New political battle in Uttarakhand | Uttarakhand News | Panchayat Election | BJP | Congress

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उत्तराखंड में सियासत की नई जंग प्रदेश में कौन है न. १ ७ सीट तय करेंगी सियासी भविष्य। दोस्तो उत्तराखंड की राजनीति में आज का दिन बेहद अहम माना जा रहा है। प्रदेश के सात जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों के लिए चुनाव और इस चुनाव का नतीजा बहुत कुछ बता देगा। New political battle in Uttarakhand इससे पहले 12 में से 5 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने निर्विरोध विजय हासिल कर ली है, जिससे पार्टी का मनोबल पहले ही ऊँचा हो गया है। अब सबकी निगाहें इन शेष सात सीटों पर टिकी हुई हैं, जहाँ आज मतदान हुआ है। इन सीटों के नतीजे न केवल स्थानीय प्रशासन की दिशा तय करेंगे, बल्कि प्रदेश में राजनीतिक दलों की ज़मीनी पकड़ का भी प्रमाण देंगे। कांग्रेस और भाजपा — दोनों ही दल इस चुनाव को प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रहे हैं और एक-दूसरे पर बढ़त के दावे कर रहे हैं। बात अगर पहले सत्ता सीन बीजेपी की करें तो बीजेपी की बढ़त और रणनीति बता रही है कि वो किसी भी प्रकार से सत्ता पर रहना चाहती है। दगड़ियो भाजपा ने पहले ही यह साबित कर दिया है कि उसके पास संगठनात्मक मज़बूती और स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं की सशक्त मौजूदगी है। पांच जिलों में निर्विरोध जीत के बाद पार्टी को आशा है कि शेष सात सीटों में से ज़्यादातर पर वह बाज़ी मार लेगी। भाजपा नेताओं का मानना है कि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के चलते जनता का रुझान उनके पक्ष में है साथ ही, चुनाव पूर्व गठजोड़ और कई निर्दलीयों के समर्थन से भी भाजपा को बल मिला है।

अब दोस्तो दावे तो दावे हैं कोई भी कर सता है। बल इसलिए बीजेपी आत्मविस्वास से भरी हुई सभी सीटें अपने पाले में आने का दम भर रही है। बात कांग्रेस की करू तो दोस्तो कांग्रेस तो पहले सियासी संकट से जूंझ रही है और पहाड़ में कांग्रेस के चुनौतिया भी पहाड़ जैसी ठहरी। ऐसे में कांग्रेस इस चुनाव को “जनता की आवाज़” बता रही है और यह दावा कर रही है कि भाजपा ने निर्विरोध जीतें “प्रभाव और दबाव” के जरिए हासिल की हैं। कांग्रेस के नेता इस चुनाव को लोकतंत्र के लिए अहम मान रहे हैं और मतदाताओं से “स्वतंत्र और निष्पक्ष” मतदान की अपील कर रहे हैं। कांग्रेस ने ग्राम स्तर तक सक्रिय होकर प्रचार किया है और स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता दी है — जैसे पेयजल संकट, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्थानीय विकास। कांग्रेस के दावों के पीछे का तर्क क्याहै। वो भी देख लीजिए। दोस्तो बीजेपी और कांग्लेस के अलावा कोई दूसरा दल है नीं लेकिन तीसरा मोर्चा है वो है निर्दलियों का ये निर्दलिय इस बार किंग मेकर की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं। इसलिए क्षेत्रीय और निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका अहम हो जाती है। दोस्तो इन चुनावों में क्षेत्रीय दल और निर्दलीय प्रत्याशी भी निर्णायक भूमिका में हैं।

कई जगहों पर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन गई है, जहाँ निर्दलीय उम्मीदवारों को स्थानीय जनता का खासा समर्थन मिल हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वोटों के बँटवारे से किसे फायदा और किसे नुकसान होता है। जिला पंचायत के चुनाव आमतौर पर स्थानीय विकास और प्रशासन से जुड़े होते हैं, इसलिए ग्रामीण जनता की इनमें गहरी रुचि होती है। आज के मतदान में ग्रामीण क्षेत्रों में खासा उत्साह देखने को मिला था वो अब परवान चढ़ेगा… महिलाएं, बुज़ुर्ग और युवा – भी वर्ग मतदान केंद्रों पर पहुँचे थे पंचायत चुनाव संपन्न हुआ था। उत्तराखंड में आज के जिला पंचायत अध्यक्षों की जंग और ब्लोक प्रमुख का रण सिर्फ सात सीटों का चुनाव नहीं हैं, बल्कि यह आने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा भी तय कर सकते हैं। यह नतीजे यह भी बताएँगे कि राज्य की जनता किस दल की स्थानीय नीतियों और नेतृत्व पर अधिक भरोसा कर रही है। भाजपा जहां अपनी विजय यात्रा को और तेज करने की तैयारी में है, वहीं कांग्रेस अपनी खोई हुई ज़मीन वापस पाने की उम्मीद लगाए बैठी है।अब देखना यह है कि आज शाम या कल सुबह जब नतीजे आएँगे, तो किसके दावे सच्चे साबित होते हैं — भाजपा के, कांग्रेस के, या फिर जनता एक नया संदेश देने जा रही है?