4 अगस्त की तारीख नजदीक आ रही है, इस दिन नैनीताल हाईकोर्ट से एक अहम फैसाला आयेगा। या यूं कह लीजिए अंतिम फैसला, और ये फैसला आयेगा रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को लेकर। Rampur Tiraha incident इस कांड को 25 साल का वक्त बीत गया, लेकिन दोषियों पर शिकंजा आज तक नहीं कसा जा सका। पूरानी बात सिर्फ बात रह जाती है, या फिर हुआ होगा रहा होगा हो जाता है। आज की युवा पीढी शायद उस दर्द को याद ना कर पाए। महसूस ना कर पाए, जो दर्द आज से 25 साल पहले प्रथक राज्य की मांग को लेकर आंदोलनकारियों झेला। सहा है। इन बीते 25 सालों की बात आज में अचानक क्यों कर रहा हूं, आज तो 2 अक्टूबर भी नहीं है। हां ये वो 2 अक्टूबर की तारीख है जिस दिन ये रामपुर तिराहे क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गई थी, तो फिर आज अचानक क्यों रामपुर का वो तिराहा याद आ गया।
जहां ये आज भी कोई उत्तराखड़ी गुजरता है, तो उसके सामने वो 1994 वाला मंजर आकर खड़ा हो जाता है। यहां शायद कुछ युवा ये कहेंगे की क्या हुआ था बल तब, कुछ गूगल करेंगे। कुछ मेरे साथ जुड़े रहेंगे। आखिर तक कि मै बताने क्या जा रहा हूं। ये इसलिए भी दगड़िए 25 साल में बहुत कुछ बदल जाता है। जो अंदलनकारी थे उनमें से बहुत तो अब हमारे बीच रहे नहीं, कुछ लोग जब 25 के रहे होंगे वो आज 50 के हो गए होंगे। 25 साल पहले क्या हुआ था, और आज क्या हो रहा है। यानि आगामी 4 अगस्त को क्या होगा। राज्य आंदोलन के दौरान रामपुर तिराहा कांड के पीड़ितों को 25 साल बाद भी न्याय नहीं मिला पाया। जो दोषी थे उन पर कानून का शिकंजा नहीं कस पाया। ये सुन कई लोगों के आंखों में आंसू होंगे। और वो तब की पीड़ा का अहसास भी होगा। साथ ही ये टीस भी रहेगी कि आखिर ऐसा क्या रहा होगा, कि इतने सालों बाद भी इंसाफ नहीं मिलपाया।
दगड़ियो सीबीआई कोर्ट से मुजफ्फरनगर स्थानांतरित किए गए मामलों में सुनवाई नहीं हो पाई। अब नैनीताल हाई कोर्ट 4 अगस्त को अंतिम सुनवाई करेगा। इस घटना में कई आंदोलनकारियों की जान गई और महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ। लेकिन हैरानी की बात ये है कि पीड़ितों की आंखे न्याय के इंतजार में खुली की खुली रह गई। दगड़िए अब पन्नों को पीछे की तरफ पलटता हूं। खबर के मूल में आपको ले जाने की कोशिश करता हूं। राज्य आंदोलन के दौरान देश के सबसे जघन्य कांडों में शामिल रामपुर तिराहा कांड में पांच आंदोलनकारियों की मौत हुई थी। सात महिला आंदोलनकारियों के साथ दुष्कर्म हुआ था। 17 महिला आंदोलनकारियों के साथ अत्याचार के मामले में राज्य बनने के बाद 25 साल बाद भी न्याय का इंतजार है।
वैसे और भी बहुत कुछ सहा गया तब जब जब उत्तराखंड के छोटे-बड़े सब इस प्रथक राज्य वाले अग्निकुंड में अपनी आहूत दे रहे थे। जो पूराने लोग हैं उनको आंखों देखी याद होगी। यहां आपको बता दूं, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर देहरादून सीबीआइ कोर्ट ने मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह सहित सात अन्य के मामलों को मुजफ्फरनगर की कोर्ट स्थानांतरित किया। तब से इन मामलों में आज तक सुनवाई नहीं हो सकी। इस मामले में राज्य आंदोलनकारी सुप्रीम कोर्ट तक गए, वहां से मामला नैनीताल हाई कोर्ट भेज दिया गया। अब इस मामले में नैनीताल हाई कोर्ट चार अगस्त को फाइनल सुनवाई करेगा। अब जहां सबकी नजरें इस मामले को लेर 4 अगस्त पर हैं तो वहीं मैं आपको 1994 में लिए चलता हूं। जीहां दोस्त अलग राज्य आंदोलन के दौरान दो अक्टूबर 1994 को दिल्ली जा रहे राज्य आंदोलनकारियों को उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार के निर्देश पर मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर रोक दिया गया।
