उत्तराखंड चुनाव के लिए टिकटों के मामले में लंबे गतिरोध और भारी ड्रामे के बीच एक बात साफ हो गई कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का सिक्का चल गया. हालांकि हरीश रावत की रामनगर सीट को लेकर जिस तरह विरोध सामने आया और उसके बाद रावत की सीट बदल दी गई, उसे कहीं रावत के लिए एक झटका भी माना जा रहा है, लेकिन रावत की बड़ी जीत यह रही कि वह अपनी बेटी अनुपमा रावत को टिकट दिलाने में कामयाब रहे. पार्टी के भीतर जिस सिद्धांत के दम पर अन्य नेताओं के परिजनों को टिकट दिए जाने में आनाकानी रही, वहीं अनुपमा को टिकट मिलना रावत की बड़ी जीत ही रही.
टिकट बंटवारे में हरिद्वार ग्रामीण सीट से अनुपमा रावत को उम्मीदवार बनाया जाना, साफ तौर पर हरीश रावत के दवाब के आगे कांग्रेस आलाकमान के झुकने का ही संकेत माना जा रहा है. ‘एक परिवार एक व्यक्ति’ को टिकट वाला फॉर्मूला पार्टी ने लागू तो किया लेकिन यह रावत के मामले में अमल में नहीं लाया गया. जिस सीट से रावत पिछली बार चुनाव हारे थे, उसी हरिद्वार ग्रामीण सीट से अनुपमा को टिकट मिलने से एक बात और भी साफ हो गई कि रावत हार का बदला लेने के एक दांव और खेलना चाहते हैं और कांग्रेस ने इस मंसूबे को तरजीह दी है.

लालकुआं से प्रत्याशी बनाए जाने पर हरीश रावत ने ट्वीट किए.
कैसे चला हरीश रावत का दबाव?
दिसंबर के आखिरी दिनों में जब टिकटों को लेकर कांग्रेस के भीतर मामला अटक रहा था, तब हरीश रावत ने कांग्रेस से संन्यास लेने तक का मन ज़ाहिर कर दिया था. तब दिल्ली में उत्तराखंड के नेताओं को आलाकमान ने बुलाकर साफ तौर पर रावत की अगुवाई में चुनाव लड़ने की बात कहकर उनकी स्थिति मज़बूत की. फिर भाजपा की पहली सूची की बाद कांग्रेस ने उम्मीदवारों की जो सूची जारी की, उसमें साफ तौर पर हरीश रावत का दखल नज़र आया.
कई सीटों पर हरीश रावत के समर्थक नेताओं को टिकट की घोषणा से साफ हो गया कि उत्तराखंड में कांग्रेस का स्पष्ट चेहरा रावत ही हैं. इसके साथ ही, लालकुआं सीट से संध्या डालाकोटी को दूसरी लिस्ट में उम्मीदवार बनाया गया, लेकिन फिर कुछ विवादों के बाद इस सीट से हरीश रावत का नाम घोषित कर दिया गया, जिसे रावत ने सहज स्वीकार करते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट भी कर दिए. इसका अर्थ यही समझा जा रहा है कि रावत के टिकट को लेकर एक रणनीति के तह