जब उत्तराखंड के लिए रातों-रात खलनायक बन गए थे मुलायम

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समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) अब इस दुनिया में नहीं रहे। सोमवार को उनका निधन हो गया। लंबे समय से बीमार चल रहे मुलायम सिंह यादव ने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आखिरी सांस ली। उत्तर प्रदेश में उनके निधन पर 3 दिन का राजकीय शोक घोषित कर दिया गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत अन्य मंत्रियों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

Mulayam Singh Yadav Uttarakhand andolan story

मुलायम सिंह यादव के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें शायद उत्तराखंड के लोग कभी नहीं भूल पाएंगे। 1 अक्टूबर 1994 की वो रात..वो दमन, वो बल का प्रयोग और वो अमानवीयता की हदें। ‘पहाड़ ने मुझे वोट नहीं दिया’ जब राज्य आंदोलन की आग तेज हुई तुम मुलायम सिंह यादव के ये शब्द उन्हें रातोंरात खलनायक बना रहे थे। मुलायम सिंह यादव कभी भी अलग उत्तराखंड राज्य बनाने के पक्ष में नहीं रहे। एक दौर था जब उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतर गए थे और ये आंदोलन महज एक आंदोलन नहीं बल्कि जन आंदोलन बन गया था। इस दौरान मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री रहे और उसी दौरान रामपुर तिराहा कांड भी हुआ। आगे पढ़िए 

Uttarakhand andolan Rampur Tiraha story

उस काली रात को आंदोलनकारी आज तक नहीं भूले। किसी को आभास नहीं था कि कुछ ही देर बाद उनका सामना एक खौफनाक मंजर से होने वाला है। जैसे ही आंदोलनकारी रामपुर तिराहा पहुंचे तो गोलियों के तड़तड़ाहट से पूरा इलाका गूंज गया। मौके पर लाशें गिरी, खून से लथपथ पड़े लोग और आंदोलनकारियों की बेबसी इस पूरी कहानी बयां कर रही थी। दरअसल जब उत्तराखंड राज्य चाहने वाले आंदोलनकारी गढ़वाल और कुमाऊं से बसों में भरकर दिल्ली के लिए रवाना हुए, तो मुलायम सिंह यादव की सरकार ने तय कर लिया था कि आंदोलनकारियों को आगे नहीं जाने देना है। बसों का काफिला जब रामपुर तिराहा पहुंचा तो उनका सामना पुलिस से हुआ। यहां पर सत्ता का दमनात्मक रूप सामने आया था। पुलिस की फायरिंग, बेबस आंदोलनकारियों पर कहर बरपाना और बलात्कार जैसी घटनाओं से वो रात काली हो गई। यही वो रामपुर तिराहा कांड है जिसने सत्ता को पलट कर रख दिया। मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) उत्तराखंड के लिए रात और रात खलनायक बन गए। इसके बाद उनकी पार्टी यानी समाजवादी पार्टी कभी भी पहाड़ में पैर नहीं जमा पाई। खटीमा और मसूरी के बाद हर रामपुर तिराहे का नाम भी उत्तराखंड आंदोलन में जुड़ गया। 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड का गठन हुआ लेकिन राज्य आंदोलन का जख्म आज तक नहीं भरा।