उत्तराखंड के पवित्र शहर हरिद्वार में मनसा देवी मंदिर ऐसा क्या हुआ जो भगदड़ मच गई। भगदड़ मचने का जो कारण बताया जा रहा है, क्या वो ही सिर्फ एक सच है या फिर इस हादसे के पीछे की सच्चाई कुछ और है जो बताई नहीं छिपाई जा रही है? मनसा देवी हादसे का कब आएगा सच? मनसादिवी मंदिर भादसे में 8 लोगों की मौत होगई। Haridwar Mansa Devi Stampede जब भगदड़ मची उस समय भारी तादाद में लोग मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचे थे। अचानक से भगदड़ के हालात कैसे बन गए? मनसा देवी मंदिर में भगदड़ के बाद का मंजर, चारों ओर बिखरा सामान, चीखते-चिल्लाते लोग, एक सवाल मनसा देवी हादसे का कब आएगा सच? उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में मनसा देवी मंदिर में हुई भगदड़ के बाद अब सन्नाटा पसरा हुआ है। हालात बिल्कुल सामान्य नजर आ रहा है। रविवार को हादसे के बाद मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया गया था। रविवार दोपहर 2 बजे के बाद खोला गया। श्रद्धालुओं के आवागमन के लिए वन वे व्यवस्था लागू की गई है। सुरक्षा को लेकर मंदिर प्रशासन संवेदनशीलता बरत रहा है। हालांकि हादसे की स्पष्ट वजह का अभी तक पता नहीं चल पाया है। मजिस्ट्रियल जांच के बाद हादसे के मुख्य कारण का पता चलेगा। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए हरिद्वार कॉरिडोर जरूरी हो गया था।
बता दें कि बीते रविवार को हुए हादसे में 8 लोगों की मौत हो गई, जबकि 30 लोग घायल हो गए। 27 जुलाई की सुबह हरिद्वार में मनसा देवी मंदिर मार्ग पर भगदड़ मच गई थी, जिसमें 8 लोगों की जान चली गई तो करीब 30 से अधिक लोग घायल हो गए. अधिकतर लोग उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य के रहने वाले थे। सोशल मीडिया पर चल रही भगदड़ की कई खबरों में दावा किया जा रहा है कि वहां भगदड़ का कारण करंट फैलना था। वहीं जब भगदड़ में घायल लोगों ने मुंह खोला तो कुछ और ही निकल कर आया सामने, अब क्या भगदड़ की वजह करंट फैलने की अफवाह नहीं थी, तो फिर क्या था। सवाल कई होंगे आपके मन में भी तो दोस्तो आखिर भगदड़ होने का कारण क्या था? क्यों लोगों को वहां से वापस भागना पड़ा? वहीं मौजूद लोगों ने अलग-अलग जवाब दिए. एक पीड़िता ने बताया कि दुकानदारों ने डंडे मारने शुरू किए, जिससे भगदड़ मच गई। वहीं जो इस हादसे में घायल हुए, जो पीड़ित हैं वो आंखों देखी बताते हैं तो मंजर डराने वाला था। दोस्तो हालांकि जब ये घटना की सूचना मिलते ही पुलिस विभाग और राहत बचाव दल ने सभी घायलों को हरिद्वार जिला अस्पताल पहुंचाया। देखते ही देखते जिला अस्पताल छावनी में बदल गया। भगदड़ के कारणों को लेकर सवाल जवाब होने लग गए। दोस्तो कुछ घायलों ने पुलिस को इस भगदड़ का जिम्मेदार बताया तो कुछ घायलों ने अलग ही कहानी बताई।
