संगठनों ने साफ चेतावनी दी कि अगर इस मामले में शीघ्र और कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो आंदोलन को और भी व्यापक किया जाएगा। उनका कहना है कि “ऐसे मामलों में ‘नरमी’ सामाजिक संतुलन को खतरे में डाल सकती है। “सरकार को बुलडोजर नीति अपनानी चाहिए, ताकि समाज में डर का माहौल बने। ये कोई पहला मामला नहीं है। हर बार चुप्पी से अपराधियों के हौसले बढ़ते हैं। वहीं बात अगर मै पुलिस और प्रशासन की भूमिका की करूं तो रैली के दौरान पूरी व्यवस्था शांतिपूर्ण रही।

पुलिस प्रशासन की ओर से पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा बल तैनात किए गए थे और प्रशासन ने पहले ही स्पष्ट किया था कि कानून हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। दोस्तो यह मामला जितना संवेदनशील है, उतना ही सामाजिक दृष्टि से जटिल भी। एक तरफ बेटियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता है, तो दूसरी ओर, सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने की चुनौती भी है। इस प्रकरण ने कई सवाल उठाए हैं:क्या वाकई यह सुनियोजित सांस्कृतिक हमला है? क्या कानून की धीमी प्रक्रिया जनता को सड़कों पर आने को मजबूर कर रही है? क्या बुलडोजर संस्कृति का इस्तेमाल हर बार उचित है? इन सवालों के जवाब हमें आज नहीं तो कल देने होंगे। इसके साथ ही रैली का एक अहम पहलू यह भी रहा कि हिंदू संगठनों ने महिलाओं को जागरूक करने पर जोर दिया। उनका कहना था कि ऐसे मामलों में सबसे पहले घर-परिवार, समाज और स्कूलों को जिम्मेदारी लेनी होगी। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सांस्कृतिक और सामाजिक शिक्षा भी उतनी ही जरूरी है जितनी कि कानूनी सख्ती।

दोस्तो जब अबा अपने उत्तराखंड़ में बढ़ती ऐसी घचनाओं पर रामनगर का यह प्रकरण सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन और सरकार की नीतियों की परीक्षा बन गया है। अगर समय रहते न्याय नहीं हुआ, तो आक्रोश का स्वरूप और भी व्यापक हो सकता है।सरकार के सामने दो विकल्प हैं —या तो ठोस कार्रवाई करके जनता के विश्वास को मजबूत करे,या फिर चुप रहकर आने वाले सामाजिक उबाल का इंतजार करे।जनता अब केवल आश्वासन नहीं, एक्शन चाहती है — और वह भी जल्द।