उत्तराखंड में अब ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’, सड़क पर उतरा जनाक्रोश l Uttarakhand News | K Kumaon News

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उत्तराखंड में अब ऑपरेशन स्वास्थ्य पूर्व सैनिक के आंदोलन पर अब सड़कों पर लोग आ चुके हैं। दोस्तो अपने उत्तराखंड में सुविधानों के आभाव में कई लोगों ने जब परेशानियों का सामना किया तो, जन्म आंदोलन ले लिया। Operation Health in Uttarakhand यहां आंदोलन करना लोग अच्छी तरह से जानते भी हैं और उस आंदोलन का असर भी देखने को मिलता है, लेकिन इस बार आंदोलन का नाम है ऑपरेशन स्वास्थ्य इसने राजनीति और सामाजिक सरगर्मियों में एक नया मोड़ आ गया है। पूर्व सैनिक के आंदोलन के बाद अचानक सड़कों पर भड़क उठा जनाक्रोश अब शायद गेंद सरकार और सिस्टम के पाले में है। दोस्तो अभी दो रोज पहले मेने आपको एक पूर्व सैनिक के आमरण अनशन के बारे में खबर दिखाई थी और मेने आपसे ये भी पूछा था कि इस अनशन को क्या लोगों का समर्थन मिलेगा कुछ वैसा जिससे सत्ता सिस्टम को देखना इस ओर देखना पड़े, लेकिन अब ऐसा लगता है कि ये आंदोलन जन आंदोलन में बदल रहा है। ऐसा ही कुछ तस्वीरें इशारा कर रही हैं। दोस्तो उत्तराखंड के कुमाउं का चौखुटिया में एक कमरे से शुरू हुआ ये आंदोलन अब भारी जनमानस के साथ सड़क पर आ चुका है। दोस्तो चौखुटिया के स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली के लिए जन आक्रोश रैली में भारी संख्या में लोग पहुंचे और ऑपरेशन स्वास्थ्य आंदोलन आज एक निर्णायक मोड़ पर पहुँचता हुआ दिखाई दे रहा है। 6 अक्टूबर को सुबह 10 बजे चौखुटिया की सड़कों पर उमड़ी विशाल जन आक्रोश रैली ने साफ़ कर दिया कि जनता अब स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को और बर्दाश्त नहीं करेगी। आमरण अनशन आज चौथे दिन में पहुंच गया है और आंदोलन की आवाज़ अब पूरे क्षेत्र में गूंज रही है।

स्वास्थ्य सुविधाओं के सुधार और उच्चीकरण की मांग को लेकर चौखुटिया में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा है। जी हां हां उत्तराखंड का शांत और प्रकृति की गोद में बसा इलाका चौखुटिया आज जनसंकल्प की आवाज़ से गूंज रहा है। ये आवाज़ किसी राजनीतिक नारेबाज़ी की नहीं, बल्कि एक बुनियादी अधिकार — स्वास्थ्य — की है। पूर्व सैनिक भुवन कठायत द्वारा शुरू किया गया आमरण अनशन अब चौथे दिन में पहुंच चुका है, और ये आंदोलन अब केवल एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं रहा, बल्कि पूरे क्षेत्र की सामूहिक चेतना बन चुका है…इसमें क्या जवान क्या बुजुर्ग सब एक साथ खड़े दिखाई देते हैं। दोस्तो चौखुटिया और आसपास के क्षेत्रों में लंबे समय से स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी झेलनी पड़ रही है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त डॉक्टर नहीं हैं, आपातकालीन सेवाएं समय पर नहीं मिलतीं और गंभीर बीमारियों के लिए लोगों को मीलों दूर हल्द्वानी या रानीखेत जाना पड़ता है, ऐसे में समय रहते इलाज न मिलने से कई बार जानें भी जा चुकी हैं — और यही पीड़ा अब आंदोलन का कारण बन गई है। पूर्व सैनिक भुवन कठायत चौथे दिन भी आमरण अनशन पर अडिग हैं, उनके साथ 85 वर्षीय बुजुर्ग बचे सिंह जी भी तीसरे दिन से अनशन पर डटे हुए दिखाई दिये हैं। जो इस आंदोलन की गंभीरता और जन समर्थन का सबसे बड़ा प्रतीक बन चुके हैं। भूख, कमजोरी और गिरते स्वास्थ्य के बावजूद इनकी हिम्मत में कोई कमी नहीं दिख रही। इस आंदोलन को नया मोड़ तब मिला जब पूर्व ब्लॉक प्रमुख मीना कांडपाल और सामाजिक कार्यकर्ता संतोषी वर्मा भी क्रमिक अनशन में शामिल हो गईं। इसके साथ ही दो स्थानीय महिलाओं ने भी आज क्रमिक अनशन शुरू किया, जो यह दर्शाता है कि यह आंदोलन अब हर वर्ग, हर पीढ़ी और हर सोच को एकजुट कर चुका है।

आंदोलन की भावनात्मक और सामाजिक लहर अब जनांदोलन का रूप लेने लगी है। 6 अक्टूबर की सुबह 10 बजे, क्षेत्र में एक जनाक्रोश रैली आयोजित की जाएगी, जिसमें हजारों लोगों के भाग लिया। गांव-गांव से युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों का समर्थन जुटाया जा रहा है। रैली के जरिए सरकार और प्रशासन को यह संदेश देने की तैयारी है कि अब “बस बहुत हो गया”, अब ज़रूरी है व्यवस्था की जवाबदेही। स्थानीय युवाओं और ग्रामीणों का कहना है कि यह आंदोलन केवल अस्पताल” या डॉक्टर की मांग नहीं है, बल्कि यह एक व्यवस्था से सवाल है — कब तक लोग इलाज के लिए दम तोड़ते रहेंगे, क्या पहाड़ों में रहने वाले नागरिकों की जान की कीमत कम है?, क्या सरकार की प्राथमिकता में गांव नहीं हैं?यह आवाज़ अब किसी एक गांव या व्यक्ति की नहीं रही। यह संघर्ष अब उस आवाज़ की है जो सालों से अनसुनी रही — और अब जब जनता ने उसे खुद बुलंद करना शुरू किया है, तो सरकार को जवाब देना ही होगा। ऑपरेशन स्वास्थ्य के नाम पर शुरू हुआ यह जनआंदोलन अब सामाजिक जागरूकता और नागरिक जिम्मेदारी का प्रतीक बन चुका है। यह दिखाता है कि लोग अब अपने हक़ के लिए खामोश नहीं बैठेंगे। यह केवल चौखुटिया की बात नहीं — यह हर उस गांव, हर उस कस्बे की कहानी है जहां स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाएं आज भी एक सपना हैं। पूर्व सैनिक, बुजुर्ग, महिलाएं और युवा — सब एक स्वर में कह रहे हैं।