इस दौरान आंदोलनकारियों पर पुलिस टूट पड़। महिला आंदोलनकारियों के साथ दुष्कर्म व अत्याचार किए गए। जिसमें सात आंदोलनकारियों की पुलिसिया जुल्म में मौत हो गई। इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देश पर इस मामले की सीबीआइ जांच के आदेश हुए थे। मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम ने 2003 में नैनीताल हाई कोर्ट में याचिका दायर की तो कोर्ट ने राज्यपाल से मुकदमे की अनुमति नहीं मिलने के आधार पर उन्हें राहत दे दी। दरअसल, नौ फरवरी 1996 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य आंदोलन के दौरान पहली सितंबर को खटीमा में सात आंदोलनकारियों की मौत, रामपुर तिराहा में पांच आंदोलनकारियों की मौत, सात दुराचार के केस और 17 महिला आंदोलनकारियों के साथ अत्याचार के मामलों की सीबीआइ जांच के आदेश दिए थे। इलाहाबाद कोर्ट के आदेश पर केंद्रीय जांच ब्यूरो ने सात केस मुजफ्फरनगर व पांच केस देहरादून सीबीआइ कोर्ट में दाखिल किए। सीबीआइ कोर्ट ने चार्जशीट का धारा-302, 324, 326 आइपीसी के तहत संज्ञान में लिया। तब से हत्या के आरोपितों के मामले लंबित हैं। साथ ही आपको बता दूं। रामपुर तिराहा कांड मामले में सात अभियुक्त थे, जिसमें एक आरोपित मुजफ्फरनगर के तत्कालीन सीओ का गनर सुभाष गिरी था। जिसकी ट्रेन में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इस मामले में सुभाष वादा माफ गवाह था लेकिन फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पांच मार्च 2005 को सीबीआइ देहरादून की कोर्ट ने अनंत कुमार सिंह केस के साथ ही सात अन्य केस मुजफ्फरनगर कोर्ट को ट्रांसफर कर दिए। तब से इस मामले में सुनवाई आज तक नहीं हुई। राज्य आंदोलनकारी समन्वय समिति के अधिवक्ताओं के अनुसार पूर्व सीएम एनडी तिवारी के कार्यकाल में 2004 में कार्यालय आदेश जारी कर चिह्नित राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया गया। इस मामले में हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका पर सुनवाई की, दो जजों के अलग-अलग मत होने के कारण केस तीसरे जज को रेफर किया गया। तीसरे न्यायाधीश ने राज्य आंदोलनकारियों के खिलाफ अपना मत दिया, और सुनिएगा दोस्तो 25 साल में कितना कुछ हो जाता है। लेकिन एक केस पर आज तक सुनवाई नहीं हो पाई, वो मुजफ्फरनागर सीबीआईकोर्ट में पेंडिग रहा। अब नैनीताल हाईकोर्ट सुनवाई करेग।
इतना ही नहीं आंदोलनकारियों के तीसरे जज के फैसले को भी याचिका दायर कर चुनौती दी गई। जब आंदोलनकारी केस हार गए तो उन्होंने विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मित्रो ये मामला भी वहां विचाराधीन है। उधर, 2024 में राज्य सरकार की ओर से राज्य आंदोलनकारियों को दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का अधिनियम बना दिया तो इसको भी चुनौती दी गई तो अब एक वकील ने हस्तक्षेप याचिका दायर की है। अब आप कहेंगे ये हो कया रहा है। दगड़ियो कोर्ट कचेहरी के चकर, ये वहीं चक्कर हैं, हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि सुप्रीम कोर्ट में केस निस्तारण होने तक केस को नहीं सुन सकते। वहीं कुछ लोग कहते हैं कि सरकार ने आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण दे दिया, अब सरकार को चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट में आदेश मोडिफाइ करने के लिए प्रार्थना पत्र दाखिल करे। रामपुर तिराहा कांड की बरसी आती है। तो बहुत कुछ याद किया जाता है, और आगे अक्टूबर का महिना आयेगा एक बार फिर राज्य के शहीदों का संघर्ष और कुर्बानी याद की जाएगी, लेकिन इंसाफ मिलाना मुश्किल हो गया। साथ ही राज्य आंदोलन की मूल अवधारणा के उन सवालों के भी जवाब तलाशे जाएंगे। जो राज्य आंदोलनकारियों की निगाहों में आज नेपथ्य में चले गए हैं।