दोस्तो इस दौरान ये कहा गया कि करंट की अफवाह फैली तो ये भगदड़ मची। अब हर कोई इस सावल का जवाब खोजने में लग गया कि क्या ये ही एक मात्र वजह थी इस हादसे की। श्रद्धालु बताते हैं कि मंदिर के दरवाजे बंद होने के कारण सभी वहां से वापस आ रहे थे। उसके बाद किसी ने करंट फैलने की अफवाह फैला दी थी, जिस कारण दर्शन करने गए लोग वहां से भागने लगे और भगदड़ मच गई थी। लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे। वहां जो लोग मोजूद थे वो बताते हैं कि मंदिर की ओर से वापस आ रहे लोग कह रहे थे की मंदिर बंद हो गया है। जल्दी के कारण लोग एक दूसरे को धक्का मार कर आगे बढ़ रहे थे और मंदिर से वापस आ रहे लोगों की बात सुनकर दर्शन करने जा रहे लोग भी मंदिर बनाने की बात सुनकर वापस आने लगे। मंदिर के पास लगने वाले मार्केट में मंदिर की तरफ से आने वाले और मंदिर जाने वाले सभी लोग आमने-सामने आ गए..इतना सब हो रहा है था। किसी जिम्मेदार को इस बात की भनक तक नहीं लगी..या कहें कि शुरूआत इतना सीरीयस लिया ही नहीं गया। जितना लियाजाना चाहिए था, इसके अलावा उन्होंने बताया कि मंदिर बंद होने की सूचना को लेकर लोग एक दूसरे को हटाकर वापस भागने लगने। इस दौरान जो नीचे गिरा वह उठा नहीं पाया और लोग वहां से भागने लगे, और हादसा हो गया। हैरान कर देने वाली बात तो ये है कि वहां पुलिश नहीं थी। लोग कहते हैं कि पुलिस वहां मौजूद होती तो शायद यह घटना ना होती। अब सोचने वाली बात है कि इतनी भीड़ और वहां सुरक्षा के नाम पर पुलिस का ना होना। कहां तक ठीक है, एक और बात जो यहां निकल कर सामने आई। वहीं कई स्थानीय लोग मौजूद थे, कई दुकानदार थे। क्या उन्होंने लोगों की मदद की या फिर नहीं, क्योंकि अकसर ऐसे वक्त में स्थानीय लोग बड़ी भूमिका में आ जाते हैं। क्योंकि वो सब कुछ जान रहे होते हैं। कि वहां दुकानदारों ने भीड़ में फंसे लोगों की मदद की या कुछ और? लेकिन नहीं एसा नहीं हुआ। वहां दुकानदार भीड़ में फंसे लोगों को डंडा मार रहे थे।
दोस्तो अगर दुकानदार 10-10 लोगों को अपनी दुकान में अंदर बैठा लेते या आराम से भीड़ को जाने देते तो शायद भगदड़ का माहौल ना होता। जब दुकानदारों ने लोगों को डंडे मारे तो लोग एक दूसरे को धक्का मार कर आगे बढ़े, जो नीचे गिरा वह उठ नहीं पाया और लोगों ने अपनी जान गंवा दी। पैदल मार्ग पर प्रसाद की दुकान चलाने वाले बताते हैं कि बुजुर्ग महिला गिर गई जिसके बाद अफरा तफरी मची और भगदड़ शुरू हो गई। उसने बताया कि कोई तार नहीं टूटी कोई करंट नहीं लगा था ये अफवाह थी। आज भीड़ बढ़ने के बाद भी प्रशासन ने आने और जाने का मार्ग एक ही रखा जिसके कारण पैदल मार्ग में पैर रखने तक की भी जगह नहीं बची थी। कांवड़ के समय सीडीओ से श्रद्धालु मंदिर की तरफ जाते थे और पीछे के रास्ते से वापस नीचे उतरते थे यानी आने का रास्ता अलग और वापस जाने का रास्ता अलग, यानि भी यहां मिसमेनेजमेंट। दोस्तो ये एक हादसा भर नहीं है, ये सबक हो सकता है। सिस्टम को लेकर, क्योंकि उत्तराखंड अपनी देवभूमि जहां मठ-मंदिर इतने की आप गिन नहीं सकते… यहां आने वाले श्रद्धालुओं को आप गिन नहीं सकते। तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी तो लेनी ही पड़ेगी ना, मनसादेवी मंदिर में जो खामिया रही हैं। उनको दुरुस्त करना प्राथमिकता में होना चाहिए, और दूसरी ओर और भी मंदिर में व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए। ताकि कोई हादसा ना हो, किसी की जान ना जाय कोई घायल ना हो, हांलाकि इस मामले की मजिस्ट्रीयल जांच के आदेश हुए हैं।