Mysterious beliefs of the mountains of Uttarakhand | Kainchula Devi Temple | Uttarakhand News |

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पहाड़ों में हादसों का डर या भूत का साया? हर मोड़ पर क्यों बनाया जाता है एक मंदिर, क्या आप जानते हैं उत्तराखंड की मान्यता के बारे में, मंदिर तो आपने भी सड़रक किनारे कई देखे होंगे। दोस्तो अगर आप उत्तराखंड आ चुके हैं, Mysterious beliefs of the mountains of Uttarakhand तो आपने कई जगहों पर सड़क किनारे छोटे-छोटे मंदिर बने हुए जरूर देखे होंगे, वैसे ये उन लोगो बता रहा हू, जो बाहरी राज्यों से देवभूमि जाते हैं उत्तराखंड वाले तो अच्छी तरह जानते हैं और वो शायद इन मंदिरों के कारण को भी जानते होंगे और हो सकता है कुछ लोग नहीं जानते हों उनको मैं बताउंगा कि इन देवालयों को क्यों बनाया जाता है, और क्या मान्यता है। क्या रहस्य है क्या मान्यता से सब बताउंगा? जो उत्तरांखंड की सड़क के मोड़ पर बने होते हैं। इनमें से ज्यादातर मंदिर बजरंगबली को समर्पित होते हैं। उत्तराखंड में वैसे तो अनेकों धार्मिक आस्थाएं हैं, लेकिन एक आस्था ऐसी भी है, जिसमें पहाड़ के जिस भी क्षेत्र में वाहनों से जुड़ी ज्यादातर दुर्घटनाएं होती हैं, उस जगह पर एक मंदिर का निर्माण कर दिया जाता है। लोगों की आस्था है कि उस स्थान पर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनाने से सड़क हादसों पर लगाम लग जाती है, अभी रूको इतना ही नहीं और भी बहुत कुछ है जिससे आप जानना चाहेंगे। वैसे दोस्तो पहाड़ों में वाहन चलाना आसान नहीं है। वाहनों के अनियंत्रित होकर खाई में गिरने समेत तमाम हादसे आए दिन देखने-सुनने को मिलते हैं।

पहाड़ के जिन क्षेत्रों में सड़क दुर्घटनाएं ज्यादा होती हैं, वहां के स्थानीय ग्रामीण उस जगह पर बजरंगबली की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कर छोटे से मंदिर की स्थापना कर देते हैं। ऐसा विश्वास है कि ऐसा करने से एक्सीडेंट बंद हो जाते हैं। कई जगहों पर देवी की मूर्ति की स्थापना भी की गई है। ग्रामीणों का मानना है कि मंदिर निर्माण से दुर्घटना में मरने वालों की आत्माओं को शांति मिलती है और उसके बाद वहां पर कोई भी दुर्घटना नहीं होती है। इसका उदाहरण आपको नैनीताल जाने वाली सड़क पर कई जगह देखने को मिलेंगे। नैनीताल रोड पर दो गांव, नैना गांव और कई ऐसी जगह हैं, जहां पर सड़क के किनारे दुर्घटना होने के बाद मंदिर स्थापित किए गए हैं। जब से सड़क के किनारे मंदिर बनाए गए, उसके बाद इन जगहों पर कोई भी सड़क हादसा नहीं हुआ। उत्तराखंड की घुमावदार पहाड़ियों रास्तों के हर मोड़ पर एक छोटा मंदिर नजर आना आम बात है। क्या ये सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं या पहाड़ों में होने वाले हादसों और अदृश्य शक्तियों से जुड़ी किसी मान्यता का हिस्सा? तो ये ही बताने की कोशिश कर रहा हूं कि इसका कारण क्या है सवाल जो आपके मन भी होंगे क्यों हर खतरनाक मोड़ पर बनाया जाता है मंदिर और क्या कहती है उत्तराखंड की मान्यता? जी हां दोस्तो उत्तराखंड की पहाड़ियों में घूमते वक्त अगर आपकी नजर सड़क किनारे बने छोटे-छोटे मंदिरों पर गई हो, तो आप अकेले नहीं हैं।

कहीं शिवलिंग, कहीं हनुमान जी की मूर्ति, तो कहीं गोलू देवता या किसी लोकदेवता के मंदिर, ये मंदिर सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि गहरे लोकविश्वास, अनुभव और भावनाओं से जुड़े होते हैं। इन मंदिरों को अक्सर खतरनाक मोड़ों, तीखी ढलानों या दुर्घटनाग्रस्त स्थानों के पास देखा जाता है। मान्यता है कि इन स्थानों पर कभी कोई हादसा हुआ होता है या कोई व्यक्ति चमत्कारिक रूप से बाल-बाल बचा होता है। ऐसी घटनाओं के बाद स्थानीय लोग वहां एक छोटा सा मंदिर या देवस्थल बना देते हैं, ताकि भविष्य में यात्रा करने वाले सुरक्षित रहें और किसी अनहोनी से बच सके। दोस्तो कहा जाता है कि विशेष रूप से हनुमान मंदिरों की संख्या पहाड़ों में सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। कुमाऊं और गढ़वाल के लोग मानते हैं कि हनुमान जी संकटमोचक हैं और पहाड़ की कठिन यात्राओं में रक्षा करते हैं।

दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में बजरंगबली की प्रतिमा स्थापित कर एक छोटा सा मंदिर बना दिया जाता है। यह केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि एक सामूहिक मानसिक सुरक्षा कवच जैसा है। कुमाऊं के लोकदेवताओं जैसे “कालू सैंण”, और “गोलू देवता” के मंदिर भी खास महत्व रखते हैं। ये देवता क्षेत्र विशेष के संरक्षक माने जाते हैं और इनके मंदिर स्थानीय निवासियों और यात्रियों दोनों के लिए आस्था का केंद्र होते हैं। दोस्तो स्थानीय मान्यताओं के अनुसार कुछ मंदिरों का निर्माण मृत आत्माओं की शांति के लिए भी किया जाता है। जहां हादसों में जानें गई हों, वहां स्मृति स्वरूप हनुमान या देवी की मूर्ति स्थापित की जाती है। इन स्थलों पर लोग रुकते हैं, पूजा करते हैं और अपनी यात्रा की सफलता की प्रार्थना करते हैं। दोस्तो इन मंदिरों का एक सामाजिक पक्ष भी है कि ये जगहें यात्रियों को ठहराव, मानसिक शांति और सांस्कृतिक जुड़ाव देती हैं। कई बार इनके पास चाय की दुकानें, विश्राम स्थल या छोटी धर्मशालाएं भी बन जाती हैं. छोटे दिखने वाले ये मंदिर असल में उस गहरे विश्वास की अभिव्यक्ति हैं, जो पहाड़ों में रहने वाले लोगों के जीवन, प्रकृति और ईश्वर के बीच गहराई से रचा-बसा है। पहाड़ों में सफर अक्सर भगवान भरोसे होता है, और ये मंदिर हर मोड़ पर उसी भरोसे को मजबूत करते हैं।